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निजता का उल्लंघन नहीं, सर्विलांस के आरोप बेतुके; UCC को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर धामी सरकार का जवाब

धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं में उठाए गए पॉइंट्स का जवाब देते हुए उत्तराखंड हाकोर्ट में 78 पन्नो का जवाबी हलफनामा पेश किया है। राज्य सरकार ने कहा है कि आधार को लिंक करने से स्टेट द्वारा सर्विलांस करने के आरोप महज अनुमान हैं।

Sneha Baluni देहरादून। हिन्दुस्तान टाइम्सFri, 4 April 2025 09:45 AM
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निजता का उल्लंघन नहीं, सर्विलांस के आरोप बेतुके; UCC को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर धामी सरकार का जवाब

धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं में उठाए गए पॉइंट्स का जवाब देते हुए उत्तराखंड हाकोर्ट में 78 पन्नो का जवाबी हलफनामा पेश किया है। जिसमें विशेष रूप से लिव-इन रिलेशनशिप, गोपनीयता (प्राइवेसी), राज्य के अधिकार क्षेत्र के बाहर यूसीसी की प्रासंगिकता और विभिन्न प्रावधानों की वैधता से संबंधित पॉइंट्स को चुनौती दी गई है।

राज्य सरकार ने कहा है कि आधार को लिंक करने से स्टेट द्वारा सर्विलांस करने के आरोप महज अनुमान पर आधारित और बेतुके हैं। साथ ही कहा कि समान नागरिक संहिता पुरानी प्रथाओं की तुलना में व्यक्तिगत अधिकारों और समानता को ज्यादा महत्व देती है। याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने बताया कि यूसीसी से संबंधित सभी याचिकाओं पर अब हाईकोर्ट 22 अप्रैल को सुनवाई करेगा। 27 जनवरी को यूसीसी राज्य में लागू किया गया था।

यूसीसी के अतिरिक्त क्षेत्रीयता (एक्स्ट्रा टेरिटोरियल) कानून का मामला होने को लेकर हलफनामे में कहा गया है कि उत्तराखंड का निवासी होना कानून के लागू होने के लिए पर्याप्त आधार है। "यह अतिरिक्त क्षेत्रीयता कानून नहीं, बल्कि केवल एक क्षेत्रीय कानून के अतिरिक्त क्षेत्रीयता प्रयोग का मामला है। राज्य विधानमंडल अतिरिक्त क्षेत्रीयता प्रयोग वाले कानून बना सकता है, बशर्ते राज्य और कानून के विषय के बीच वास्तविक और पर्याप्त क्षेत्रीय संबंध हो।"

यूसीसी अधिनियम की धारा 385(2) को चुनौती देने वाली याचिकाओं में से एक पर, जो रजिस्ट्रार को स्थानीय पुलिस द्वारा उचित कार्रवाई शुरू करने का अधिकार देती है, यदि लिव इन रिलेशनशिप को वर्जित माना जाता है या लिव इन कपल द्वारा दिए गए बयान गलत या संदिग्ध पाए जाते हैं। इसे लेकर हलफनामे में बताया गया है कि याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि ‘संदेह’ और ‘उचित कार्रवाई’ की रूपरेखा अपरिभाषित है, जिससे मनमाने आधार पर पुलिस कार्रवाई शुरू करने की अनुमति मिलती है। "संदेह शब्द का अर्थ प्रासंगिक है और इसे सामूहिक रूप से पढ़ा जाना चाहिए। संक्षिप्त जांच करते समय, यदि रजिस्ट्रार को शक होता है कि संहिता के विशिष्ट प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है या किसी मामले में जबरदस्ती की गई है, तो रजिस्ट्रार उचित कार्रवाई के लिए स्थानीय पुलिस स्टेशन के अधिकारी को सूचित कर सकता है.. ‘संदेह’ और ‘उचित कार्रवाई’ शब्द का एक निश्चित अर्थ है और इसकी अलग-अलग तरीकों से व्याख्या नहीं की जा सकती।"

गोपनीयता के उल्लंघन और डेटा साझा करने को लेकर हलफनामे में कहा गया है, “याचिकाकर्ता ने यह माना है कि परिवार, राज्य की कानून प्रवर्तन एजेंसियां ​​और अन्य व्यक्ति सभी मामलों में मनमाने ढंग से डेटा में हस्तक्षेप करेंगे... केवल यह आशंका कि सूचना तक न केवल पहुंच बनाई जा सकती है, बल्कि कानून प्रवर्तन एजेंसी द्वारा इसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है, यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाई को अवैध कहने का आधार नहीं हो सकता।”

हलफनामे में आगे साफ किया गया है कि "डेटा को गोपनीयता की सुरक्षा के लिए लागू कानून के प्रावधानों के अनुसार इकट्ठा, संग्रहीत और मैनेज किया जाता है। यूसीसी अधिनियम ने डेटा की सुरक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास किया है, जिसे एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए एकत्रित किया जाता है और उपयुक्त रूप से तैयार किया जाता है। आधार को जोड़ने से राज्य की निगरानी होने के आरोप एक बेतुकापन और असंभवता है और यह केवल अनुमानों और अंदाजों पर आधारित है।"

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