मखाना, सिल्क, कतरनी; बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के कालेजों को विश्व में पहचान दिलाएंगे ये प्रॉडक्ट
- जो उत्पाद कॉलेजों के लिए चिह्नित किए जा रहे हैं वे क्षेत्रीयता के आधार होंगे। इसके लिए वहां की जलवायु के अनुकूल होने वाली फसलों को चुना जाएगा। उसके बाद अन्य ऐसे प्रभेद जो उस मौसम में नहीं हो पाते हैं उस पर शोध किया जाएगा, ताकि सभी इलाकों में क्षेत्रीय उत्पादों की खेती आसानी से की जा सके।
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बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर में किसानों की समृद्धि के लिए नए-नए शोध होते हैं। इसकी ख्याति देश ही नहीं विदेशों तक है। इसी तरह अब बीएयू अपने कॉलेजों को भी विशेष उत्पादों के ब्रांड के रूप में पहचान दिलाएगा। इसके लिए कुलपति प्रो. दुनिया राम सिंह ने सभी कॉलेजों के प्राचार्य को जरूरी निर्देश दिया है। यही नहीं इसके लिए विवि अपने स्तर से भी कार्य कर रहा है, ताकि कॉलेजों की अलग पहचान बन सके।
कुलपति ने बताया कि जो उत्पाद कॉलेजों के लिए चिह्नित किए जा रहे हैं वे क्षेत्रीयता के आधार होंगे। इसके लिए वहां की जलवायु के अनुकूल होने वाली फसलों को चुना जाएगा। उसके बाद अन्य ऐसे प्रभेद जो उस मौसम में नहीं हो पाते हैं उस पर शोध किया जाएगा, ताकि सभी इलाकों में क्षेत्रीय उत्पादों की खेती आसानी से की जा सके। यही नहीं वहां की मिट्टी को भी बीएयू नमूने के रूप में एकत्र करेगा। अपने विशिष्ट उत्पाद के लिए कॉलेज विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाएंगे। यह बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के लिए विकास की नई इबारत लिखेगा।
क्षेत्रीय उत्पादों पर शोध के लिए जाने जाएं कॉलेज
वीसी ने कहा कि लक्ष्य है कि उसके सभी कॉलेज क्षेत्रीय उत्पादों पर शोध के लिए जाने जाएं। सबौर कृषि कॉलेज के लिए कतरनी, जर्दालू आम, मगही पान आदि के लिए जाना जाएगा। नालंदा कॉलेज ऑफ हॉटीकल्चर नूरसराय को मूंगफली, सिंघाड़ा, वीर कुंवर सिंह कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर डुमरांव को धान, डॉ. कलाम एग्रीकल्चर कॉलेज किशनगंज को चाय, रेशम और अनानास, मंडन भारती कृषि कॉलेज सहरसा को सब्जी और मखाना, भोला पासवान शास्त्री एग्रीकल्चर कॉलेज पूर्णिया को मखाना के लिए जाना जाएगा।
क्या कहते हैं अधिकारी?
बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सभी कॉलेज अपने अपने विशेष उत्पादों के लिए जाने जाएंगे। इसके लिए क्षेत्र के आधार पर उत्पाद को चिह्नित कर शोध के लिए कहा गया है। - प्रो. दुनिया राम सिंह, कुलपति