हाशिमपुरा नरसंहार के दो और दोषियों को मिली जमानत, 38 मुसलमानों को उतारा था मौत के घाट
- इससे पहले इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने 10 अन्य दोषियों को भी जमानत दी थी। ये सभी 2018 से जेल में थे, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने उनके बरी किए जाने के फैसले को पलटकर उन्हें दोषी ठहराया था।
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने शुक्रवार को 1987 के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में दोषी ठहराए गए दो और व्यक्तियों को जमानत दे दी। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि दोनों दोषियों ने अब तक छह साल से अधिक की सजा काट ली है, जिसके आधार पर उन्हें जमानत का अधिकार है।
इससे पहले इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने 10 अन्य दोषियों को भी जमानत दी थी। ये सभी 2018 से जेल में थे, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने उनके बरी किए जाने के फैसले को पलटकर उन्हें दोषी ठहराया था। आज जमानत पाने वाले एक दोषी की उम्र 82 वर्ष है। 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें और 15 अन्य को लगभग 40 मुस्लिम पुरुषों की हत्या के मामले में दोषी ठहराया था।
क्या है हाशिमपुरा नरसंहार मामला?
हाशिमपुरा नरसंहार 22 मई 1987 को हुआ था। सांप्रदायिक तनाव के दौरान इस दिन उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के हाशिमपुरा क्षेत्र से ‘प्रादेशिक आर्म्ड कान्स्टेबुलरी’ (पीएसी) के जवानों ने करीब 50 मुस्लिम पुरुषों को उठाया। उन्हें एक ट्रक में बिठाकर एक नहर के पास ले जाया गया। सांप्रदायिक दंगों के कारण पीड़ितों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के बहाने शहर के बाहरी इलाके में ले जाया गया था, जहां उन्हें गोली मार दी गई और उनके शवों को एक नहर में फेंक दिया गया था। इस घटना में 38 लोगों की मौत हो गई थी तथा केवल पांच लोग ही इस भयावह घटना को बयां करने के लिए बचे।
अदालत का अब तक का फैसला
अधीनस्थ अदालत ने 2015 में 16 पीएसी कर्मियों को उनकी पहचान और संलिप्तता को साबित करने वाले साक्ष्यों के अभाव का हवाला देते हुए बरी कर दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2018 में अधीनस्थ अदालत के फैसले को पलट दिया और 16 आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 302 (हत्या), 364 (हत्या के लिए अपहरण) और 201 (साक्ष्य मिटाना) के साथ धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोषियों ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी और उनकी अपील शीर्ष अदालत में लंबित हैं।