कर्मचारी को क्या सजा मिले, नियोक्ता विभाग का विशेषाधिकार; पटना हाईकोर्ट का अहम फैसला
- पटना हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि नियोक्ता विभाग के पास यह विशेषाधिकारी है कि वो अपने किसी कर्मचारी को क्या सजा देता है। कोर्ट ने समय से पहले रिटायर किए गए एक हेडमास्टर की याचिका खारिज कर दी।
पटना हाईकोर्ट ने एक दूरगामी फैसले में कहा है कि यह नियोक्ता विभाग का विशेषाधिकार है कि वो अपने कर्मचारी को क्या दंड दे। राज्य सरकार ने एक आवासीय विद्यालय के प्रधानाध्यापक को समय से पहले रिटायर कर दिया था जिसे हेडमास्टर ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने हालांकि फैसले में ये साफ किया है कि उसने समय से पहले रिटायर करने के फैसले की समीक्षा नहीं की है, बल्कि समय से पहले सेवानिवृत्त करने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है, मात्र उसको न्यायिक कसौटी पर कसा है। पटना हाईकोर्ट के जस्टिस अंजनि कुमार शरण की अदालत ने यह फैसला दिया है।
अरवल आंबेडकर आवासीय कन्या उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक सुनील सिन्हा ने खुद को समय से पहले रिटायर करने के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सुनील सिन्हा की वकील महाश्वेता चटर्जी ने कोर्ट में बहस के दौरान कहा कि दी गई सजा बहुत कठोर है जिसे रद्द करना चाहिए। चटर्जी ने कहा कि कई गवाहों ने प्रधान के पक्ष में गवाही दी है जिससे लगता है कि उन्हें निगरानी विभाग के मुकदमे में गलत तरीके से फंसाया गया है।
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सरकार के वकील प्रशांत प्रताप ने बचाव पक्ष की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि सिन्हा को विजिलेंस टीम ने 31 मार्च 2016 को घूस लेते रंगे हाथ पकड़ा था। प्रताप ने कोर्ट से कहा कि सिन्हा के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं और विभाग ने उचित कार्यवाही की है। कोर्ट से सरकार के वकील ने कहा कि इस मामले में फैसला लेने की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है इसलिए सजा के आदेश में कोर्ट के दखल की जरूरत नहीं है।
हाईकोर्ट ने हेडमास्टर की अर्जी खारिज करते हुए विभागीय कार्रवाई को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत कोर्ट फैसला लेने की प्रक्रिया में निष्पक्षता की ही समीक्षा कर सकता है, फैसले की नहीं।
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