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बिहार में शराबबंदी का मतलब अधिकारियों की मोटी कमाई; पटना हाईकोर्ट की तीखी प्रतिक्रिया

बिहार में शराबबंदी को लेकर पटना हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि शराबबंदी कानून ने शराब और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं अनधिकृत व्यापार को बढ़ावा दिया है। साथ ही ये सरकारी अधिकारियों के लिए मोटी कमाई का एक साधन बन गया है।

sandeep हिन्दुस्तान, पटना, अरुण कुमारFri, 15 Nov 2024 08:13 PM
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बिहार में लागू शराबबंदी को लेकर पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की खिचाई करते हुए कहा कि बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 भटक गया है, राज्य में शराब और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं के अनधिकृत व्यापार को बढ़ावा मिला है। तमाम विभागों के अधिकारियों के लिए मोटी कमाई का एक सिस्टम बन गया है। न्यायमूर्ति पूर्णेंदु सिंह ने इंस्पेक्टर मुकेश कुमार पासवान के खिलाफ डीजीपी द्वारा जारी किए गए सस्पेंशन और डिमोशन के आदेश को रद्द करने की याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 47 जीवन स्तर को ऊपर उठाने और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य के कर्तव्य को अनिवार्य बनाता है। जिसके लिए राज्य सरकार ने बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 लागू किया है। लेकिन कई कारणों से यह इतिहास के गलत पक्ष में जा रहा है।

सख्त प्रावधान पुलिस के लिए उपयोगी हो गए हैं, जो तस्करों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। तस्करी के लिए नए तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। न केवल पुलिस अधिकारी, उत्पाद शुल्क अधिकारी, बल्कि राज्य कर विभाग और परिवहन विभाग के अधिकारी भी शराबबंदी को पसंद करते हैं, क्योंकि उनके लिए इसका मतलब मोटी रकम है। ये बात न्यायमूर्ति पूर्णेंदु सिंह ने आदेश में कही। जिसे बुधवार शाम अपलोड किया गया।

पटना हाईकोर्ट ने कहा कि शराब पीने वाले और जहरीली शराब की त्रासदी का शिकार होने वाले गरीबों के खिलाफ दर्ज मामलों के मुकाबले सरगना और सिंडिकेट संचालकों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या कम है। खराब जांच के चलते ही माफिया बिना डर के काम कर रहे हैं। जांच अधिकारी (आईओ) जानबूझकर किसी भी कानूनी दस्तावेज के साथ अभियोजन पक्ष के मामले में लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं करता है। खोज, जब्ती और जांच नहीं करके सबूतों के अभाव में माफिया को छूट देने के लिए ऐसी खामियां छोड़ दी जाती हैं। न्यायाधीश ने कहा कि इस कानून का दंश झेल रहे राज्य के अधिकांश लोग गरीब तबके के हैं, दिहाड़ी मजदूर हैं जो अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं।

आपको बता दें कि याचिकाकार्ता मुकेश कुमार पासवान पटना बाईपास पुलिस स्टेशन में इंस्पेक्टर के रूप में कार्यरत थे। उन्हें इसलिए निलंबित कर दिया गया था क्योंकि राज्य के एक्साइज अधिकारियों ने उनके थाने से लगभग 500 मीटर दूर छापेमारी की थी और 4 लाख रुपए की विदेशी शराब जब्त की थी। उन्होंने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए अदालत का रुख किया। उन्होंने विभागीय जांच के दौरान भी अपना पक्ष रखा। हाईकोर्ट ने पाया कि यह सजा पहले से निर्धारित थी, जिससे पूरी विभागीय प्रक्रिया मात्र औपचारिकता बनकर रह गई। अदालत ने न केवल सजा के आदेश को रद्द किया, बल्कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई पूरी विभागीय कार्रवाई को भी रद्द कर दिया।

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