बदरीनाथ के कपाट बंद होने से उमड़ा भक्तों का हुजूम, 10 हजार भक्तों ने किए दर्शन
- मंदिर समिति बदरीनाथ के रावल (मुख्य पुजारी) को यह ऊनी कम्बल सौंपती है और रावल इस ऊनी कम्बल पर गाय के दूध से तैयार शुद्ध घी में लपेट कर भगवान बदरी विशाल को ओढ़ाते हैं। शीतकाल की अवधि में जब बदरी विशाल मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
भगवान बदरी विशाल मंदिर के कपाट शीतकाल के बंद होने से पूर्व भगवान बदरी विशाल के दर्शन के लिए शनिवार को दस हजार से अधिक श्रद्धालु बदरीनाथ धाम पहुंचे। आपको बता दें कि बदरीनाथ के कपाट 17 नवंबर को बंद कर दिए जाएंगे।
बदरीनाथ मंदिर के कपाट रविवार को रात्रि 9 बज कर 07 मिनट पर शीतकाल के लिए बंद किए जाएंगे। स्वर्ण सिहांसन पर विराजमान, सोने का छत्र, स्वर्ण मुकुट और हीरे का तिलक धारण किए। जबकि भगवान बदरी विशाल का शनिवार सुबह से ही फूलों का श्रृंगार शुरू कर दिया गया है।
कपाट बंद होने से ठीक पहले भगवान के निर्वाण विग्रह को घृत कम्बल ओढ़ाया जाता है। बदरीनाथ के निकट माणा की महिलाएं ऊनी लबादा बुनतीं हैं और उसे बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को सौंपती हैं।
मंदिर समिति बदरीनाथ के रावल (मुख्य पुजारी) को यह ऊनी कम्बल सौंपती है और रावल इस ऊनी कम्बल पर गाय के दूध से तैयार शुद्ध घी में लपेट कर भगवान बदरी विशाल को ओढ़ाते हैं। शीतकाल की अवधि में जब बदरी विशाल मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
तब भगवान बदरी विशाल भक्तों की श्रद्धा का सम्मान करते हुए इस घृत कम्बल को धारण कर लोक कल्याण के लिए साधना में एकचित्त हो जाते हैं। लोक मान्यता भी यही है कि बदरी विशाल को ऊन की च्वोली (लबादा) और फाफर (कुटू) की प्वोली (आहार) शीतकाल में प्रिय है।
शीतकाल के लिए बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने से पूर्व बदरीनाथ मंदिर, विराट सिंह द्वार को फूलों से सजाने का कार्य शनिवार से ही शुरू हो गया है। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने बताया 15 कुंतल से अधिक हजारों फूलों से बदरीनाथ मंदिर को सजाया जा रहा है। विभिन्न प्रजाति के फूलों से बदरीनाथ मंदिर, सिंह द्वार को अलंकृत किया जा रहा है।
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