बिहार की अदालतों में जजों के एक चौथाई पद खाली, एक कोर्ट पर कितने मुकदमे? क्या कर रही सरकार
में उच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालतों में जजों के एक-चौथाई पद खाली पड़े हैं। हाईकोर्ट में जज के स्वीकृत पदों की संख्या 53 है, जिसमें 40 पद स्थाई और 13 अतिरिक्त पद शामिल हैं। जजों की संख्या कम होने से अदालतों पर मुकदमे का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।
बिहार में उच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालतों में जजों के एक-चौथाई पद खाली पड़े हैं। हाईकोर्ट में जज के स्वीकृत पदों की संख्या 53 है, जिसमें 40 पद स्थाई और 13 अतिरिक्त पद शामिल हैं। जजों की संख्या कम होने से अदालतों पर मुकदमे का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है और इससे केस के निपटारे में देरी के साथ साथ परेशानी हो रही है। सरकार के विधि विभाग की ओर से इसकी रिपोर्ट तैयार की गयी है ताकि इस समस्या से निजात पाया जा सके और आम जनों को त्वरित न्याय मिल पाए।
वर्तमान में इसमें 35 जज पदस्थापित हैं। इस तरह 18 पद खाली पड़े हैं। इसमें स्थाई पद में 5 और अतिरिक्त जज के 13 पद शामिल हैं। हाईकोर्ट को पिछले साल भी दो और इस वर्ष भी दो न्यायाधीश मिले हैं। बावजूद इसके 18 पद रिक्त पड़े हैं। विधि विभाग के स्तर से न्यायालयों में रिक्त पदों को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की गई है ताकि इन्हें भरने की कवायद शुरू की जा सके। इसके अतिरिक्त सभी निचली अदालतों में जज के स्वीकृत पदों की संख्या 2019 है। वर्तमान में इसमें 1536 जज हैं। इस तरह 483 पद रिक्त हैं।
दोनों श्रेणी के कोर्ट के पदों को अगर मिला दिया जाए, तो संख्या 2072 हो जाती है। हाईकोर्ट के 18 और निचली अदालतों के 483 पद को मिला खाली पदों की संख्या 501 हो जाती है। इस तरह एक चौथाई पद खाली हैं। इन पदों पर जल्द से जल्द बहाली आवश्यक है।
निचली अदालतों में प्रति जज 2344 मुकदमे
जजों की संख्या कम होने से कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या में लगातार बढ़ती जा रही है। इससे जजों पर मुकदमों के निपटारे का दबाव बढ़ता जा रहा है। निचली अदालतों में एक जज पर औसतन 2344 मुकदमों के निपटारे का जिम्मा पहले से है। जिला और अधिनस्थ अदालतों में 36 लाख से ज्यादा केस पेंडिंग हैं। हर साल औसतन एक लाख मुकदमों की संख्या बढ़ जाती है। जजों की मौजूदा संख्या से यह संख्या काफई अधिक है।