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बिहार में लाखों एकड़ जमीन का खाता-खेसरा लॉक, नीतीश के जमीन सर्वे के बीच नया बवाल

  • बिहार में जमीन का मालिकाना हक सुनिश्चित करने के मकसद से चल रहे सर्वेक्षण के बीच अब नीतीश कुमार सरकार ने राज्य की लाखों एकड़ जमीन का खाता-खेसरा लॉक कर दिया है ताकि कोई उसे कोई खरीद या बेच नहीं सके।

Ritesh Verma हिन्दुस्तान टाइम्स, अरुण कुमार, पटनाMon, 18 Nov 2024 06:44 PM
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बिहार में जमीन का मालिकाना हक तय करने के लिए चल रहे सर्वेक्षण के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने लाखों एकड़ जमीन का खाता-खेसरा लॉक कर दिया है ताकि उसे कोई अब खरीद या बेच नहीं सके। बड़े पैमाने पर जमीन के मालिकाना हक का रिकॉर्ड लॉक करने का मुद्दा बड़ा बवाल बन सकता है। राज्य सरकार ने कहा है कि सिर्फ उन जमीन का खाता-खेसरा लॉक किया गया है जो पहले के रिकॉर्ड में सरकारी भूमि के तौर पर दर्ज थी लेकिन बाद में धोखाधड़ी से उसे बेचा गया है या अवैध कब्जा किया गया है। विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने कहा है कि सरकार का ये कदम हजारों लोगों को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर करेगा।

राजस्व और भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) दीपक कुमार सिंह ने स्पष्ट किया है कि जमीन के दस्तावेजों को लॉक करने का सर्वेक्षण से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा- “जिला के स्तर पर लॉक करने का कम हो रहा है और जिला स्तरीय समिति आपत्तियों को देख रही है। सिर्फ उन जमीन को लॉक किया गया है जो पहले के सर्वे में सरकारी थी लेकिन उसे जालसाजी से किसी को बेच दिया गया है या उसका अतिक्रमण कर लिया गया है।”

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एसीएस दीपक सिंह ने कहा कि जमीन पर मालिकाना हक का दावा करने वालों को अपने पेपर दिखाने के लिए पर्याप्त समय दिया जा रहा है। एसीएस ने कहा- “90 दिन के अंदर उनको तीन बार आपत्ति दाखिल करने का मौका दिया जा रहा है। 90 दिन के बाद वो जिला भूमि ट्रिब्यूनल में जा सकते हैं। निबटारा अधिकारी के ऊपर भी एक अपील की व्यवस्था करने का विचार चल रहा है। अगर कोई जमीन गलती से लॉक कर दी गई है तो समुचित दस्तावेज दिखाने के बाद उसे खोल दिया जाता है।”

कृषि मंत्री के कार्यकाल में अपने बयानों के लिए चर्चा में रहे राजद सांसद सुधाकर सिंह ने कहा कि सरकारी जमीन के नाम पर जिला स्तर पर बड़े पैमाने पर जमीन के रिकॉर्ड को लॉक करना एक अजीब कदम है। जिनके नाम पर जमीन है, उन्हें कोई नोटिस तक नहीं दिया गया है। सुधाकर ने कहा कि व्यापक स्तर पर खाता-खेसरा लॉक करने से हजारों लोग कोर्ट जाने को मजबूर होंगे और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

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सुधाकर सिंह ने कहा- “अगर लोग कोर्ट जाने लगते हैं और कुछ तो चले भी गए हैं तो सोचिए कोर्ट पर कितना बोझ पड़ेगा। इन सबके केस को निपटाने में कोर्ट का कितना समय लगेगा। इसमें एक दशक तक का समय लग सकता है। हर जिले में लगभग 25 हजार एकड़ जमीन के औसतन 10 से 15 हजार खाता-खेसरा लॉक किए गए हैं। जमीन राष्ट्रीय संपत्ति है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सरकार उसकी मालिक है। सरकार को जमीन की प्रकृति तय करनी है और इसके दुरुपयोग को रोकना है।”

पूर्व मंत्री ने कहा कि आदेश जारी कर जिस तरह से कानून और कानूनी प्रक्रिया को राज्य सरकार दरकिनार कर रही है उससे जमीन मालिक और किसान डरे हुए हैं। किसानों को लग रहा है कि उद्योगपतियों को जमीन देने के लिए सरकार सुनियोजित तरीके से जमीन कब्जा कर लैंड बैंक बना रही है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को लगता है कि उसकी जमीन धोखे से बेची गई है या उसे कब्जा किया गया है तो उसकी एक कानूनी प्रक्रिया है। कोई अफसर जमीन का मालिकाना हक नहीं तय कर सकता है। सिर्फ अदालत ये काम कर सकती है।

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पटना हाईकोर्ट के सीनियर वकील योगेश चंद्र वर्मा का कहना है कि कई मसले हैं जिनका पहले समाधान होना है इसलिए कुछ समय के लिए जमीन सर्वेक्षण का काम रोका गया है। वो कहते हैं कि सबसे बड़ी समस्या जमीन के दस्तावेजों का अपडेट नहीं होना है। आज भी जमीन दादा और परदादा के नाम पर है लेकिन मौजूदा पीढ़ी बाहर चली गई। कई लोग हैं जिन्हें सामाजिक आंदोलन के दौरान या सरकार द्वारा ही बसाया गया लेकिन उनके पास जमीन पर कब्जा के बाद भी कोई पेपर नहीं है जो वो मालिकाना हक के लिए दिखा सकें। वर्मा ने कहा कि सरकार को सबसे पहले जमीन के रिकॉर्ड ठीक करना चाहिए था और तब सर्वे करवाना चाहिए था।

वकील ने कहा कि जमीन की आगे रजिस्ट्री रोकने के लिए खाता-खेसरा को लॉक करने से सर्वे का भी उद्देश्य खत्म हो रहा है। देश की व्यवस्था में जो शक्तियों का बंटवारा हुआ है उसमें सरकार को ये अधिकार नहीं है कि वो जमीन का टाइटल तय करे। ये स्थापित न्यायिक प्रक्रिया के रास्ते ही हो सकता है।

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योगेश वर्मा ने कहा- “बिहार में प्रावधान है कि राजस्व अधिकारियों के निर्णय को सिर्फ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसकी संवैधानिक वैद्यता का भी परीक्षण होना चाहिए। हाईकोर्ट में पहले से ही बहुत केस लंबित हैं। और मुकदमों से कितना बोझ बढ़ेगा।” वर्मा ने कहा कि बिहार पंजीयन कानून में रजिस्ट्रार को खाता-खेसरा लॉक करने का अधिकार है अगर कोई विवाद हो लेकिन इस पैमाने पर ये काम करना गंभीर सवाल पैदा करता है।

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