हिमालयी जलस्रोतों का भविष्य तय कर रहे भूकंप, फायदा या नुकसान; शोध में खुलासा
जलवायु परिवर्तन के साथ भूकंप भी जलस्रोतों के भविष्य को तय करते हैं। हिमालयी जलस्रोतों पर भूकंप अप्रत्यशित परिवर्तन ला सकता है। इससे जलस्रोतों का पानी सूख भी सकता है या उनमें पानी का बहाव बढ़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन के साथ भूकंप भी जलस्रोतों के भविष्य को तय करते हैं। हिमालयी जलस्रोतों पर भूकंप अप्रत्यशित परिवर्तन ला सकता है। इसे देखते हुए अध्ययन के बाद जीबी पंत संस्थान, कोसी के वैज्ञानिकों ने जलस्रोतों की मरम्मत की नीतियों में उचित भूकंपीय मापदंडों को शामिल करने की सलाह दी है।
राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन प्रमुख एवं जल वैज्ञानिक इं.किरीट कुमार ने बताया कि भूकंप के संपीडन और विरूपण के कारण भूकंप से जलभृत की जलगति विज्ञान की चालकता या तो बढ़ जाती है अथवा घट सकती है। इससे जलस्रोतों का पानी सूख भी सकता है या उनमें पानी का बहाव बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा कि आधुनिक जल संरक्षण के कार्यों में इस आयाम को ध्यान में रखकर कार्य करना होगा। उन्होंने बताया कि इस विषय में संस्थान ने वैज्ञानिकों के साथ सिक्किम राज्य में 2011 में आए 6.9 रिक्टर के भूकंप को आधार बनाकर अध्ययन किया है। उन्होंने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि इस भूकंप ने 70 किमी हवाई परिधि तक के जलस्रोतों को प्रभावित किया।
बताया कि पृथ्वी के नीचे की टेक्टोनिक चट्टानों के कारण सतह में यह परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। बड़े भूकंप द्वितीयक संरध्रता उत्पन्न कर रिचार्ज जोन की रिचार्ज क्षमता को बढ़ाते भी है। नवंबर में हिमालयी क्षेत्र में लगभग 4.5 रिक्टर के भूकंप व हलचलों के प्रति आगाह करते हुए उन्होंने बताया कि सिक्किम राज्य के अनुभव बताते हैं कि, जलस्रोतों के जीर्णोद्धार की नीतियों में उचित भूकंपीय मापदंडों को भी शामिल करना होगा।
5.5 रिक्टर से नीचे के भूकंप कम हानिकारक
वैज्ञानिक किरीट कुमार ने बताया कि 5.5 रिक्टर से नीचे के भूकंपों को अपेक्षाकृत रूप से कम हानिकारक माना जाता है। उन्होंने कहा कि हिमालयी भू-भाग में अप्रत्याशित बड़े भूकंपों से जल संरक्षण के कार्य प्रभावित हो सकते हैं, अथवा उनके अप्रत्याशित परिणाम भी सामने आ सकते हैं।
अब तक के विभिन्न अनुसंधान बताते हैं कि भूकंपीय तरंगों से भू-जल स्तर दोलन करता है और भूकंपीय तरंगों के समाप्त होने के कुछ समय के लिए जल स्तर उच्च या निम्न रह जाता है। पानी में इस दोलन से कई बार उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। हालांकि इन परिवर्तनों को अस्थाई और छोटा माना जाता है। इसे ध्यान में रखकर जल संरक्षण एवं संवर्धन के कार्यों को किया जाना आवश्यक है, जिससे इस कार्य में ठोस परिणाम सामने आएं।
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