निजीकरण को लेकर यूपी के बिजली कर्मचारियों को हरियाणा से पंजाब तक मिला समर्थन, देशव्यापी आंदोलन की हुंकार
यूपी में बिजली वितरण समेत अन्य सेक्टरों को निजी कंपनियों के हवाले करने की तैयारी का विरोध शुरू हो चुका है। यूपी के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को दूसरे राज्यों के बिजली इंजीनियरों का भी समर्थन मिलने लगा है।
यूपी में बिजली वितरण समेत अन्य सेक्टरों को निजी कंपनियों के हवाले करने की तैयारी का विरोध शुरू हो चुका है। यूपी के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को दूसरे राज्यों के बिजली इंजीनियरों का भी समर्थन मिलने लगा है। हरियाणा और पंजाब के बिजली कर्मचारियों ने भी यूपी के समर्थन में आंदोलन की धमकी दे दी है। इसे राष्ट्रव्यापी भी बनाने की चेतावनी दी गई है। सोमवार को पीएसईबी इंजीनियर्स एसोसिएशन पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड और पंजाब स्टेट ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड में इंजीनियर-इन-चीफ से लेकर सहायक इंजीनियरों तक के 2000 से अधिक इंजीनियरों के दल ने यूपी के कर्मचारियों को समर्थन का ऐलान किया।
कहा कि यह बेहद अफसोसजनक है कि राज्य सरकार ने इंजीनियरों और कर्मचारी संघों के साथ सार्थक चर्चा किए बिना बिजली क्षेत्र के निजीकरण का एकतरफा निर्णय लिया है। यह निर्णय रुपये की बकाया राशि की वसूली न होने के चिंताजनक मुद्दे को भी नजरअंदाज करता है। इसके अलावा यह निर्णय निजी कंपनियों की पिछली विफलताओं को नजरअंदाज भी करता है। विशेष रूप से आगरा का उदाहरण सबक होना चाहिए था।
कहा कि पीएसईबी इंजीनियर्स एसोसिएशन यूपी इंजीनियरों और कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन के फैसले को पूरी तरह से उचित मानता है। कहा कि हम 6 दिसंबर 2024 से शुरू होने वाले आंदोलन को भी पूरा समर्थन देते हैं।
यह भी कहा कि एसोसिएशन उत्तर प्रदेश सरकार से राज्य के बिजली क्षेत्र और उसके नागरिकों के सर्वोत्तम हित में बिजली क्षेत्र के निजीकरण के अपने फैसले की तत्काल समीक्षा करने और उसे वापस लेने का आग्रह भी करता है।
निजी कंपनियों के टेक ओवर करते ही कार्य बहिष्कार होगा शुरू
उधर, नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी आफ इलेक्ट्रिसिटी एम्पलाइज एंड इंजीनियर (एनसीसीओईईई) ने चंडीगढ़ बिजली विभाग के निजीकरण और उत्तर प्रदेश सरकार के वाराणसी व आगरा डिस्कॉम को निजी हाथों में सौंपने के फैसलों के खिलाफ छह दिसंबर को देशभर में विरोध प्रदर्शन करने का फैसला लिया है।
इलेक्ट्रिसिटी एम्पलाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (ईईएफआई) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं एनसीसीओईई के वरिष्ठ सदस्य सुभाष लांबा ने सोमवार को यहां जारी बयान में कहा कि अगर निजीकरण के खिलाफ शांतिपूर्ण एवं लोकतांत्रिक तरीके से किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों की अनदेखी करके किसी जल्दबाजी में निजीकरण के फैसले को अमलीजामा पहनाने का प्रयास किया गया तो अंजाम बुरा होगा।
जिस दिन निजी कंपनी टेक ओवर करेगी उसी दिन कर्मचारी और इंजीनियर कार्य बहिष्कार कर सड़कों पर उतरने पर मजबूर होंगे। इसकी पूरी जिम्मेदारी उप्र सरकार व चंडीगढ़ प्रशासन की होगी। ईईएफआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं ऑल हरियाणा पावर कारपोरेशनज वर्कर यूनियन के राज्य प्रधान सुरेश राठी ने कहा कि हरियाणा के बिजली कर्मचारी भी प्रदर्शनों में शामिल होंगे।
लांबा ने कहा कि उप्र सरकार घाटे का बहाना बनाकर वाराणसी व आगरा डिसकॉम को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है लेकिन चंडीगढ़ बिजली विभाग तो प्रति वर्ष सैकड़ों करोड़ का मुनाफा कमा रहा है। उसका निजीकरण क्यों किया जा रहा है?
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की नीति कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए निजीकरण करने की है, इसलिए निजीकरण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बिजली बोर्ड का गठन मुनाफा कमाने के लिए नहीं किया गया था, उनका उद्देश्य 'नो प्रोफिट नो लॉस' में सभी वर्गों के उपभोक्ताओं को बिजली देकर देश का विकास करना था।
उन्होंने उत्तर प्रदेश व चंडीगढ़ के निजीकरण के खिलाफ सभी जन प्रतिनिधियों को आवाज बुलंद करने और बिजली कर्मचारियों एवं इंजीनियर के चल रहे आंदोलन का समर्थन करने की अपील भी की है।
उन्होंने उप्र के संदर्भ में कहा कि विभिन्न वर्गों के उपभोक्ताओं को दी जाने वाली सब्सिडी को घाटे की राशि से निकल दिया जाए और बिजली बकाया राशि की वसूली की जाए तो घाटा बराबर हो जायेगा। उन्होंने निजीकरण के खिलाफ शांतिपूर्ण एवं लोकतांत्रिक तरीके से चल रहे आंदोलन के नेताओं को दी जा रही धमकियों की कड़ी भर्त्सना की।
उन्होंने कहा कि वाराणसी व आगरा डस्किॉम के निजीकरण से जहां 27 हजार से अधिक कर्मचारियों एवं इंजीनियर पर छंटनी की तलवार लटक जाएगी और दूसरी तरफ बिजली की दरों में भारी बढ़ोतरी होगी। निजी कंपनी समाज सेवा के लिए नहीं आएगी वह मुनाफा कमाने के लिए आ रही है।