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बीजेपी के लिए गठबंधन का गढ़ भेदना होगा और मुश्किल, सपा को भी बड़ी सीख; पढ़ें उपचुनाव के नतीजों का एनालिसिस

मैनपुरी और खतौली में करारी हार के बीच रामपुर से BJP के लिए राहत भरे नतीजे भले ही आए हैं लेकिन ये नतीजे मिशन-2024 के लिए सत्तारूढ़ भाजपा के लिए नई चुनौतियों का संकेत और सपा को भी यह सीख देने वाले हैं।

Ajay Singh आनंद सिन्‍हा , लखनऊFri, 9 Dec 2022 05:35 AM
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UP By-Election 2022: मैनपुरी लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी द्वारा स्व. मुलायम सिंह यादव की विरासत बरकरार रखने, खतौली में भाजपा की करारी हार के बीच रामपुर से उसके लिए राहत भरे नतीजे भले ही आए हैं लेकिन इन नतीजों ने पक्ष और विपक्ष को मिशन-2024 के लिए रणनीति में बदलाव के संदेश दिए हैं। नतीजे मिशन-2024 के लिए सत्तारूढ़ भाजपा के लिए नई चुनौतियों का संकेत देने वाले हैं। सपा को भी यह सीख देने वाले हैं कि सफलता के लिए अपने घर परिवार को सहेजे रखना होगा। भाजपा को शीर्ष पर बने रहने के लिए सियासी समीकरणों को बेहतर करते हुए जनकल्याण की योजनाओं से खासकर ओबीसी, दलित और मध्यम वर्ग को जोड़े रखना होगा।

मैनपुरी लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के गढ़ को भेदने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी लेकिन मुलायम की बहू डिंपल की जीत ने साफ कर दिया है कि यह सपा का गढ़ है और उसे भेद पाना भविष्य में भी आसान नहीं होगा। दरअसल, यहां से सपा वर्ष 1996 से लगातार जीतती आ रही है और यहां मतदाताओं का गणित समाजवादी पार्टी के लिए सबसे मुफीद रहता है। भाजपा ने भले ही शाक्य प्रत्याशी को उतार कर गैर-यादव ओबीसी को एक करने का प्रयास किया लेकिन यादव परिवार की एकता के आगे कोई रणनीति काम नहीं आई। नतीजों से साफ है कि ऐसे में तब जबकि शिवपाल की सपा में वापसी हो चुकी है, मैनपुरी या यूं कहें इटावा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, कन्नौज के इलाके के साथ सपा अपने गढ़ों में गहराई से जमी रहेगी, उसे चुनौती देने के लिए भाजपा को नई पैंतरेबाजी दिखानी होगी। सपा के लिए नतीजों ने एकजुट होकर संघर्ष बरकरार रखने का सबक दिया है, ताकि नतीजे उसके मुताबिक हो सकें।

पश्चिम में गठबंधन भाजपा के लिए नई चुनौती
पश्चिमी यूपी में पहले से ही चुनौती बना रालोद-सपा गठजोड़ अब मिशन-2024 में भाजपा के लिए नई चुनौतियां पेश करे तो हैरत नहीं। दरअसल, खतौली में भाजपा और सपा ने पिछली बार सैनी समाज से ही प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। सपा ने राजपाल सिंह सैनी को मैदान में उतारा था और भाजपा के विक्रम सिंह सैनी मैदान में थे। विक्रम करीब 16 हजार वोटों से जीते थे लेकिन इस बार सपा-रालोद गठबंधन से मैदान में उतरे मदन भैया गुर्जर समाज से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में मदन भैया के कद्दावर प्रत्याशी होने का लाभ भी सपा को मिला। इसके विपरीत राजकुमारी निहायत ही घरेलू महिला थीं। उनके पति विक्रम सजा होने के कारण मैदान में नहीं उतर सके थे। भाजपा की यह रणनीति कि विक्रम की सहानुभूति राजकुमारी को मिलेगी, मतदाताओं को रास नहीं आई। पार्टी को गुर्जरों के साथ ही जाट समाज का भी वाजिब वोट नहीं मिल सका। पार्टी को 22 हजार मतों से हार मिलना भी प्रत्याशी चयन पर सवाल खड़े कर रहा है।

रामपुर में नए सिरे से अपनानी होगी रणनीति
रामपुर में जीत पार्टी से ज्यादा आजम खां के कारनामों की पोल खोल रहे आकाश सक्सेना के व्यक्तिगत संघर्ष का परिणाम है। आकाश आजम खां के खिलाफ दर्ज हुए मुकदमों से लेकर सदस्यता खत्म होने तक के प्रकरण के केंद्र में रहे।

आकाश को वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में 34.62 फीसदी वोट मिले थे और इस बार कुल मत प्रतिशत ही 34 से थोड़ा ज्यादा था। आकाश को कांग्रेस के नवाब काज़िम अली खां द्वारा अंतिम समय में समर्थन करने का लाभ मिला। परिणाम से साफ है कि मिशन-2024 में रामपुर लोकसभा सीट पर पार्टी को प्रत्याशी चयन के साथ ही संगठन की रणनीति पर नए सिरे से सोचना पड़ेगा।

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