कैसे खुद सोचती और दौड़ती हैं सेल्फ-ड्राइविंग कारें? भारत में इनका क्या भविष्य? यहां जानें इससे जुड़ी हर एक डिटेल
सेल्फ-ड्राइविंग कारें…अमेरिका और चीन जैसे देशों में इन कारों ने ट्रांसपोर्ट को बिल्कुल आसान बना दिया है। हालांकि, भारत जैसे देश में सड़क सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, ऐसे में भारत में सेल्फ-ड्राइविंग कारों का क्या भविष्य है? आइए इसे जरा विस्तार से समझते हैं।
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में हर दिन नई-नई तकनीकें सामने आ रही हैं। उनमें से एक तकनीक जो आने वाले समय में पूरी दुनिया को बदल सकती है, वह सेल्फ-ड्राइविंग कार (Self-Driving Cars) या ऑटोनॉमस कार सिस्टम है। इसे ड्राइवर-लेस कारों के नाम से भी जाना जाता है। ये कारें इंसानी ड्राइविंग की आवश्यकता को समाप्त कर सकती हैं और हमारी सड़कों को अधिक सुरक्षित और कुशल बना सकती हैं। अमेरिका और चीन जैसे देशों में सेल्फ-ड्राइविंग कारें ट्रांसपोर्ट को काफी आसान बना रही हैं। हालांकि, भारत जैसे देश में सड़क सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था अभी भी एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में भारत में सेल्फ-ड्राइविंग कारों का भविष्य क्या है? आइए इसे जरा विस्तार से समझते हैं, लेकिन उससे पहले जानते हैं कि सेल्फ-ड्राइविंग कारें काम कैसे करती हैं…
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क्या हैं सेल्फ-ड्राइविंग कारें?
सेल्फ-ड्राइविंग कारें (Self-Driving Cars) या ऑटोनॉमस व्हीकल्स वे व्हीकल होते हैं, जो बिना किसी इंसानी हस्तक्षेप के खुद ही सड़कों पर चल सकती हैं। इनमें एडवांस सेंसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), कैमरा सिस्टम और LIDAR (Light Detection and Ranging) जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये तकनीकें वाहन को उसके आस-पास की स्थिति को समझने, ट्रैफिक सिग्नल्स को पढ़ने और दूसरे वाहनों से दूरी बनाए रखने में मदद करती हैं।
सेल्फ-ड्राइविंग कारों के 5 ऑटोमेशन लेवल
सेल्फ-ड्राइविंग कारें (Self-driving Cars) तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अद्भुत उदाहरण हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि सेल्फ-ड्राइविंग के भी अलग-अलग लेवल होते हैं? आइए इन लेवल को सरल भाषा में समझते हैं।
लेवल 1: ड्राइवर असिस्टेंस (Driver Assistance)
यह ऑटोमेशन का पहला लेवल है। इसमें कार ड्राइवर की मदद कर सकती है, लेकिन एक बार में केवल एक ही कार्य, जैसे कि स्टीयरिंग या ब्रेक लगाना।
ड्राइवर की भूमिका: ड्राइवर को हमेशा सतर्क रहना होगा और नियंत्रण बनाए रखना होगा।
उदाहरण: अडॉप्टिव क्रूज कंट्रोल (Adaptive Cruise Control)
लेवल 2: पार्शियल ड्राइविंग ऑटोमेशन (Partial Driving Automation)
इस ऑटोमेशन लेवल पर कार दो या अधिक कार्यों को एक साथ कर सकती है, जैसे स्टीयरिंग और ब्रेकिंग। हालांकि, ड्राइवर को हमेशा सतर्क रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर तुरंत कंट्रोल संभालना चाहिए।
ड्राइवर की भूमिका: कार की एक्टिविटी पर नजर रखनी होगी।
उदाहरण: टेस्ला का ऑटोपायलट सिस्टम।
लेवल 3: कंडीशनल ड्राइविंग ऑटोमेशन (Conditional Driving Automation)
ये लेवल ज्यादा एडवांस है। इसमें कार कुछ खास परिस्थितियों में (जैसे हाईवे पर) खुद से सभी कार्य कर सकती है। हालांकि, ड्राइवर को जरूरी होने पर कंट्रोल लेने के लिए तैयार रहना होगा।
ड्राइवर की भूमिका: केवल विशेष परिस्थितियों में हस्तक्षेप करें।
उदाहरण: हाईवे पर लेन बदलने वाली ऑटोमेटेड कारें।
लेवल 4: हाई ड्राइविंग ऑटोमेशन (High Driving Automation)
इस लेवल पर कार खुद से ड्राइव कर सकती है, लेकिन केवल कुछ खास परिस्थितियों में ड्राइवर को हस्तक्षेप करना होगा।
ड्राइवर की भूमिका: कार चलाने की जरूरत नहीं, लेकिन कुछ सीमित परिस्थितियों में कंट्रोल ले सकते हैं।
उदाहरण: ऑटोमेशन टैक्सी सर्विस (Waymo One जैसी सर्विस)।
लेवल 5: फुल ड्राइविंग ऑटोमेशन (Full Driving Automation)
यह ऑटोमेशन का सबसे एडवांस लेवल है। इस लेवल पर कार किसी भी स्थिति में बिना ड्राइवर के पूरी तरह खुद से चल सकती है। हालांकि, ऐसी कारें भविष्य की ओर बढ़ रही हैं और अभी उपलब्ध नहीं हैं।
ड्राइवर की भूमिका: कोई आवश्यकता नहीं।
सेल्फ-ड्राइविंग कारों का डेवलपमेंट और टेस्टिंग करने वाली कंपनियों में ऑडी, बीएमडब्ल्यू, फोर्ड, गूगल, जनरल मोटर्स, टेस्ला, फॉक्सवैगन और वोल्वो शामिल हैं। बता दें कि गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट इंक. की ऑटोनॉमस कार टेस्टिंग प्रोजेक्ट वेमो (Waymo) में टोयोटा प्रियस और ऑडी टीटी समेत सेल्फ-ड्राइविंग कारों का एक बेड़ा शामिल है, जो सड़कों और हाईवे पर सैकड़ों हजारों मील की दूरी तय करती हैं।
भारत में सेल्फ-ड्राइविंग कारों का भविष्य
भारत जैसे देश में जहां सड़कें अक्सर भीड़भाड़ और अव्यवस्थित ट्रैफिक से भरी होती हैं, सेल्फ-ड्राइविंग कार्स (Self-Driving Cars) का ऑपरेशन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, कई कंपनियां भारत की परिस्थितियों के अनुसार अपने वाहनों को तैयार कर रही हैं।
भारत में लॉन्च होने वाली सेल्फ-ड्राइविंग कारें
1. Tesla Model 3 और Model Y
एलन मस्क की कंपनी टेस्ला (Tesla) पिछले कई सालों से भारत में एंट्री करने की कोशिश कर रही है। अपनी सेल्फ-ड्राइविंग तकनीक के साथ कंपनी Model 3 और Model Y को लॉन्च करने की योजना बना रही है। टेस्ला (Tesla) की ऑटोपायलट तकनीक गाड़ी को खुद ड्राइव करने, लेन बदलने और पार्किंग करने में सक्षम है।
2. Mercedes-Benz EQS
Mercedes-Benz ने अपनी नई इलेक्ट्रिक और ऑटोनॉमस कार EQS को पेश किया है। इसमें लेवल-3 ऑटोनॉमी दी गई है, जो ड्राइवर को सड़क की ओर ध्यान दिए बिना गाड़ी चलाने की अनुमति देती है।
3. BMW iX
BMW iX भारत में जल्द लॉन्च होने वाली है। ये AI-पावर्ड ड्राइविंग असिस्ट सिस्टम के साथ आती है। यह सिस्टम गाड़ी को सुरक्षित रूप से लेन में बनाए रखने और ट्रैफिक को समझने में मदद करता है।
4. Hyundai Ioniq 5
हुंडई आयनिक 5 (Hyundai Ioniq 5) को एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम (ADAS) के साथ डिजाइन किया गया है। यह सिस्टम गाड़ी को ट्रैफिक जाम में खुद चलाने और ऑटोनॉमस पार्किंग की सुविधा देता है।
भारत में सेल्फ-ड्राइविंग कारों के लिए क्या चुनौतियां?
ट्रैफिक: भारत की सड़कें अतिक्रमण, भीड़भाड़ और ट्रैफिक की समस्या से जूझ रही हैं, जिस कारण चुनौती बढ़ जाती है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर: सेल्फ-ड्राइविंग कार्स को सुचारू रूप से चलाने के लिए स्मार्ट सड़कों और ट्रैफिक लाइट्स की आवश्यकता होती है, जो देश के हर जगह नहीं हैं। इनमें अभी काफी कमियां हैं।
कानूनी नियम: भारत में ऑटोनॉमस व्हीकल्स के लिए अभी कोई स्पष्ट कानून नहीं है।
संभावनाएं क्या हैं?
सड़क सुरक्षा में सुधार: इन वाहनों के जरिए एक्सीडेंट्स की संभावना कम हो सकती है।
पर्यावरण अनुकूल: सेल्फ-ड्राइविंग कार, खासतौर पर इलेक्ट्रिक मॉडल्स, प्रदूषण को कम करने में मदद करेंगी।
सुविधा और आराम: लंबी यात्रा के दौरान ड्राइवर को आराम करने का मौका मिलेगा।
क्या सेल्फ-ड्राइविंग कारें भारत के लिए सही हैं?
भारत में सेल्फ-ड्राइविंग कार (Self-Driving Cars) का आना निश्चित रूप से एक क्रांतिकारी कदम होगा। हालांकि, इसके लिए एक बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर, बेहतर ट्रैफिक नियमों और जन जागरूकता की आवश्यकता होगी। फ्यूचरिस्टिक कारें खासकर सेल्फ-ड्राइविंग तकनीक, भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में नए आयाम स्थापित कर सकती है। जैसे-जैसे तकनीकी प्रगति हो रही है, वैसे-वैसे भारत भी इस बदलाव के लिए तैयार हो रहा है। उम्मीद की जाती है कि आने वाले सालों में सड़कें स्मार्ट होंगी, कारें ज्यादा सुरक्षित और हमारा सफर पहले से कहीं ज्यादा आरामदायक होगा।
ऑटोनॉमस कारों से एक्सीडेंट की रिपोर्ट
ऐसा कहा जा रहा है कि फोर्ब्स के एक सर्वे में पाया गया है कि वर्तमान में अन्य वाहनों की तुलना में प्रति मील दोगुने से अधिक दुर्घटनाएं सेल्फ-ड्राइविंग कारों (Self-Driving Cars) से होती हैं। 2022 के एक उदाहरण में टेस्ला की आलोचना की गई थी, क्योंकि एक वीडियो में टेस्ला कार ऑटो-ब्रेक टेस्ट के दौरान एक बच्चे के टेस्ट डमी से टकरा गई थी। इसके अलावा टेस्ला कारों के दुर्घटनाग्रस्त होने की कई रिपोर्टें आई हैं, जिनमें ऑटोनॉमस कारें शामिल थीं। एक उदाहरण 2023 में हुआ, जब एक छात्र बस से उतर रहा था और उसे एक टेस्ला मॉडल वाई ने टक्कर मार दी, जो फुली ऑटोनॉमस मोड में थी। हालांकि, छात्र को शुरू में जानलेवा चोटें आईं, लेकिन दुर्घटना के कुछ दिनों बाद उन्हें अच्छी स्थिति में अपग्रेड कर दिया गया।
सेल्फ-ड्राइविंग कारों का इतिहास
सेल्फ-ड्राइविंग कारों (Self-Driving Cars) की ओर जाने का सफर साल 2000 से पहले ही शुरू हो चुका था, जब सुरक्षा और सुविधा के लिहाज से क्रूज कंट्रोल और एंटीलॉक ब्रेकिंग सिस्टम जैसे ऑटोमेशन फीचर की शुरुआती मानी जाती है।
(Source-forbes, techtarget, tesla & Waymo)
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