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महाकुंभ 2025: अग्नि अखाड़े के संतों को किसी भी अखाड़े में आसानी से मिल जाता है प्रवेश, ये है खासियत

  • महाकुंभ 2025: अग्नि के संतों को सभी अखाड़े में आसानी से प्रवेश मिल जाता है। 13 में से यही एक मात्र अखाड़ा जिसके संत 12 अखाड़ों में जा सकते हैं। इसी अखाड़े के स्वामी कैलाशानंद इस समय निरंजनी के पीठाधीश्वर हैं।

Srishti Kunj हिन्दुस्तान, वरिष्ठ संवाददाता, प्रयागराजWed, 1 Jan 2025 07:54 AM
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महाकुंभ 2025: अग्नि अखाड़े के संतों को किसी भी अखाड़े में आसानी से मिल जाता है प्रवेश, ये है खासियत

सनातन धर्म की अलख जगाने वालों में श्रीपंच अग्नि अखाड़े का खास महत्व है। यह अखाड़ा कई मायनों में दूसरों से अलग होता है। अकेला अखाड़ा है जो ब्रह्मचारियों का है। इसकी सबसे खास बात यह कि इस अखाड़े के संत बाकी 12 अखाड़ों में जा सकते हैं, लेकिन 12 अखाड़े से संत इस अखाड़े में नहीं आ सकते हैं। अग्नि अखाड़े के संतों को ब्रह्मचारी होने की दीक्षा दी जाती है, पर संन्यास दीक्षा नहीं दी जाती। संन्यास की दीक्षा का अर्थ होता है कि चोटी और सूत्र के बंधन से मुक्त होकर अपना क्रियाकर्म खुद करना, अपना पिंडदान करना। जो इस कर्म को करता है वहीं संन्यास दीक्षा प्राप्त करता है और नागा संन्यासी बनता है।

लेकिन इस अखाड़े के संत चोटी भी रखते हैं और सूत्र भी रखते हैं। यही कारण है कि इस अकेले अखाड़े में एक भी नागा संत नहीं है और इसी वजह से श्रीपंच अग्नि अखाड़े के संतों का दूसरे अखाड़े में प्रवेश होता है, लेकिन दूसरे अखाड़े से किसी संत का इस अखाड़े में प्रवेश संभव नहीं होता है। संन्यास दीक्षा लेने के बाद उसे वापस नहीं लिया जा सकता है। श्रीपंच अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि इसी कारण से वर्ष 2019 के कुम्भ के बाद निरंजनी अखाड़े में आए और इस अखाड़े के पीठाधीश्वर भी बने।

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1136 में स्थापित हुआ था श्रीपंच अग्नि अखाड़ा

सनातन धर्म की दीक्षा को देने वाले श्रीपंच अग्नि अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी। इस अखाड़े की इष्ट देवी मां गायत्री हैं। यानी वेद, पाठ, यज्ञ इस अखाड़े का मूल कर्म है।

वाराणसी में है मुख्यालय

इस अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी में है। यहीं से अखाड़े के साधु संत सभी गतिविधियों को आगे बढ़ाते हैं। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक के कुम्भ में इस अखाड़े के संत अपनी अलग ही छवि के कारण जाने जाते हैं।

अखाड़े की खास बातें

- अखाड़े में पढ़े लिखे, संस्कृत और वेद के ज्ञाता को ही प्रवेश मिलता है।

- अकेला ऐसा अखाड़ा है, जिसकी इष्ट देवी है, इष्ट देव नहीं।

- अखाड़े में गाय की नियमित सेवा अनिवार्य है।

- गाय और गंगा के लिए इस अखाड़े में विशेष रूप से काम किया जाता है।

सचिव, स्वामी संपूर्णानंद ब्रह्मचारी ने कहा कि अग्नि अखाड़े के संत सभी 12 अखाड़ों में जा सकते हैं। यहां संत परंपरा में अखाड़े के नियमावली का पालन करना होता है। सभी पढ़े लिखे संत ही यहां पर मिलेंगे। स्वामी सर्वेश्वरानंद ब्रह्मचारी ने बताया कि अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी में है। हमारी इष्ट माता गायत्री हैं। अखाड़ा अति प्राचीन काल से सनातन धर्म के प्रचार के साथ ही अपने वैदिक यज्ञों के लिए जाना जाता है।

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