Shradh : 16 दिवसीय पितृपक्ष आज से, तृतीया-चतुर्थी का श्राद्ध एक दिन, जानें क्यों होता है श्राद्ध? नोट कर लें संक्षिप्त विधि, तर्पण का समय
अपने पूर्वजों के प्रति समर्पित सोलह दिन का श्राद्ध पक्ष शनिवार 10 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है। बाकी सारी तिथियां तो यथावत हैं लेकिन तृतीया और चतुर्थी का श्राद्ध एक ही दिन 13 सितंबर को होगा।
अपने पूर्वजों के प्रति समर्पित सोलह दिन का श्राद्ध पक्ष शनिवार 10 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है। बाकी सारी तिथियां तो यथावत हैं लेकिन तृतीया और चतुर्थी का श्राद्ध एक ही दिन 13 सितंबर को होगा। अपने पूर्वजों के प्रति समर्पित यह श्राद्ध कर्म पितृपक्ष और कनागत के नाम से भी जाना जाता है। इस बार पितृ पक्ष 25 सितंबर तक रहेंगे।
क्यों होता है श्राद्ध:
निधन के बाद एक वर्ष का कार्यकाल प्रतीक्षाकाल कहा जाता है। बरसी तक श्राद्ध कर्म नहीं होते हैं। उसके बाद श्राद्ध कर्म करके हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धावनत होते हैं। मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पितृ घर के द्वार पर आते हैं।
कितनी पीढ़ियों का:
श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों का ही होता है। इसमें मातृकुल और पितृकुल (नाना और दादा) दोनों शामिल होते हैं। तीन पीढ़ियों से अधिक का श्राद्ध कर्म नहीं होता है। हां, ज्ञात-अज्ञात के नाम का श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।
विधियां:
श्राद्ध किसी भी रूप में किया जा सकता है, तर्पण, दान, भोजन, भावांजलि, तिलांजलि। पितरों के निमित भोजन निकालने से पूर्व गाय, कौआ, कुत्ते का अंश निकाला जाता है। तीनों यम के प्रतीक हैं।
संक्षिप्त विधि:
यदि किसी कारण विस्तृत रूप से श्राद्ध नहीं कर पाएं तो दान कर देना चाहिए। दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके अपने दायें हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की तरफ करके ऊं मातृ देवताभ्यो नम: ऊं पितृ देवताभ्यो नम: तीन बार पढ़ लेना चाहिए। यह भावांजलि कहलाती है।
तर्पण का समय:
सूर्य अच्छी तरह चढ़ जाता है, तब श्राद्ध व तर्पण करना चाहिए। आदर्श समय मध्याह्न 11.30 से 12.30 तक माना गया है। तर्पण और श्राद्ध कर्म सायंकालीन नहीं है। यह दिन में ही होगा।
कब होगा:
पूर्वज का श्राद्ध कर्म उसकी मृत्यु की तिथि से माना जाएगा। इसमें अंग्रेजी तिथि मान्य नहीं है। यदि तिथि और दिन ज्ञात न हो तो पितृ अमावस्या को श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
पितृलोक में है जल की कमी:
ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत के अनुसार जल तर्पण के पीछे मान्यता है कि हमारे जल से पितृ तृप्त होते हैं। पितृलोक में जल की कमी है जिस कारण जल तर्पण किया जाता है।
कौन उत्तराधिकारी:
कोई भी कर सकता है। धेवता, पोता, पुत्र, प्रपोत्र, दामाद सभी को श्राद्ध का अधिकार दिया गया है। महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं।
खीर का दान:
आचार्य अनिल कौशिक और पंडित मुनेंद्र के अनुसार मातृ और पितृकुल के नाम पर खीर व काले तिल के अंशदान से भी श्राद्ध कर सकते हैं। यह सरल विधि है।
5 को पितृ विसर्जन:
10 सितम्बर को पूर्णिमा श्राद्ध के साथ महालय आरम्भ होगा। 13 को तृतीया और चतुर्थी के श्राद्ध होंगे। 25 सितम्बर को पितृ विसर्जन अमावस्या होगी।
ये हैं तिथियां:
पूर्णिमा: 10 सितम्बर
प्रतिपदा: 11 सितम्बर
द्वितीया: 12 सितम्बर
तृतीया/चतुर्थी: 13 सितम्बर
पंचमी: 14 सितम्बर
षष्ठी: 15-16 सितम्बर
सप्तमी: 17 सितम्बर
अष्टमी: 18 सितम्बर
नवमी: 19 सितम्बर
दशमी: 20 सितम्बर
एकादशी: 21 सितम्बर
द्वादशी: 22 सितम्बर
त्रयोदशी: 23 सितम्बर
चतुर्दशी: 24 सितम्बर
अमावस्या: 25 सितम्बर
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