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मेष से लेकर मीन राशि वाले शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए रोजाना करें ये उपाय, दुख- दर्द होंगे दूर

Shani: शनि के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए शनिदेव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। शनि के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीMon, 27 May 2024 06:05 AM
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Shani Dev : शनि के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए शनिदेव की पूजा- अर्चना करनी चाहिए। शनि के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वजह से व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस समय कुंभ, मकर, मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और कर्क, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति के लिए रोजाना दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ जरूर करें। दशरथ कृत शनि स्तोत्र की रचना भगवान श्री राम के पिताजी राजा दशरथ ने की थी। दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या वाले रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करें। हनुमान जी इस कलयुग में जागृत देव हैं और हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। आगे पढ़ें दशरथ कृत शनि स्तोत्र और हनुमान चालीसा-

  • राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
 
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
 
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ  वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
 
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
 
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
 
तपसा दग्धदेहाय नित्यं  योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
 
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
 
देवासुरमनुष्याश्च  सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

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प्रसाद कुरु  मे  देव  वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद  सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।

  • श्री हनुमान चालीसा- (Shree Hanuman Chalisa)

श्रीगुरु चरन सरोज रज
निजमनु मुकुरु सुधारि
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुण्डल कुँचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेउ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जग वंदन।।

बिद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचन्द्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये
श्री रघुबीर हरषि उर लाये
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना
लंकेश्वर भए सब जग जाना
जुग सहस्र जोजन पर भानु
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रच्छक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तें काँपै
भूत पिसाच निकट नहिं आवै
महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरन्तर हनुमत बीरा
संकट तें हनुमान छुड़ावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु सन्त के तुम रखवारे
असुर निकन्दन राम दुलारे।।

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुह्मरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै
अन्त काल रघुबर पुर जाई
जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जय जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बन्दि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा

तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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