उत्तराखंड बीजेपी जनआक्रोश के आगे झुकी, धामी सरकार के कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे की क्या असली वजह? VIDEO
- विपक्ष के साथ ही भाजपा के कई नेताओं ने भी खुलकर सदन में की गई टिप्पणी के लिए कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को आड़े हाथों लिया। इस वजह से पार्टी पर लगातार दबाव बना हुआ था और उसे असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा था।

उत्तराखंड में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान उपजी क्षेत्रवादी राजनीति का पटाक्षेप करने के लिए भाजपा को आखिर जनदबाव के आगे झुकना पड़ा। यही वजह रही कि बीजेपी हाईकमान ने संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को इस्तीफा देने के निर्देश दिए।
विदित है कि विधानसभा में हुए प्रकरण के बाद से लगातार राज्यभर में संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे। बजट सत्र बीतने के बाद से पिछले 23 दिनों में कोई ऐसा दिन नहीं गया जब उन्हें हटाने की मांग को लेकर आंदोलन नहीं हुआ।
विपक्ष के साथ ही भाजपा के कई नेताओं ने भी खुलकर सदन में की गई टिप्पणी के लिए प्रेमचंद को आड़े हाथों लिया। इस वजह से पार्टी पर लगातार दबाव बना हुआ था और उसे असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा था।
भाजपा के प्रदेश संगठन ने स्थिति को संभालने के लिए घटना के बाद उन्हें तलब भी किया। लेकिन प्रदेश की जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया और आखिरकार पार्टी को उन्हें इस्तीफे के लिए कहना पड़ा।
कार्रवाई की बजाए इस्तीफे का विकल्प चुना
सदन में टिप्पणी को लेकर जब विवाद नहीं थमा तो माना जा रहा था कि संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को धामी कैबिनेट से बर्खास्त किया जा सकता है। लेकिन पार्टी ने ऐसा करने की बजाए सेफ एक्जिट का रास्ता चुना और प्रेमचंद को खुद ही इस्तीफे के निर्देश दिए गए। पार्टी जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री के मुखबा दौरे के दौरान भी प्रेमचंद को इसीलिए अलग रखा गया कि उनसे शीर्ष नेतृत्व नाराज चल रहा था।
विवाद समाप्त करने के लिए दिया इस्तीफा
भाजपा के नेता पहले सदन में की गई टिप्पणी के बाद प्रेमचंद की ओर से आई माफी को पर्याप्त मान रहे थे। जब विवाद नहीं थमा तो पार्टी मुख्यालय में उन्हें तलब कर मामले को शांत करने की कोशिश की गई।
लेकिन मामला फिर भी नहीं संभला तो आखिर उनसे इस्तीफे के लिए कहा गया। पार्टी की चिंता की सबसे बड़ी वजह यह थी कि पहाड़ का जनमानस उनकी टिप्पणी से खफा था और आगे चलकर पार्टी को इस वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता था।
कई मामलों पर पार्टी ने साधे रखी थी चुप्पी
ऐसा नहीं है कि भाजपा के किसी नेता का नाम पहली बार विवाद में आया हो। इससे पहले पूर्व विधायक प्रणव चैंपियन, विधायक महेश जीना, विधायक प्रमोद नैनवाल को लेकर भी पार्टी को असजह स्थिति का सामना करना पड़ा था। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस बार पार्टी को जन आक्रोश के आगे झुकना पड़ा और संसदीय कार्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है।
वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने दिया इस्तीफा, भावुक होकर रोते-रोते की घोषणा
पर्वतीय क्षेत्र के लिए असंसदीय शब्द कहने की वजह से उपजे विवाद के चलते वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। रविवार शाम अपने यमुना कालोनी स्थित सरकारी आवास में प्रेस कांफ्रेस में अग्रवाल ने इस्तीफा देने की घोषणा की।
इस्तीफे की घोषणा करने के बाद अग्रवाल कैंट रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास पहुंचे और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को इस्तीफा सौंप दिया। सूत्रों के अनुसार अग्रवाल के इस्तीफे को राजभवन भेज दिया गया है।
अग्रवाल ने आज दोपहर मुजफ्फरनगर स्थित रामपुर तिराहा स्थित शहीद स्थल जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उसके बाद सीधा देहरादून आकर उन्होंने शाम 5.30 बजे प्रेस कांफ्रेस बुला ली। शाम मीडिया के साथ उन्होंने अग्रवाल ने अपने राज्य आंदोलन के दौरान के अनुभवों के साझा किया।
इस दौरान भावुक हो उठे अग्रवाल की आंखे भी छलक उठी। उन्होंने रोते रोते हुए कहा कि राज्य आंदोलन के दौरान उन्होंने लाठी-डंडे खाए। उत्पीड़न झेला। आज उसी व्यक्ति को टारगेट किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके जैसे आंदोलनकारी की बात को काफी तोड़मरोड़ कर पेश भी किया गया।
यह कहते हुए उन्होंने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी और सीधा मुख्यमंत्री आवास को निकल गए। मालूम हो कि बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट के साथ नोकझोंक के दौरान अग्रवाल ने पर्वतीय क्षेत्र के लिए असंसदीय शब्द का प्रयोग कर दिया था। इसके बाद से पूरे प्रदेश में उनके खिलाफ वातावरण बना हुआ है।
इस्तीफा देने के बाद वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि आज हमारे जैसे व्यक्ति को साबित करना पड़ रहा है कि हमने उत्तराखंड के लिए क्या योगदान दिया? मेरी इच्छा है मेरा प्रदेश आगे बढ़े। प्रदेश को आगे बढ़ाने में जो योगदान हो सकता है मैं दूंगा। इसमें लिए मैने इस्तीफा देने का निर्णय किया है।
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