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मुलायम को पद्मविभूषणः सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले धरतीपुत्र को मोदी सरकार का सम्मान

मुलायम सिंह यादव का नाम समाजवादी राजनीति और पिछड़ों एवं वंचितों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता है। यूपी में उनकी सियासत को सामाजिक न्याय की राजनीति के उभार के तौर पर देखा जाता है।

Yogesh Yadav लाइव हिन्दुस्तान, लखनऊWed, 25 Jan 2023 11:31 PM
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गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर बुधवार को केंद्र की मोदी सरकार ने इस साल के पद्मपुरस्कारों की भी घोषणा की। 109 लोगों में छह लोगों को देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया है। इसमें राजनीतिक और सेवा क्षेत्र से सबसे बड़ा नाम समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का है। मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत यह सम्मान दिया गया है। पिछले साल 10 अक्टूबर को मुलायम सिंह का निधन हो गया था। मुलायम सिंह को पद्मविभूषण उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन के संघर्षों को मोदी सरकार का सम्मान माना जा रहा है। 

मुलायम सिंह यादव का नाम समाजवादी राजनीति और पिछड़ों एवं वंचितों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सियासत को सामाजिक न्याय की राजनीति के उभार के तौर पर देखा जाता है। राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण जैसे दिग्गज समाजवाजियों के साथ काम करने वाले मुलायम सिंह यादव ने सांप्रदायिकता के खिलाफ जंग में एक लकीर खींची थी। यही नहीं मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में हमेशा विकल्पों को खुला रखा। उन्होंने भाजपा से जंग भी लड़ी और जरूरत पड़ने पर सहयोग भी किया। इसके अलावा 1995 में कांशीराम के साथ मिलकर सरकार गठन कर सबको चौंका दिया था।

अत्याशित रहे मुलायम सिंह यादव के सियासी दांव

मुलायम सिंह यादव के सियासी दांव अकसर अप्रत्याशित होते थे। मुलायम सिंह ने सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, मायावती से लेकर तमाम नेताओं को अपने फैसलों से चौंकाया था। यहां तक कि समाजवादी पार्टी से सांसद होते हुए पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने के लिए बधाई भी दे दी थी। किसान परिवार में जन्म के बाद मुख्यमंत्री और रक्षामंत्री तक के सफर में अपने फैसलों के चलते अलग पहचान बनाई। उनके कई फैसलों ने न सिर्फ चौंकाया बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में बदलावों को भी गति दी...

पीएम बनने से रोका था सोनिया गांधी का रास्ता

बात 1999 की है। अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार 1 ही वोट से गिर गई थी। तब सोनिया गांधी ने समाजवादी पार्टी समेत कई दलों के समर्थन से राष्ट्रपति केआर नारायणन से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया था। लेकिन आखिरी वक्त में सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर मुलायम सिंह यादव पीछे हट गए थे।

इस तरह सोनिया गांधी पीएम बनते-बनते रह गईं और अंत में जब यूपीए को जीत मिली तो मनमोहन सिंह ही प्रधानमंत्री बने। उस घटना के बाद कांग्रेस का उनसे भरोसा हिल गया था, जो 2008 में परमाणु डील के मुद्दे पर समर्थन से ही लौटा। इस तरह मुलायम सिंह ने दोनों मौकों पर कांग्रेस और सोनिया गांधी को चौंकाया था।

मायावती से अदावत और फिर लंबी चली 'दुश्मनी'

मुलायम सिंह यादव की सियासत सिद्धांतों के साथ ही व्यवहारिक भी थी। उनके लिए कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं था। उन्होंने 1993 में कांशीराम के साथ गठबंधन किया था और भाजपा को उसके उभार के दौर में सत्ता से दूर कर दिया था। हालांकि यह गठबंधन दो साल ही चला। मायावती ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया।

इसके बाद जो हुआ, उसने यूपी की सियासत को सपा और बसपा के कड़वाहट भरे दौर को जन्म दिया। मायावती लखनऊ के एक गेस्ट हाउस में मीटिंग कर रही थीं। तभी सपा के लोगों ने उन पर हमला कर दिया। इस घटना के करीब ढाई दशक बाद ही सपा और बसपा एक हो पाए थे।

एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाने में भूमिका

एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को दिया जाता रहा है, लेकिन वास्तव में यह आइडिया मुलायम सिंह यादव का ही था। उन्होंने ही पीसी एलेक्जेंडर की बजाय कलाम को एनडीए का उम्मीदवार बनाने का सुझाव दिया था। उनके इस सुझाव ने कांग्रेस को भी बोल्ड कर दिया था।

जब मुलायम खुद पीएम की रेस में खा गए थे गच्चा

मुलायम सिंह यादव ने अपनी सियासी कला से दिग्गजों को झटका दिया था, लेकिन 1996 में वह खुद भी गच्चा खा गए थे। दरअसल वह पीएम बनने की रेस में माने जा रहे थे, लेकिन लालू यादव और शरद यादव जैसे ओबीसी नेताओं ने ही उन्हें पीछे खिसका दिया। इसके बाद कर्नाटक से आने वाले एचडी देवेगौड़ा को पीएम बनने का मौका मिला था। तब मुलायम सिंह यादव को रक्षा मंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा था। 

अखिलेश का नाम अचानक किया प्रोजेक्ट, सीधे ज्योतिषी को बताया

अखिलेश यादव ने 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में खासी मेहनत की थी, लेकिन पार्टी का चेहरा मुलायम सिंह यादव ही थे। लेकिन जब नतीजे आए और शपथ के लिए ज्योतिषी से मुहूर्त निकाला जाने लगा तो मुलायम ने अखिलेश के नाम से देखने को कहा। तब जाकर शिवपाल यादव समेत तमाम नेताओं को पता लगा कि मुलायम के मन में क्या प्लान चल रहा था।

मरणोपरांत भी सैफई के दामन पर टांक दिया सितारा

सैफई (इटावा)। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सैफई की गलियां मुलायम सिंह यादव को सम्मान से गर्व से भर गई हैं। सैफई उनकी पहचान से जुड़ा है। बुधवार की शाम सैफई के दामन में फिर यह बड़े गौरव का क्षण आया। यहां के लोगों को महसूस हुआ जैसे पद्म विभूषण मुलायम ही नहीं उन सभी के बुजुर्गों को मिला है। गरीब परिवार में 22 नवंबर 1939 को जन्मे थे। गांव के परिषदीय स्कूल में पढ़े। मैनपुरी से इंटर पास किया। इटावा के केके डिग्री कालेज में पहुंचे और छात्र संघ की राजनीति की। फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, रक्षामंत्री के रूप में काम करने के साथ एक मजबूत पार्टी की स्थापना की। आज उनके साथ-साथ सैफई के दामन पर भी एक बड़े सम्मान का सितार टंक गया है।

पांच भाइयों एक बहन में दूसरे नंबर के हैं मुलायम

सुघर सिंह यादव के बेटे के रूप में जन्मे मुलायम सिंह पांच भाइयों व एक बहन में दूसरे नंबर पर थे। सबसे बड़े भाई रतन सिंह, दूसरे नंबर पर मुलायम, तीसरे अभयराम और चौथे नंबर पर राजपाल सिंह यादव। शिवपाल सिंह यादव सबसे छोटे हैं। उनकी इकलौती बहन कमलादेवी मुलायम से छोटी और अभयराम से बड़ीं हैं। उनकी शादी शहर में रहने वाले डॉ.अजंट सिंह यादव से हुई है। रतन सिंह की मौत हो चुकी है।   

पिता की इच्छा के अखाड़े में बड़े-बड़ों को दी पटखनी

सैफई गांव की मिट्टी में पले-बढ़े मुलायम का भविष्य क्या था ये किसी और क्या उनको ही नहीं पता था। शुरूआती दौर में पिता की इच्छा की खातिर वह कुश्ती के मैदान में उतरे और खूब नाम कमाया, लेकिन उनकी रुचि राजनीति में थी। यही रुचि उन्हें छात्र संघ के चुनाव से लेकर मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री के पद तक लेकर गई। राजनीति के मंझे खिलाड़ी के रूप में देश में स्थापित हो चुके मुलायम ने धीरे-धीरे अपने परिवार को राजनीति में जमाया। 

शुरुआत चचेरे भाई रामगोपाल से हुई

सबसे पहले अपने राजनीतिक सलाहकार चचेरे भाई प्रो.रामगोपाल यादव को राजनीति में लाए। उन्हें पहले बसरेहर का ब्लॉक प्रमुख बनवाया और कुछ समय बाद ही जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया। इसके बाद सांसद बनाया। इसके कुछ समय बाद शिवपाल सिंह यादव को राजनीति में लाए और उनके लिए जसवंतनगर की अपनी सीट छोड़कर विधानसभा भेजा।

शिवपाल का राजनीतिक कद काफी बढ़ा और वह सपा की सरकारों में दर्जनों विभागों के मंत्री रहे। परिवार के लोगों को राजनीति में स्थापित करने का सिलसिला रुका नहीं और अपने बेटे अखिलेश यादव को कन्नौज से सांसद बनाया और बाद में वह मुख्यमंत्री बने। अब सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 

भाई के बेटे धर्मेंद्र को भी स्थापित किया   

मुलायम ने अपने भाई अभयराम के बेटे धर्मेंद्र यादव को बदायूं में स्थापित किया और वह कई बार वहां के सांसद रहे। फिर अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज लोकसभा की कमान सौंपी और वह सांसद बनीं। प्रो.रामगोपाल के बेटे अक्षय को फिरोजाबाद से चुनाव लड़ाकर सांसद बनाया।

यही नहीं अपने छोटे भाई राजपाल सिंह की पत्नी प्रेमलता यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया और उनके बाद उनके बेटे अभिषेक यादव अंशुल को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया। 2014 के चुनाव में जब देश में नरेंद्र मोदी की आंधी चली तब भी मुलायम सिंह यादव का परिवार चुनाव जीतने में सफल रहा। 

कभी सपा का गढ़ रहीं ये पांच सीटें  

परिवार की सभी पांचों सीटों मैनपुरी व आजमगढ़ से खुद, कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव व फिरोजाबाद से अक्षय चुनाव जीते। बाद में मैनपुरी की सीट से इस्तीफा देकर स्वयं आजमगढ़ के सांसद रहे और मैनपुरी से अपने भाई के नाती तेज प्रताप यादव को मैनपुरी से पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतारकर दिल्ली पहुंचाया।

उन दिनों परिवार के पांच सदस्य स्वयं मुलायम सिंह, पुत्रवधू डिंपल यादव, भतीजे धर्मेंद्र व अक्षय और पौत्र तेज प्रताप यादव सांसद रहे। 2019 परिवार के लिए अच्छा नहीं रहा। इस चुनाव में मैनपुरी से स्वयं और आजमगढ़ से बेटा अखिलेश यादव चुनाव जीत सके। पुत्रवधू डिंपल, भतीजे धर्मेंद्र व अक्षय चुनाव हार गए थे।
हजारीलाल वर्मा  के घर में रहकर पढ़ते थे

6 से 12 तक की शिक्षा उन्होंने करहल के जैन इंटर कालेज से हासिल की और बीए की पढ़ाई के लिए इटावा पहुंचे। इटावा में केकेडीसी कालेज में एडमिशन लिया और रहने के लिए जब बेहतर आसरा नहीं मिला तो कॉलेज के संस्थापक हजारीलाल वर्मा के घर में ही रहने का ठिकाना बना लिया।

1962 में पहली बार बने छात्रसंघ अध्यक्ष

1962 के इस दौर में प्रदेश में पहली बार छात्रसंघ के चुनाव की घोषणा हुई और राजनीतिक रुचि रखने वाले मुलायम ने यह मौका हाथ से जाने नहीं दिया। वह छात्र संघ के पहले अध्यक्ष बन गए। यहीं से राजनीति की शुरुआत करके एक युवा नेता के रूप में उभरे। हालांकि 1954 में डॉ.राम मनोहर लोहिया के चलाए गए नहर रेट आंदोलन में भी मुलायम ने अग्रणी भूमिका अदा की थी। 

करहल के जैन इंटर कॉलेज में पढ़ाते थे

एमए की शिक्षा लेने के लिए शिकोहाबाद के डिग्री कॉलेज में एडमिशन लिया। एमए करके करहल के जैन इंटर कॉलेज से बीटी की और कुछ समय तक जैन इंटर कॉलेज में बतौर शिक्षक काम किया, लेकिन राजनीतिक दिलचस्पी रखने वाले मुलायम चुप नहीं बैठे।

1967 में नत्थू ने जसवंतनगर से लड़ाया चुनाव

कुश्ती के हर दांवपेच सीख चुके मुलायम की इसी बीच भरथना में रहने वाले तब के जसवंत नगर के विधायक नत्थू सिंह से पहचान हो गई। 1966 में मुलायम रायनगर में कुश्ती लड़ रहे थे तब विधायक नत्थू सिंह भी मौजूद थे, मुलायम के धोबी पछाड़ दांव से आकर्षित नत्थू सिंह ने उनको गले लगाया। दोनों के बीच इतनी नजदीकियां बढ़ीं कि नत्थू सिंह ने 1967 के विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर की अपनी विधायक वाली सीट छोड़कर मुलायम को सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ाया और किस्मत के धनी मुलायम 28 साल की उम्र में विधायक बन गए।

इसके बाद वह 1971 में इटावा जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने। उधर मुलायम सिंह यादव ने जसवंतनगर में अपना झंडा लिया था और लगातार विधायकी का चुनाव जीतते रहे। 1966 में वह सहकारिता मंत्री बन गए और 1980 में उनको लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष बने। इसी के कुछ समय बाद ही उनको एमएलसी बनाया गया और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बने। 

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