UP By Election: मीरापुर में BJP-RLD की दोस्ती का इम्तेहान, कांटे की टक्कर के बीच बन रहे नए समीकरण
- मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने के कारण BJP और RLD की नजर 6 मुस्लिम प्रत्याशी खड़े होने के कारण इन मतों के बिखराव पर है। फिलहाल, इस सीट पर मुस्लिम और ओबीसी मतदाताओं के कारण भाजपा-रालोद की संयुक्त प्रत्याशी और सपा उम्मीदवार में कांटे की टक्कर मानी जा रही है।
UP By-Election: यूपी के मुजफ्फरनगर की मीरापुर विधानसभा सीट पर मुस्लिम और ओबीसी मतदाताओं के कारण कांटे की टक्कर मानी जा रही है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा होने के कारण भाजपा और रालोद की नजर छह मुस्लिम प्रत्याशी खड़े होने के कारण इन मतों के बिखराव पर है। फिलहाल, इस सीट पर मुस्लिम और ओबीसी मतदाताओं के कारण भाजपा-रालोद की संयुक्त प्रत्याशी और सपा उम्मीदवार में कांटे की टक्कर मानी जा रही है। हालांकि नए समीकरण लगातार बन रहे हैं। जीत और हार का फैसला बहुत कुछ इन समीकरणों पर ही निर्भर करेगा।
मीरापुर उपचुनाव भाजपा-रालोद की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। यहां भाजपा नेत्री मिथलेश पाल को रालोद के सिंबल से उतारा गया है। वहीं, पूर्व सांसद एवं सपा नेता कादिर राणा की पुत्रवधू और पूर्व राज्यसभा सांसद एवं बसपा नेता मुनकाद अली की बेटी सुंबुल राणा सपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं।
सपा-बसपा नेताओं की परस्पर रिश्तेदारी से इस सीट के समीकरण बिगड़ रहे हैं। फिलहाल, इस सीट पर मुस्लिम और ओबीसी मतदाताओं के कारण कांटे की टक्कर मानी जा रही है। भाजपा और रालोद की दोस्ती का भी यहां सबसे बड़ा इम्तिहान होगा।
मीरापुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र मुजफ्फरनगर जिले का हिस्सा है और बिजनौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। वर्ष 2012 से पहले से मीरापुर विधानसभा क्षेत्र मोरना विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1952 में यह मुजफ्फरनगर पूर्वी/जानसठ उत्तरी विधानसभा सीट में था। वर्ष 1952 में बलवंत सिंह कांग्रेस के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए थे। 1962 में यह भोकरहेड़ी विधानसभा सीट में था और अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित हुआ। इसकी विधानसभा सीट संख्या 414 थी। तब यहां से शुगनचंद मजदूर कांग्रेस के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए थे। इसी दौरान जानसठ विधानसभा सीट भी बनी। उसके बाद 1967 में यह मोरना विधानसभा सीट हो गई थी, 2008 में परिसीमन के बाद 2012 में यह मीरापुर सीट बनी थी।
पहली बार उपचुनाव
इस सीट पर तीन बार विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं, जबकि मीरापुर विधानसभा सीट बनने के बाद पहली बार उपचुनाव होने जा रहे हैं। वर्ष 2012 में यहां से बसपा, वर्ष 2017 में भाजपा और वर्ष 2022 में रालोद ने परचम लहराया था।
रालोद का गढ़
मुजफ्फरनगर रालोद की राजनीतिक कर्मभूमि भी रहा है। इस बार भाजपा-रालोद के बीच गठबंधन भी है, लेकिन विपक्षी पार्टी खासतौर से सपा ने भी पूरी तरह से ताल ठोक रखी है। शह और मात का खेल भाजपा-रालोद और सपा-कांग्रेस गठबंधन में है। यहां जातीय चक्रव्यूह को भेदना किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान नहीं है।
कवाल ने झेला दंगे का दंश
2013 में जब मुजफ्फरनगर में दंगा हुआ था, तो उसका दंश मीरापुर के गांव कवाल से शुरू हुआ था। कवाल गांव में एक पक्ष के सचिन व गौरव और दूसरे पक्ष के शाहनवाज की हत्या हुई थी। उसके बाद कवाल से लेकर पूरे मुजफ्फरनगर में पंचायतों का दौर चला था और फिर दंगा भड़क गया था।
वैसे देखा जाए तो मोरना/ मुजफ्फरनगर विस क्षेत्र से रालोद ने वर्ष 2007, वर्ष 2009 उपचुनाव और वर्ष 2022 में तीन बार जीत हासिल की है। ठीक उसी तरह भाजपा ने भी अयोध्या मंदिर आंदोलन के दौरान राम लहर में लगातार दो बार यहां से परचम लहराया था।