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pitru paksha shradh 2022 : आज धरती पर आएंगे पितृ देव, 25 सितंबर तक चलेगा श्राद्ध पक्ष, जानें इन 16 दिनों में क्या करें

pitru paksha shradh 2022 : आईआईटी स्थित सस्वती मंदिर के पुजारी आचार्य राकेश शुक्ल ने बताया कि भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्णा अमावस्या तक का समय पितृपक्ष कहलाता है। इसे महालया भी कहते हैं।

Yogesh Joshi संवाददाता, रुड़कीSat, 10 Sep 2022 12:09 AM
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पितृ पक्ष आज से शुरू हो जाएगा। 25 सितंबर को पितृ विसर्जन अमावस्या के साथ श्राद्ध पक्ष का समापन होगा।

आईआईटी स्थित सस्वती मंदिर के पुजारी आचार्य राकेश शुक्ल ने बताया कि भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्णा अमावस्या तक का समय पितृपक्ष कहलाता है। इसे महालया भी कहते हैं। यह वह समय होता है जब हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप में यमराज की आज्ञा से पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने वंशजों से पिंडदान, तर्पण, भोजन आदि की कामना करते हैं। पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक किया गए यह कार्य श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के तीन अंग है पहला पिंडदान, दूसरा तर्पण, तीसरा ब्राह्मण भोजन। इन तीनों क्रियाओं को करके श्राद्ध की पूर्ति की जाती है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं। आचार्य शुक्ल ने बताया कि श्राद्ध करते समय हमें बहुत सारी बातों का ध्यान रखना चाहिए। शास्त्र की आज्ञा के अनुसार श्राद्ध कर्म दूसरों की भूमि पर नहीं करना चाहिए।

इसके अलावा श्राद्ध में सुपात्र और सुयोग्य ब्राह्मण को भोजन में आमंत्रित करना चाहिए। भोजन कराते समय ब्राह्मण से भोजन के बारे में नहीं पूछना चाहिए कि भोजन कैसा बना है। इसके अतिरिक्त यदि हम तर्पण और पिंडदान करते हैं तो पिता कुल के साथ मात्री कुल के भी तीन पीढ़ियों को जल अंजलि एवं पिंड दान देना चाहिए। ऐसा न करने से श्राद्ध कर्म की पूर्णता नहीं होती होती है। श्राद्ध पारिजात के अनुसार नाना परनाना, वृद्ध परनाना साथ ही नानी, परनानी, वृद्ध परनानी इन तीन पीढ़ियों के अंतर्गत आते हैं। इसी तरह पिता कुल में पिता, पितामह परपितामह, माता प्रमाता, वृद्ध प्रमाता को सम्मिलित किया गया है। तीन पीढ़ी पिता कुल के तथा तीन पीढ़ी माता कुल को पिंड दान आदि करना आवश्यक होता है।

श्राद्ध कर्म में तर्पण के लोहे के पात्र का निषेध माना गया। इसकी जगह मिट्टी का पात्र प्रयोग किया जा सकता है। धातु के पात्र जैसे चांदी, तांबा, पीतल आदि बहुत ही पवित्र माने गए हैं। श्राद्ध में गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देवताओं को भोजन की बलि दी जाती है। यह पंचतत्व से निर्मित शरीर की पुष्टि करती है।

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