Hindi Newsधर्म न्यूज़Pitru Paksha 2022: Maharishi Nimi started the tradition of Shradh - Astrology in Hindi

Pitru Paksha 2022: महर्षि निमि ने शुरू की श्राद्ध की परंपरा

महाभारत काल में सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश अत्रि मुनि ने महर्षि निमि को दिया था। इसे सुनने के बाद ऋषि निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया। त्रेता युग में सीता द्वारा दशरथ के पिंडदान की कथा बहुतों को मालूम ही

Alakha Ram Singh अश्वनी कुमार, नई दिल्लीTue, 13 Sep 2022 05:06 PM
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Pitru Paksha 2022: आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मनाए जाने वाले श्राद्ध हमारी सनातन परंपरा का हिस्सा हैं। त्रेता युग में सीता द्वारा दशरथ के पिंडदान की कथा बहुतों को मालूम ही होगी। लेकिन श्राद्ध का प्रारंभिक उल्लेख द्वापर युग में महाभारत काल के समय में मिलता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह के युधिष्ठिर के साथ श्राद्ध के संबंध में बातचीत का वर्णन मिलता है।

महाभारत काल में सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश अत्रि मुनि ने महर्षि निमि को दिया था। इसे सुनने के बाद ऋषि निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया। उसके बाद अन्य महर्षियों और चारों वर्णों के लोग भी श्राद्ध करने लगे। 

वर्षों तक श्राद्ध का भोजन करते रहने से पितृ देवता पूर्ण तृप्त हो गए। श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अजीर्ण रोग हो गया। इससे उन्हें कष्ट होने लगा। अपनी इस समस्या को लेकर वे ब्रह्माजी के पास गए और उनसे इस रोग की मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की।

पितरों की प्रार्थना से द्रवित होकर ब्रह्माजी ने कहा, ‘आपका कल्याण अग्नि देव करेंगे।’ इस पर अग्निदेव ने कहा, ‘अब से श्राद्ध में, मैं आपके साथ भोजन करूंगा। मेरे साथ रहने से आपका अजीर्ण दूर होगा।’ यह सुनकर पितर प्रसन्न हुए। बस, तभी से श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भाग दिया जाने लगा और पितरों को अजीर्ण रोग से मुक्ति मिल गई।

ऐसा कहा जाता है कि अग्नि में हवन करने के बाद, पितरों के निमित्त दिए जाने वाले पिंडदान को ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते। सबसे पहले पिता, उनके बाद दादा और उसके पश्चात परदादा के निमित्त पिंडदान करना चाहिए। यही श्राद्ध की विधि है। प्रत्येक पिंड देते समय ध्यानमग्न होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा ‘सोमाय पितृमते स्वाहा’ का उच्चारण करना चाहिए। पितृ पक्ष के सभी दिन श्राद्ध किया जा सकता है। लेकिन इसमें कुछ विशिष्ट दिन हैं, जिनमें आप उनसे संबंधित व्यक्तियों का श्राद्ध कर सकते हैं। जिन पूर्वजों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन होता है। सधवा स्त्री की मृत्यु किसी भी तिथि को हो, लेकिन पितृ पक्ष में उनका श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। कोई व्यक्ति अपने जीवन काल में संन्यासी हो गया हो। उसकी मृत्यु किसी भी तिथि में हो, लेकिन पितृ पक्ष में उसका श्राद्ध द्वादशी तिथि को होता है। दुर्घटना, हत्या, युद्ध में या किसी जीव-जंतु के काटने से किसी भी तिथि में हुए मृत व्यक्ति का श्राद्ध पितृ पक्ष में चतुर्दशी तिथि में होता है।

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