सैंकड़ों किलोमीटर साइकिल चलाकर भक्त पहुंचे महाकुंभ प्रयागराज, कर रहे ये अपील
- प्रयागराज में लगे महाकुम्भ की आभा ने खास मकसद से साइकिल से देशाटन पर निकलने वाले युवाओं को भी आकर्षित किया है। पर्यावरण की अलख जगा रहा एक युवा संन्यासी हिमाचल प्रदेश से 1200 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय कर महाकुम्भ पहुंचा।
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प्रयागराज में लगे महाकुम्भ की आभा ने खास मकसद से साइकिल से देशाटन पर निकलने वाले युवाओं को भी आकर्षित किया है। पर्यावरण की अलख जगा रहा एक युवा संन्यासी हिमाचल प्रदेश से 1200 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय कर महाकुम्भ पहुंचा तो देश भ्रमण पर निकले ओडिशा के एक ब्लॉगर अपनी असम की यात्रा को बिहार में विराम देकर महाकुम्भ पहुंच गया।
सोनभद्र के रेणुकूट निवासी राम बाहुबली ने एक दिन काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलते शवों को देख उनका हृदय विचलित हो गया और उन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग कर स्वामी बालक दास से दीक्षा ले ली। संन्यासी जीवन बिताते हुए वह पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने देशाटन पर निकल पड़े। उन्होंने साइकिल यात्रा शुरू की। युवा संत बाहुबली अरुणाचल से हिमाचल और फिर हिमाचल से साइकिल चलाते हुए महाकुम्भ क्षेत्र पहुंचे।
उन्होंने बताया कि भ्रमण के दौरान वह दक्षिणा में मिले धन का उपयोग पौधरोपण करने में खर्च करते हैं। मकर संक्रांति से ही वह तुलसी और शमी के पौधों का शिविरों में जाकर वितरण कर रहे हैं। सभी से नदी, जंगल बचाने की अपील करते हुए खाली स्थानों पर अधिकाधिक पौधरोपण की अपील कर रहे हैं।
ओडिशा के सम्बलपुर के रूपन भोई 15 दिसंबर को घर से असम जाने के लिए निकले थे। साइकिल पर सात सौ किलोमीटर की दूरी तय कर बिहार पहुंचे। सड़कों पर भीड़ देखी, पता चला मौनी अमावस्या स्नान करने प्रयागराज महाकुम्भ में जाने वालों की भीड़ है। वह खुद को रोक नहीं पाए और असम की यात्रा रोक वही से साइकिल का रुख प्रयागराज के लिए मोड़ दिया।
छह सौ किलोमीटर की दूरी तय कर जब रूपन महाकुम्भ में पहुंचे तो संगम में डुबकी लगाकर उन्हें दिव्य अनुभूति हुई। रूपन कहते हैं कि महाकुम्भ में आना पूर्व जन्मों का प्रारब्ध रहा होगा। रूपन दो दिन संतों के शिविर में रुककर फिर असम की यात्रा पर निकल गए। इसी तरह पल्लव शुक्ला मध्यप्रदेश के जबलपुर से महाकुम्भ में पुण्य की डुबकी लगाने अकेले ही साइकिल से निकल पड़े।