राहुल गांधी को 30-35 सीट की लड़ाई पटना खींच लाई; बिहार दौरा बढ़ाने का क्या मतलब?
- 18 दिनों के अंतराल पर दूसरी बार पटना आकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने महागठबंधन के अंदर और बाहर हलचल बढ़ा दी है। स्थानीय नेता कह रहे हैं कि प्रियंका गांधी भी चुनाव से पहले बिहार में सक्रिय हो सकती हैं।
नए साल में 18 जनवरी को पहली बार बिहार आए कांग्रेस नेता राहुल गांधी 18 दिन बाद जब दूसरे दौरे पर पटना पहुंचे तो विधानसभा चुनाव से पहले उनकी बिहार में बढ़ती दिलचस्पी से गठबंधन के अंदर और बाहर हलचल तेज हो गई है। संविधान सुरक्षा सम्मेलन और जगलाल चौधरी जयंती समारोह के बहाने राहुल गांधी दलितों और पिछड़ों के बीच कांग्रेस को वापस ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। 2020 में 70 सीट लड़कर 19 सीट जीतने वाली कांग्रेस बिहार में जिस हालत में है, उस संदर्भ में उसमें राहुल गांधी की बढ़ती सक्रियता नीतीश कुमार की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से ज्यादा उनके सहयोगी लालू यादव और तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के लिए चिंता का विषय है।
लोकसभा चुनाव के बाद विपक्षी दलों के लगातार बिखर रहे इंडिया गठबंधन को लेकर तेजस्वी की सोच पहले ही साफ हो चुकी है जब उन्होंने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का तालमेल ना होने पर कहा था कि गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए था। तेजस्वी ने हालांकि तब कहा था कि कांग्रेस बिहार में शुरू से उनके साथ है। समस्या सीट बंटवारे को लेकर है जिसमें कांग्रेस 2020 की लड़ी 70 सीटों की संख्या से कोई समझौता नहीं करना चाहती। राजद की मुसीबत और इच्छा है कि कांग्रेस कम सीट लड़े जिससे जिनका स्ट्राइक रेट बेहतर है, वो सीटें निकालकर ला सकें।
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2020 के नतीजों के बाद कहा गया था कि कांग्रेस ने सामर्थ्य से ज्यादा सीटें लेकर महागठबंधन की सरकार बनने की संभावना खराब कर दी। राजद और तीन वामपंथी दलों ने 173 सीटों पर लड़कर 91 सीट जीती थी। यानी हर दूसरी सीट जीती। लेकिन 70 सीट लड़कर कांग्रेस 19 सीट जीती यानी लगभग चार सीट पर एक सीट जीती। अगर कांग्रेस राजद और लेफ्ट की स्ट्राइक रेट की बराबरी कर जाती तो उसके पास 30-35 सीट होती और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन गए होते।
लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की हार और बिहार में भी कुछ खास सफलता नहीं मिलने के बाद तेजस्वी यादव विधानसभा चुनाव को लेकर चिंतित हैं। उनकी सबसे बड़ी परेशान कांग्रेस का प्रदर्शन है। हालांकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 9 में 3 सीट जीती जबकि राजद 23 लड़कर 4 ही निकाल पाई। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट राजद से बेहतर है जबकि सीपीआई-माले से खराब जो 3 सीट लड़कर 2 जीत गई।
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बिहार में कांग्रेस नेताओं को आशंका है कि लालू यादव और तेजस्वी यादव विधानसभा चुनाव सीट बंटवारे में कांग्रेस पर 2020 से कम सीटें लड़ने का दबाव बनाएंगे। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि तेजस्वी चाहते हैं कि कांग्रेस इस बार 30-35 सीट पर लड़े। कांग्रेस को ये मंजूर नहीं है। कांग्रेस ने अपनी दावे को मजबूती देने के लिए ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ अभियान चलाने की भी घोषणा की है। इसका लक्ष्य दलित और पिछड़े ही हैं।
कांग्रेस नेता किशोर झा कहते हैं- “कांग्रेस मतदाताओं से रिश्ता मजबूत करने की कोशिश में तेजी ला रही है क्योंकि राजद की कोशिश है कि वो इसे 30-35 सीटों पर समेट दे।” किशोर झा ने कहा कि राजद नेताओं ने 2020 में खुलकर कांग्रेस को दोष दिया था जबकि यह बात सबको पता थी कि कांग्रेस को कमजोर सीटें दी गईं और उसकी सीटिंग सीट भी ले ली गई थी।
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कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और बिहार के प्रभारी शाहनवाज आलम पहले ही तेजस्वी यादव से एक अल्पसंख्यक डिप्टी सीएम बनाने की मांग कर चुके हैं। शाहनवाज उत्तर बिहार में घर बैठ गए पार्टी के नेताओं को वापस जोड़ने में जुटे हैं। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि शाहनवाज बिहार में जमीन पर प्रियंका गांधी को उतारने से पहले की तैयारी में जुटे हैं। इनका कहना है कि कांग्रेस इस मूड में है कि राजद अगर उसे किनारे लगाने की कोशिश करती है तो वो हर तरह से तैयार रहे। बिहार से ही संबंध रखने वाले दूसरे राष्ट्रीय सचिव चंदन यादव ने कहा कि आने वाले दिनों में राहुल के साथ-साथ कांग्रेस के बड़े नेताओं का बिहार दौरा बढ़ता ही जाएगा।