प्रत्याशी या दल जातीय रैली करते हैं तो क्या लेंगे ऐक्शन? हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से किया सवाल
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने चुनाव आयोग से पूछा है कि यदि कोई दल या प्रत्याशी जाति आधारित रैली करता है तो आयोग क्या कार्रवाई कर सकता है। कोर्ट ने हलफनामा दायर कर जवाब मांगा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने चुनाव आयोग से पूछा है कि यदि कोई दल या प्रत्याशी जाति आधारित रैली करता है तो आयोग क्या कार्रवाई कर सकता है। कोर्ट ने हलफनामा दायर कर जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 29 अगस्त को होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय, ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। कोर्ट ने भारत सरकार के विधि, न्याय मंत्रालय को भी पक्षकार बनाने का आदेश याची को दिया है।
कोर्ट ने याची को निर्देश दिया है कि वह दस सालों में हुई जातीय रैलियों का ब्योरा शपथ पत्र पर दाखिल करे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा को जारी नोटिस वापस नहीं प्राप्त हुई है, लिहाजा नोटिस प्राप्ति न्यायालय ने मान ली है। आयोग ने जवाब देते कहा कि मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट में उसकी तरफ से जातीय रैलियों को पूरी तरह प्रतिबन्धित किया जाता है। इस पर कोर्ट ने कार्रवाई की शक्ति के बारे में जवाब देने को कहा।
पूर्व उपायुक्त आयकर अवमानना में दोषसिद्ध
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आठ साल से चल रहे अवमानना के मामले में आयकर विभाग के तत्कालीन उपायुक्त हरीश गिडवानी को दोषी करार देते हुए सात दिन के कारावास और 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। न्यायमूर्ति इरशाद अली की पीठ ने गिडवानी को आदेश दिया कि वह शुक्रवार अपरान्ह ही सजा भुगतने को सीनियर रजिस्ट्रार के सामने सरेंडर करें। उनके अधिवक्ताओं ने शुक्रवार अपरान्ह ही न्यायमूर्ति एआर मसूदी, न्यायमूर्ति अजय श्रीवास्तव की खंडपीठ में इस आदेश के विरुद्ध अपील कर दी। खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। दोषसिद्धि का आदेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत चंद्रा द्वारा 2016 में दाखिल अवमानना याचिका पर पारित किया गया। याची की ओर से कहा गया था कि आयकर विभाग ने असेसमेंट ईयर 2012-13 के बावत उन्हें नोटिस जारी किया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने 31 मार्च 2015 को नोटिस खारिज कर दिया।