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Hindi Newsबिहार न्यूज़Phanishwar Nath Renu had predicted land survey in Bihar 70 year ago in Maila Aanchal

70 साल पहले फनीश्वरनाथ रेणु ने लगाया था भूमि सर्वे का अनुमान, मैला आंचल में जो बताया वह सब हो रहा

रेणु को देश में हो रहे राजनीतिक बदलाव तथा उसके परिणाम की अच्छी समझ थी। आजादी की लड़ाई, अंग्रेजों के भारत छोड़ने की पहले की स्थिति, कांग्रेस के सत्तासीन होने, जमींदारी प्रथा का अंत, उसके फलस्वरूप ग्रामीण जीवन में हुए हलचल पर उनकी पैनी नजर थी। वे इन सबका लोगों के जीवन पर पड़ने वाले असर से वाकिफ थे।

Sudhir Kumar हिन्दुस्तान, पूर्णिया, धीरजSat, 14 Sep 2024 11:23 AM
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बिहार में भूमि सर्वे चल रहा है। आज हर ओर इसी की चर्चा है। कोई बाप-दादा का खतियान ढूंढ़ रहा है तो कोई पूर्वजों के नाम। बस.. जमीन चाहिए, वह भी अपने नाम। हर गांव-अंचल की इस कहानी का अंदेशा 70 साल पहले रेणु को हो गया था। 1954 में प्रकाशित उनके उपन्यास मैला आंचल में लिखा गया है- किसी को किसी पर विश्वास नहीं है। सभी अपने-अपने फेर में है। गलत ढंग से नाम चढ़ाने के फेरे में हैं। देश की राजनीति में इन दिनों जातिगत जनगणना की भी चर्चा है। फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास की शुरुआत में ही जातिगत जनगणना की तरह वर्णन मिलता है। गांव में किस जाति के लोग कितने हैं, किसके पास कितनी संपत्ति है, कौन क्यों भारी है? इसका वर्णन बड़ी बेबाकी से हुआ है। सब जानते हैं, मैला आंचल उपन्यास से हिंदी गौरवान्वित हुआ है। विश्वव्यापी पहचान वाला उपन्यास है यह। इसके पाठक रूस, अमेरिका, जर्मनी से लेकर पूरे विश्व में मिल जाएंगे। मैला आंचल में एक आंचल ही नहीं बल्कि पूरा भारतवर्ष बोल रहा है। मैला आंचल में पूर्णिया जिले का नाम आता है इससे पूर्णिया जिला भी विश्व पटल पर अंकित हो गया। मैला आंचल में समाज में होने वाले परिवर्तन को सूक्ष्मता से पकड़ा गया है। तभी तो, 70 साल पहले लिखी गई बातें आज सच के रूप में सामने है।

रेणु को दूरगामी परिणाम की थी समझ

रेणु को देश में हो रहे राजनीतिक बदलाव तथा उसके दूरगामी परिणाम की अच्छी समझ थी। आजादी की लड़ाई, अंग्रेजों के भारत छोड़ने की ठीक पहले की स्थिति, कांग्रेस के सत्तासीन होने, जमींदारी प्रथा का अंत, उसके फलस्वरूप ग्रामीण जीवन में हुए हलचल पर उनकी पैनी नजर थी। वे इन सबका लोगों के जीवन पर पड़ने वाले असर से वाकिफ थे। अंग्रेजों का भारत छोड़ना तय जान कर जमींदार कांग्रेस में शामिल होने लगे। पैसे के बल पर उन्होंने पार्टी में बड़े-बड़े पद हथिया लिये। अंग्रेजों के खिलाफ सर पर कफन बांध कर लड़ने वाले लोग उपेक्षित हो गए। अंग्रेज तो गए पर शासन का तंत्र वही रहा। जो लोग अंग्रेजों के शासन में राजा, जमींदार, उच्च पदाधिकारी आदि बनकर शासन कर रहे थे, वे ही लोग आजादी के बाद सांसद, विधायक, मंत्री, उच्च पदाधिकारी बन कर अपना शासन चलाते हैं। रेणु अपनी गहरी राजनैतिक समझदारी के द्वारा ही ऐसी जटिल प्रक्रिया को समझ पाए हैं। उन दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रभाव इतना व्यापक नहीं था। इसके बावजूद मैला आंचल उपन्यास में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े छोटे-बड़े छह प्रसंग आए हैं।

 

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मैला आंचल की ख्याति देश और विदेश दोनों जगह फैली

मैला आंचल पर शोध करने वाले पूर्णिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में कार्यरत प्रो. जीतेंद्र वर्मा कहते हैं कि जर्मन के हिंदी विद्वान लोठार लुत्से को दिए गए एक साक्षात्कार में रेणु ने कहा है कि उपन्यास, उपन्यास है। आंचलिक क्या? इसकी भाषा को लेकर शुरू में लेखक के मन में एक भय था। इसलिए उन्होंने अपनी भूमिका में इसे आंचलिक उपन्यास का नाम दिया। बाद में लोगों ने इसके महत्व को कम करने के लिए आंचलिक उपन्यास का ठप्पा लगा दिया। मैला आंचल की ख्याति देश और विदेश दोनों जगह फैली हुई है। मैला आँचल में जो गांव सामने आया है वही वास्तविक गांव है। वे ग्रामीण लोगों पर दया नहीं उड़ेलते बल्कि उनका काइयांपन सामने रख देते हैं। उनके अनुसार गांव के लोगों के सीधेपन का मतलब हैं अनपढ़, अज्ञानी और अंधविश्वासी होना। परंतु, सांसारिक बुद्धि में वे शहरी लोगों को दिन में पांच बार ठग लेते हैं।

अक्सर गांवों की परंपरागत पंचायत व्यवस्था को आदर्श रूप में चित्रित किया जाता है पर रेणु ने इसकी असलियत को मैला आंचल में सामने रखा है। यहां तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद अपनी हर बात लोगों से मनवा लेता है। यह रेणु का साहस ही था कि वे पहले से चली आ रही धारणा को स्वीकार नहीं कर अपने अनुभव और अनुभूति के आधार पर बात कही।

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