बगावत की आहट या कुछ और? मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को क्यों दिखाया बाहर का रास्ता
बसपा में बड़े नेताओं को पार्टी से बाहर करना बड़ी बात नहीं है। लेकिन मायावती ने सोमवार को अपने भतीजे आकाश आनंद को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। जिससे पार्टी में हड़कंप मच गया। आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे मायावती को इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा।

बहुजन समाज पार्टी में हाई-प्रोफाइल नेताओं का बाहर होना या उन्हें बाहर करना कोई नई बात नहीं है। लेकिन रविवार को बीएसपी सुप्रीमो मायावती द्वारा अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के प्रमुख पदों से हटा दिया फिर सोमवार को पार्टी से ही बाहर निकाल दिया। इससे बसपा में हलचल मच गई। मायावती 2017 से ही आकाश आनंद को अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार कर रही थीं। जून 2019 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय समन्वयक बनाया गया और दिसंबर 2023 में उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया।
मायावती ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मई 2024 में सीतापुर में अभद्र भाषा के मामले में आकाश आनंद के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के पद और अपने उत्तराधिकारी से भी हटा दिया था। सार्वजनिक सभाओं में आकाश के उग्र भाषण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष और मीडिया को दिए गए इंटरव्यू को पार्टी लाइन के खिलाफ माना गया।
हालांकि मायावती ने अगस्त 2024 में आकाश को फिर से प्रमुख पदों पर बहाल कर दिया। साथ ही उन्हें हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनावों में पार्टी अभियान का नेतृत्व करने का काम सौंपा। आकाश आनंद को बीएसपी में अगली पीढ़ी के रूप में देखा जाता था जिस पर मायावती भरोसा करती थीं।
बुआ-भतीजे के बीच क्या गलत हुआ?
बसपा संस्थापक कांशीराम ने जब दिसंबर 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, तब से ही उन्होंने पार्टी में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कड़े कदम उठाए। उन्होंने कांशीराम के करीबी माने जाने वाले आर. के. चौधरी, बलिहारी बाबू, राम लखन वर्मा और जंग बहादुर पटेल जैसे नेताओं को पार्टी से निकाल दिया।
2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी मायावती ने पार्टी में बदलाव की राह पकड़ी और उन पार्टी नेताओं को पार्टी से निकाल दिया जिन्होंने उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और पार्टी की विचारधारा से अलग होने का आरोप लगाया। इनमें स्वामी प्रसाद मौर्य, दद्दू प्रसाद, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, इंद्रजीत सरोज, बृजलाल खाबरी, कमलकांत गौतम, ईशाम सिंह, जगनाथ राही, हरपाल सैनी और दीनानाथ भास्कर जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। अब मायावती ने अपने भतीजे को ही बाहर कर दिया है।
मायावती को पार्टी में गुटबाजी का था डर
मायावती द्वारा हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में चुनाव प्रचार की कमान संभालने के बाद आकाश ने अपने ससुर अशोक सिद्धार्थ के साथ मिलकर पार्टी में उम्मीदवारों के चयन, चुनाव के लिए फंड जुटाने और रणनीति बनाने जैसे कामों को अंजाम देना शुरू कर दिया। रामजी गौतम सहित मायावती के करीबी माने जाने वाले वरिष्ठ पार्टी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया। बसपा में दो गुट बन गए, एक में मायावती के करीबी माने जाने वाले और दूसरा आकाश आनंद के वफादार गुट।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद मायावती के वफादारों ने उन्हें चुनाव में आकाश आनंद और अशोक सिद्धार्थ की भूमिका और पार्टी फंड के कथित कुप्रबंधन के बारे में जानकारी दी। मायावती को यह भी जानकारी मिली कि आकाश आनंद अपने ससुर अशोक सिद्धार्थ के साथ मिलकर विभिन्न राज्यों में संगठन को अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रहे हैं। मायावती को यह आशंका थी कि BSP दो धड़ों में बंट सकती है।एक गुट उनके वफादार नेताओं का और दूसरा आकाश आनंद का समर्थक युवा नेतृत्व। पार्टी के युवा नेता आकाश के पक्ष में आते दिख रहे थे।
भतीजे ईशान आनंद के लिए खोल दिए पार्टी के दरवाजे
फरवरी में लखनऊ में एक समीक्षा बैठक में मायावती ने अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर करने की घोषणा की। 15 जनवरी को अपने जन्मदिन समारोह के दौरान मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार के बेटे ईशान आनंद के लिए पार्टी के दरवाजे खोल दिए। मायावती के लिए आनंद कुमार एक भरोसेमंद सहयोगी रहे हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में अपनी नियुक्ति के बावजूद कभी अपनी महत्वाकांक्षा नहीं दिखाई। वे कागजी कार्रवाई, बैठकों और धन जुटाने की गतिविधियों को संभालने के लिए सुर्खियों से दूर रहे हैं।
आनंद कुमार पर जताया भरोसा
लखनऊ में रविवार को हुई बैठक में मायावती अपने भाई आनंद कुमार को पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में नियुक्त किया है। साथ ही यह भी साफ कर दिया कि उनके रहते BSP में कोई उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पार्टी और आंदोलन के हित में रिश्तों का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने कहा, "चाहे कागजी कामकाज हो, इनकम टैक्स के मामले हों या कोर्ट से जुड़े मुद्दे, सबकुछ आनंद कुमार संभालते हैं। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी और जब कांशीराम बीमार थे, तब उनकी भी देखभाल की थी।”