पावर सरप्लस होते ही जिद्दी बना हिमाचल, किसाऊ पावर प्रोजेक्ट में नहीं ले रहा दिलचस्पी; क्या दिया तर्क
हिमाचल और उत्तराखंड की ओर से संयुक्त रूप से बनाए जाने वाले 660 मेगावाट के किसाऊ पावर प्रोजेक्ट पर संकट के बादल नजर आ रहे हैं। पावर सरप्लस हिमाचल अब किसाऊ प्रोजेक्ट में दिलचस्पी नहीं ले रहा है।
हिमाचल और उत्तराखंड की ओर से संयुक्त रूप से बनाए जाने वाले 660 मेगावाट के किसाऊ पावर प्रोजेक्ट पर संकट के बादल नजर आ रहे हैं। पावर सरप्लस हिमाचल अब किसाऊ प्रोजेक्ट में दिलचस्पी नहीं ले रहा है। हिमाचल बिजली उत्पादन पर आने वाले खर्च का 50 प्रतिशत भार वहन करने को तैयार नहीं है। ऐसे में उत्तराखंड को 330 मेगावाट बिजली और दिल्ली, हरियाणा, यूपी, राजस्थान को पेयजल व सिंचाई के पानी का नुकसान होने जा रहा है।
इस बांध से पैदा होने वाली बिजली हिमाचल और उत्तराखंड को बांटनी है। प्रोजेक्ट पर 800 करोड़ का अतिरिक्त खर्चा आ रहा है। यह भार हिमाचल और उत्तराखंड को आधा-आधा वहन करना है। पानी, सिंचाई को लेकर बनने वाले बांध का खर्चा केंद्र समेत दिल्ली, हरियाणा, यूपी, राजस्थान ने वहन करना है। हिमाचल बिजली उत्पादन पर आने वाले इस 50 प्रतिशत भार को वहन करने को तैयार नहीं है। तर्क यह है कि बिजली पर आने वाले कुल खर्च का 90 प्रतिशत भार केंद्र वहन करे। शेष 10 प्रतिशत भार भी सभी राज्य आपस में मिल कर बांटें।
साठ साल से फाइलों में प्रोजेक्ट
किसाऊ पावर प्रोजेक्ट 60 साल से फाइलों में दौड़ रहा है। वर्ष 1965 में प्री फिजिबिलिटी रिपोर्ट पर काम शुरू हुआ था और 1998 में पहली बार डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार हुई। 2016 में हिमाचल और उत्तराखंड के बीच इस प्रोजेक्ट को लेकर एमओयू हुआ। अक्तूबर 2018 में केंद्र इस प्रोजेक्ट के वाटर कंपोनेंट का 90 प्रतिशत देने को तैयार हुआ। पावर कंपोनेंट में भी 90 प्रतिशत देने की मांग हो रही है। इस प्रोजेक्ट पर वर्ष 2018 के अनुसार 11550 करोड़ रुपये खर्च होने हैं।
ऊर्जा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने कहा, 'किसाऊ बांध पर तत्काल काम शुरू करने के लिए हिमाचल के साथ विचार मंथन जारी है। आम सहमति बनाने का प्रयास हो रहा है। अन्य सभी राज्यों के बीच भी आम राय बनाई जा रही है।'
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