500 एकड़ में होगी कम पानी व कम दिन पैदा होनेवाले धान
जंगल व पहाड़ से घिरे अधौरा प्रखंड के 600 से ज्यादा किसान खरीफ सीजन में करेंगे पांच प्रजाति के धान की रोपनी ज्यादा दिन वाले धान की उपज 60-65 व कम दिन वाले की 40-45 क्विंटल

जंगल व पहाड़ से घिरे अधौरा प्रखंड के 600 से ज्यादा किसान खरीफ सीजन में करेंगे पांच प्रजाति के धान की रोपनी सामान्य धान 150-55 दिन व कम पानी वाले धान 115-20 दिन में होंगे तैयार ज्यादा दिन वाले धान की उपज 60-65 व कम दिन वाले की 40-45 क्विंटल 10 हजार क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग एक एकड़ में हो रहा है 40 से 50 फीसदी कम पानी का उपयोग होगा नई विधि से खेती पर (डिफ्रेंशिएटर/पेज चार की लीड खबर) भभुआ, कार्यालय संवाददाता। इस वर्ष कैमूर के किसान खरीफ मौसम में कम पानी व कम दिन में उपजने वाले धान की खेती करेंगे।
ऐसी खेती करनेवाले किसानों की संख्या 600 से ज्यादा होगी। जंगल व पहाड़ से घिरे अधौरा प्रखंड के किसान 500 एकड़ में विभिन्न प्रजाति के धान उपजाएंगे। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र इन किसानों को प्रशिक्षित करेगा और अपनी देखरेख में किसानों से खेती कराएगा। इसकी पुष्टि कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार सिंह ने दी और बताया कि कम दिन व कम पानी में उपजनेवाले धान में बीमारी कम लगती है। उन्होंने बताया कि चैनपुरा, सिकरवार, पिपरा, खामकला, अधौरा सहित अन्य गांवों में सब्बौर अर्धजल, अभिषेक, हर्षित, सहभागी, एमटीयू 10-10 प्रभेद के धान की खेती कराई जाएगी। इस प्रजाति के धान की खेती करने में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। पूछने पर उन्होंने बताया कि इसकी फसल 115 से 120 दिन में तैयार हो जाएगी। प्रति हेक्टेयर 40-45 क्विंटल धान का उत्पादन होगा। जबकि एमटीयू 70 कुंती, राजेंद्र मंसूरी वन, स्वर्णा सब वन प्रभेद के धान 150-155 दिनों में तैयार होता है। ज्यादा पानी व ज्यादा समय में प्रति हेक्टेयर 60-65 क्विंटल धान की उपज होती है। अब सूखा प्रतिरोधी धान की खेती करना मुमकिन हो गया है। इसका मतलब यह हुआ कि धान के खेत को हमेशा पानी से भरा हुआ रखे बिना भी इसकी खेती की जा सकती है। नई तकनीक से धान की फसल के लिए पानी की जरूरत में 40 से 50 फीसदी तक कम करने में मदद मिलेगी। कुछ इसी तरह के प्रभेद वाले धान व मोटा अनाज की खेती खरीफ सीजन में कृषि विज्ञान केंद्र कराएगा। जलवायु परिवर्तन से खेतीबारी प्रभावित हो रही है। बेसमय बारिश के कारण खेती भी असमय हो गई है। जहां धान लगाने में दिक्कत हो रही है, वहां के किसान धान के अलावा कम पानी में तैयार होनेवाले मोटा अनाज में मड़ुआ, ज्वार, बाजरा, मक्का, सावां, कोदो, चिने, काकुल आदि फसल की खेती कर लाभ कमा सकते हैं। धान की सीधी बुआई से होगी पानी की बचत डॉ. अमित ने बताया कि डीएसआर मशीन से धान की सीधी बुआई कर पानी की बचत की जाएगी। रेज्ड बेड मशीन से मेढ़ पर बुआई होगी। किसानों को प्रशिक्षण देकर मुफ्त में बीज, खाद दी जाएगी। मशीन भी उपलब्ध कराई जाती है। धान की फसल के लिए प्रति एकड़ करीब 10 हजार क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग हो रहा है। किसान औसतन धान के सीजन में 15 बार सिंचाई करते हैं। पानी का ज्यादा उपयोग भी फसल के लिए नुकसानदायक ही रहता है। इसलिए किसानों को टैंसो मीटर जैसे उपकरण का उपयोग करना चाहिए, ताकि गिरते भू-जल को बचाया जा सके। अधौरा में सिंचाई का पुख्ता प्रबंध नहीं खामकला के लालसाहेब सिंह, चैनपुरा के वंशी राम, सिकरवार के रामसकल खरवार, पिपरा के भोलायादव, अधौरा के पीर मोहम्मद मियां ने बताया कि अधौरा प्रखंड में सिंचाई का बेहतर प्रबंध नहीं है। वहां के किसान वर्षा के पानी पर निर्भर होकर खेती करते हैं। अगर बारिश नियमित हुई तो उपज अच्छी होगी, अन्यथा खेत परती रह जाते हैं। यहां से दुर्गावती, सुवरा व कर्मनाशा नदी निकली है। लेकिन, जब बारिश होती है, तभी इसमें पानी दिखता है। हालांकि इस नदी के पानी का लाभ समीप के किसानों को मिलता है। चेकडैम व पोखरे भी बने हैं। लेकिन, पर्याप्त नहीं हैं। यह जलस्रोत भी तभी काम आते हैं, जब पहाड़ का पानी इसमें जमा होता है। बिना पानी के कर सकते हैं बुआई धान की खेती की ऐसी ही सीधी बुआई की विधि है, जिसमें न तो खेत में पानी भरना पड़ता है और न ही रोपाई करनी पड़ती है। इस विधि से बुआई करने के लिए बीज की सीधी बुआई की जाती है। जहां पर सिंचाई का साधन नहीं है, वहां के किसान धान की अच्छी खेती कर सकते हैं। एक एकड़ में धान की बुआई के लिए 6 किलो बीज की जरूरत होती है। इसे सूखी जमीन पर भी लगाया जा सकता है। फोटो- 13 मई भभुआ- 3 कैप्शन- नुआंव में खेतीबारी को लेकर महिला-पुरुष किसानों को प्रशिक्षण देते कृषि वैज्ञानिक (फाइल फोटो)।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।