बाइपोलर डिसआर्डर से जंग जीतना होगा आसान, नहीं बढ़ेगा वजन; बीआरडी में दवा पर रिसर्च
- नई दवा से इस बीमारी से जंग जीतना आसान होगा। बीमारी जल्द काबू में आएगी। दवा के सेवन के दौरान मरीज का वजन भी नहीं बढ़ेगा। BRD मेडिकल कॉलेज में बाइपोलर डिसऑर्डर के मरीजों पर 2 दवाओं के प्रभाव का अध्ययन हुआ।
Bipolar Disorder: बाइपोलर डिसऑर्डर एक ऐसी मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें मरीज का तेजी से मूड स्विंग होता है। भावनात्मक उतार-चढ़ाव लगा रहता है। नई दवा से इस बीमारी से जंग जीतना आसान होगा। बीमारी जल्द काबू में आएगी। दवा के सेवन के दौरान मरीज का वजन भी नहीं बढ़ेगा। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बाइपोलर डिसऑर्डर के मरीजों पर दो दवाओं के प्रभाव का अध्ययन हुआ। यह अध्ययन मानसिक रोग विभाग के सीनियर रेजिडेंट डॉ उमाशंकर कुशवाहा ने एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आमिल हयात खान की निगरानी में किया है। शोध करने वाले डॉ उमाशंकर कुशवाहा ने बताया कि शोध (Research) के लिए बाइपोलर डिसऑर्डर के इलाज की दो प्रमुख दवाओं ओलिन्जापिन और कैरीप्राजिम को चुना गया। उनके प्रभाव का अध्ययन मरीजों की सेहत पर किया गया। इसके लिए 60 मरीजों को चुना गया। इसमें 30-30 मरीजों के दो ग्रुप बनाए गए। पहले ग्रुप में 30 मरीजों को ओलिन्जापिन और 30 मरीजों को कैरीप्राजिम की डोज दी गई।
डॉ उमाशंकर ने बताया कि बाइपोलर डिसऑर्डर में सबसे बड़ी दिक्कत मरीजों का तेजी से वजन बढ़ाना होता है। ओलिन्जापिन का सेवन करने वाले 30 मरीजों का एक महीने बाद वजन करीब सात किलोग्राम तक बढ़ गया। जबकि कैरीप्राजिम के सेवन में अधिकतम वजन तीन किलोग्राम तक ही बढ़ा। इतना ही नहीं कैरीप्राजिम का असर उन्मादी और त्वरित मूड के बदलाव वाले मरीजों में ज्यादा प्रभावी दिखा। मरीज के शरीर में कंपन, हाथ में कंपन व मुंह से लार निकालने के लक्षण मिले, जो कि दवा के सकारात्मक प्रभाव को इंगित करते हैं। मरीज के ओवरऑल इंप्रूवमेंट स्केल पर भी असर दिखा। कैरीप्राजिम में क्लीनिकल ग्लोबल इंप्रेशन (सीजीआई) भी बेहतर रहा। हालांकि मर्ज पर दोनों दवाओं का प्रभाव सामान मिला। वजन बढ़ने के अलावा अन्य दुष्प्रभाव भी ठीक एक जैसे रहे। इस दौरान मरीजों का हड्डियों का घनत्व भी चेक किया गया। वह भी एक जैसा रहा।
वजन कम होने से तेजी से हो रहा है सेहत में सुधार
उन्होंने बताया कि बाइपोलर डिसऑर्डर के मरीजों में वजन बढ़ाने से दवा के प्रभाव व डोज पर सीधा असर पड़ता है। दवाओं का प्रभाव कम हो जाता है। मरीज पहले से ही अवसाद या उन्माद की स्थिति में होते हैं। वजन बढ़ने के साथ वह और ज्यादा शिथिल हो जाते हैं। इससे दवाओं की डोज बढ़ानी पड़ती है। वजन काबू में रहने पर नियंत्रित डोज ही कारगर साबित होती है।
बीआरडी ने मंजूर की रिसर्च रिपोर्ट
डॉ. उमाशंकर ने बताया कि दवाओं के प्रभाव पर यह अध्ययन बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एथिकल कमेटी के अनुमति से किया गया था। रिसर्च की रिपोर्ट भी एथिकल कमेटी से मंजूरी मिल गई है। इन दोनों दवाओं के प्रभाव पर मेडिकल कालेज में ऐसा अध्ययन पहली बार हुआ।