दिल्ली समेत इन रूटों में यात्रियों की कैसे कम होंगी परेशानी? रोडवेज बसों के लिए चालक-कंडक्टर नहीं
- इस कारण हर दिन औसतन 8 से 10 बसें बिना संचालन के खड़ी हो जाती हैं, तो दिल्ली के लिए चल रहीं अनुबंधित बसों का भी दो दिन में रूट पर नंबर आ पा रहा है।
रोडवेज बसों का संचालन पहाड़ों में कम होने का सबसे बड़ा कारण चालक और परिचालकों की कमी है। कुमाऊं में काठगोदाम मंडल के नौ डिपो में 136 चालकों की जरूरत है, जबकि 297 परिचालक कम हैं।
इसमें सबसे अधिक 104 चालक-परिचालकों की जरूरत पर्वतीय क्षेत्र के प्रमुख डिपो रानीखेत को है। चालक-परिचालकों की कमी के कारण बसों का संचालन सभी रूटों पर नहीं हो पा रहा है। वहीं मैदानी क्षेत्र के रूटों पर एजेंसी के परिचालकों से डबल ड्यूटी करवाई जा रही है।
सल्ट के भीषण बस हादसे के बाद एक बार फिर पहाड़ में उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों के कम संचालन का मुद्दा उठ रहा है। निगम की पहले तो पर्वतीय क्षेत्र के रूटों के लिए बसें ही बहुत कम हैं। वहीं निगम के पास चालक-परिचालक भी पर्याप्त नहीं हैं।
हाल यह है कि हल्द्वानी और काठगोदाम डिपो से पर्वतीय क्षेत्र में जाने वाली बसों के लिए भी चालकों की व्यवस्था करना मुश्किल होने लगा है। इस कारण हर दिन औसतन 8 से 10 बसें बिना संचालन के खड़ी हो जाती हैं, तो दिल्ली के लिए चल रहीं अनुबंधित बसों का भी दो दिन में रूट पर नंबर आ पा रहा है।
इस कारण अनुबंधित बसों को भी डिपो नहीं ले रहे हैं। वहीं मैदानी क्षेत्र के रूटों पर परिचालकों की डबल ड्यूटी लगाकर डिपो अनुबंधित बसों को चला रहा है। मगर पर्वतीय क्षेत्र के डिपो में चालक-परिचालकों की कमी के कारण कई रूटों पर बसें नहीं चल पा रही हैं। सबसे अधिक रानीखेत डिपो में 51 चालक और 53 परिचालकों की कमी है।
इस कारण बसें कम चलने और डिपो में खाली खड़ी रहने से डिपो के राजस्व पर भी असर पड़ रहा है। काठगोदाम और हल्द्वानी डिपो को भी 50-50 से अधिक परिचालकों की जरूरत है। रोडवेज कर्मचारियों के संगठन कई बार चालक-परिचालकों की भर्ती कराने की मांग उठाते रहे हैं।
चालक-परिचालकों की कमी के कारण बसों का संचालन प्रभावित हो रहा है। इस संबंध में मुख्यालय को भी जानकारी दी गई है। आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से भर्ती के निर्देश दिए गए हैं।
मनोज दुर्गापाल, एजीएम कार्मिक, मंडलीय कार्यालय, काठगोदाम
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