रामविलास वाले दफ्तर में 3 साल बाद चिराग पासवान की एंट्री, पारस का पता अब लोजपा-आर के पास
पटना स्थित लोजपा के दफ्तर में करीब तीन साल बाद केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के गुट की वापसी हुई है। चिराग ने नारियल फोड़कर दफ्तर में प्रवेश किया और कहा कि यहां से उनके पिता की यादें जुड़ी हुई हैं। इस कार्यालय को उनके चाचा पशुपति पारस से खाली करवाया गया था।
केंद्रीय मंत्री प्रमुख चिराग पासवान ने गुरुवार को अपने दिवंगत पिता रामविलास वाले दफ्तर में प्रवेश किया। बिहार सरकार ने हाल ही में इसे चिराग की पार्टी लोजपा-आर (लोजपा-रामविलास) को आवंटित किया था। पटना एयरपोर्ट के पास स्थित यह कार्यालय बीते तीन साल से उनके चाचा पशुपति पारस के गुट वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के पास था। भवन निर्माण विभाग द्वारा आवंटन रद्द किए जाने के बाद रालोजपा ने दो दिन पहले इस परिसर को खाली किया था। चिराग ने शुक्रवार को नारियल फोड़कर लोक जनशक्ति पार्टी के पुराने कार्यालय में प्रवेश किया। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस कार्यालय से उनके पिता रामविलास पासवान की यादें जुड़ी हुई हैं। इस दौरान उन्होंने अपने चाचा पारस पर भी हमला बोला।
पटना एयरपोर्ट के पास 1, शहीद पीर अली खान मर्ग (व्हीलर रोड) स्थित परिसर को साल 2004 में लोक जनशक्ति पार्टी को आवंटित किया गया था। लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान का लंबा राजनातिक करियर इसी दफ्तर से चला। उनके निधन के बाद लोजपा में टूट हो गई। उनके भाई पशुपति पारस और बेटे चिराग पासवान ने अपने-अपने अलग गुट बना लिए। लोजपा के कार्यालय पर पारस गुट ने कब्जा जमा दिया। तब से यह कार्यालय रालोजपा के पास ही था।
पिछले दिनों बिहार सरकार के भवन निर्माण विभाग ने इस कार्यालय के आवंटन को रद्द कर दिया। विभाग ने आवंटन को रिन्यू नहीं कराने का हवाला देते हुए पारस की पार्टी रालोजपा से परिसर खाली करने का नोटिस भेजा था। इसके खिलाफ पारस ने अदालत का दरवाजा भी खटखटाया। हालांकि, गुरुवार को उन्होंने यह कार्यालय खाली कर दिया। इस बीच राज्य सरकार ने इस कार्यालय को पारस के भतीजे चिराग पासवान के गुट वाली पार्टी लोजपा (रामविलास) को आवंटित किया।
लोजपा कार्यालय में प्रवेश करने के बाद शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री चिराग ने कहा कि इस दफ्तर से उनके पिता और पूरे परिवार की यादें जुड़ी हुई हैं। उन्हें यह कार्यालय फिर से मिल गया है। निश्चित तौर पर इस कार्यालय से हमारे चाचा की भी यादें जुड़ी हैं, लेकिन परिस्थितियां बदलती हैं। यह परिस्थिति उन्हीं के द्वारा बनाई गई है कि आज हम लोग अलग-अलग हैं।