Pitru Paksha 2022 Shradh : पितृ पक्ष में क्या करें, क्या न करने से पितर होंगे सन्तुष्ट, ज्योतिषाचार्य से जानें सबकुछ
pitru paksha 2022 shradh : पितृपक्ष 11 सितंबर दिन रविवार से प्रांरभ होकर आगामी 25 सितंबर को पितृ विसर्जन होगा। पितृ पक्ष प्रारंभ होने के साथ पितरों का पितृ तर्पण व पिण्डदान शुरू होता है।
पितृपक्ष 11 सितंबर दिन रविवार से प्रांरभ होकर आगामी 25 सितंबर को पितृ विसर्जन होगा। पितृ पक्ष प्रारंभ होने के साथ पितरों का पितृ तर्पण व पिण्डदान शुरू होता है। पिता की मृत्यु तिथि ज्ञात न होने पर पितृ विसर्जन के दिन श्राद्ध करना चाहिए। पितृ पक्ष में पितरों को संतुष्ट करने के लिए कुछ मुख्य नियमों का अवश्य पालन करना चाहिए।
महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय, पंडित पुरुषोत्म दुबे व पंचायती राज संस्कृत पाठशाला के प्रधानाचार्य पंडित अवधेश तिवारी ने बताया कि पितृपक्ष 11 सितम्बर दिन रविवार से आरम्भ होगा। पितृपक्ष इस वर्ष रविवार से आरम्भ हो रहा है। उस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से ही पितृपक्ष आरम्भ हो जाएगा। ऐसे में उस दिन से पितृ तर्पण व पिण्ड दान आदि कार्य आरम्भ हो जायेंगे। इस बार 15 दिन तक चलने वाला पितृ पक्ष का पितृ विसर्जन 25 सितम्बर को होगा। मध्याह्ने श्राद्धम् समाचरेत...अतः श्राद्ध कार्य कभी भी मध्याह्न में करना चाहिए। बहुत लोग इस बात से भ्रमित रहते है कि मैंने इस वर्ष अपनी कन्या या पुत्र का विवाह आदि मांगलिक कार्य किये हैं।
अतः इस वर्ष पितृ पक्ष का जल दान, अन्न दान व पिण्ड दान नहीं करना चाहिए। यह अशुभ है, लेकिन निर्णय सिंधुकार के अनुसार सभी मांगलिक कार्यों में पितृ कार्य उत्तम व आवश्यक माना गया है। तभी तो हम जनेऊ, विवाह आदि मांगलिक कार्य करने से पूर्व नान्दीमुख श्राद्ध अवश्य करते है। अभिप्रायः यह है कि हमारे यहां होने वाले शुभ कार्य में किसी भी प्रकार का विघ्न न हो। पितृ पक्ष वर्ष में 1 बार आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों की पूजा के लिए होता है। कहा गया है कि देवताओं की की गयी पूजा में कदाचित भूल होने पर देवता क्षमा कर देते है, लेकिन पितृ कार्य में न्यूनता व आलस्य प्रमाद करने से पितर असन्तुष्ट हो जाते हैं, जिससे हमें रोग, शोक आदि भोगने पड़ते हैं।
शास्त्रों में हर जगह नित्य देखने को मिलता है कि मातृ देवो भव, पितृ देवो भव... अतः माता-पिता के समान कोई देवता नहीं है। उनकी संतृप्ती व आशीर्वाद हमें जीवन में हर प्रकार का सुख प्रदान करती है। अतः इस भ्रान्ति को मन मस्तिष्क में न पालकर इस पितृ पर्व को हर्षोल्लास पूर्वक मनाना चाहिए। जिसमें नित्य जल दान व तिथि पर अन्न वस्त्र आदि दान करना चाहिए।
पितृपक्ष की निम्न तिथियां- प्रतिपदा श्राद्ध 11 सितम्बर रविवार को, द्वितीया श्राद्ध सोमवार को, तृतीया मंगलवार को, चतुर्थी बुधवार को, पंचमी गुरुवार को, षष्ठी शुक्रवार को, सप्तमी शनिवार को, अष्टमी रविवार को, नवमी सोमवार को, दशमी मंगलवार को, एकादशी बुधवार को, द्वादशी गुरुवार को, त्रयोदशी शुक्रवार को, चतुर्दशी शनिवार को, अमावस्या रविवार को है।
पिता के मृत्यु तिथि ज्ञात न होने पितृ विसर्जन को करें श्राद्ध
- ज्योतिषाचार्य राकेश पांडेय ने बताया कि सिर का मुण्डन पितृ पक्ष के भीतर या तिथि पर नहीं करना चाहिए, क्यों कि निर्णय धर्म सिंधु में यह कहा गया है कि पितृ पक्ष में सिर के बाल जो भी गिरते है। वह पितरों के मुख में जाते हैं। अतः सिर के बाल पितृ पक्ष आरम्भ होने के 1 दिन पूर्व बनवा लें या भूलवश नहीं बनवा पाते तो पितृ विसर्जन के दिन अपराह्न काल में बनवावें। ऐसा करने से पितर सन्तुष्ट होते हैं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इससे कुल की वृद्धि व यश कीर्ति, लाभ, आरोग्यता व मोनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। बताया कि तिथि ज्ञात होने पर तिथि के साथ अमावस्या तथा तिथि ज्ञान नहीं होने पर अमावस्या को पितृ विसर्जन का श्राद्ध करना चाहिए।
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