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मुलायम का पहला चुनाव, राजनीतिक गुरु नत्थू का आशीर्वाद और मोदी लहर में भी जलवा, जानिए कई किस्से

इटावा के छोटे से गांव सैफई के गरीब परिवार में जन्मे मुलायम सिंह यादव ने अपनी काबिलियत के बल पर छात्र संघ अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री और रक्षामंत्री तक की कुर्सी हासिल की। मोदी लहर में भी जलवा दिखाया।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, इटावाMon, 10 Oct 2022 04:17 PM
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इटावा के छोटे से गांव सैफई के एक गरीब परिवार में 22 नवंबर 1939 में मुलायम सिंह यादव ने जन्म लिया। कुछ कर गुजरने की इच्छा रखने वाले मुलायम की प्रारंभिक शिक्षा गांव के परिषदीय स्कूल में हुई। मैनपुरी से इंटर पास करने के बाद इटावा के केके डिग्री कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की। एक दंगल के दौरान मुलायम सिंह पर जसवंतनगर के तत्कालीन विधायक नत्थू सिंह की नजर पड़ी। नत्थू सिंह ने अपनी जगह मुलायम को चुनाव लड़ाया। मुलायम चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने और  फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज भी उनका परिवार देश में सबसे बड़े राजनीतिक घराने के रूप में जाना जाता है।

पहलवानी से खुश होकर गुरु ने सौंप दी अपनी सीट

1966 में मुलायम रायनगर में कुश्ती लड़ रहे थे तब विधायक नत्थू सिंह भी मौजूद थे, मुलायम के धोबी पछाड़ दांव से आकर्षित नत्थू सिंह ने उनको गले लगाया। दोनों के बीच इतनी नजदीकियां बढ़ीं कि नत्थू सिंह ने 1967 के विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर की अपनी विधायक वाली सीट छोड़कर मुलायम को सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ाया और किस्मत के धनी मुलायम 28 साल की उम्र में विधायक बन गए। 
 इसके बाद वह 1971 में इटावा जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने। उधर मुलायम सिंह यादव ने जसवंतनगर में अपना झंडा लिया था और लगातार विधायकी का चुनाव जीतते रहे। 1966 में वह सहकारिता मंत्री बन गए और 1980 में उनको लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष बने। इसी के कुछ समय बाद ही उनको एमएलसी बनाया गया और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बने।

पहले चुनाव में इस तरह जुटाया चुनाव के लिए धन

नत्थू सिंह ने लोहिया से बात करके अपनी जगह मुलायम सिंह को भले ही टिकट दिला दिया लेकिन चुनाव के लिए पैसों की कमी आने लगी। मुलायम ने अपने दोस्त दर्शन सिंह के साथ प्रचार तो शुरू कर दिया लेकिन दिक्कतें काफी होने लगीं। दर्शन सिंह साइकिल चलाते और मुलायम कैरियर पर बैठकर अपना प्रचार प्रसार करते। फिर दोनों ने एक तरकीब निकाली। एक वोट और एक नोट का नारा दिया। दोनों ने आम जनता से वोट के साथ एक रुपया चंदा मांगते और ब्याज सहित उसे लौटाने का वादा भी करते।

कुछ पैसे जुटे तो चुनाव प्रचार के लिए पुरानी एम्बेसडर कार खरीदी। कार तो आ गई लेकिन सवाल था कि उसके लिए तेल के पैसे कहां से आएंगे। मुलायम के घर पर बैठक हुई। यहां कहा गया कि अपने गांव से पहली बार कोई विधायक जैसा चुनाव लड़ रहा है। सभी लोग मुलायम की मदद करेंगे। फैसला लिया गया कि गांव वाले हफ्ते में एक दिन एक वक्त खाना नहीं खाएंगे और उससे जो अनाज बचेगा उसे बेचकर पेट्रोल खरीदेंगे। इस तरह कार के लिए पेट्रोल की भी व्यवस्था हो गई थी।

राजनीति में रुचि ने छात्रसंघ अध्यक्ष से मुख्यमंत्री और रक्षामंत्री बनाया

सैफई गांव की मिट्टी में पले-बढ़े मुलायम का भविष्य क्या था ये किसी और क्या उनको ही नहीं पता था। शुरुआती दौर में पिता की इच्छा की खातिर वह कुश्ती के मैदान में उतरे और खूब नाम कमाया, लेकिन उनकी रुचि राजनीति में थी। यही रुचि उन्हें छात्र संघ के चुनाव से लेकर मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री के पद तक लेकर गई। राजनीति के मंझे खिलाड़ी के रूप में देश में स्थापित हो चुके मुलायम ने धीरे-धीरे अपने परिवार को राजनीति में जमाया। 

धीरे-धीरे परिवार को राजनीति में लेकर आए

सबसे पहले अपने राजनीतिक सलाहकार चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव को राजनीति में लाए। उन्हें पहले बसरेहर का ब्लॉक प्रमुख बनवाया और कुछ समय बाद ही जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया। इसके बाद सांसद बनाया। इसके कुछ समय बाद शिवपाल सिंह यादव को राजनीति में लाए और उनके लिए जसवंतनगर की अपनी सीट छोड़कर विधानसभा भेजा।

शिवपाल का राजनीतिक कद काफी बढ़ा और वह सपा की सरकारों में दर्जनों विभागों के मंत्री रहे। परिवार के लोगों को राजनीति में स्थापित करने का सिलसिला रुका नहीं और अपने बेटे अखिलेश यादव को कन्नौज से सांसद बनाया और बाद में वह मुख्यमंत्री बने। अब सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 

भाई के परिवारों को भी राजनीति में आगे बढ़ाया

मुलायम ने अपने भाई अभयराम के बेटे धर्मेंद्र यादव को बदायूं में स्थापित किया और वह कई बार वहां के सांसद रहे। फिर अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज लोकसभा की कमान सौंपी और वह सांसद बनीं। प्रोफेसर रामगोपाल के बेटे अक्षय को फिरोजाबाद से चुनाव लड़ाकर सांसद बनाया। यही नहीं, अपने छोटे भाई राजपाल सिंह की पत्नी प्रेमलता यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया और उनके बाद उनके बेटे अभिषेक यादव अंशुल को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया। 

मोदी की लहर में भी मुलायम परिवार के पांचों सदस्य जीते

2014 के चुनाव में जब देश में नरेंद्र मोदी की आंधी चली तब भी मुलायम सिंह यादव का परिवार चुनाव जीतने में सफल रहा। परिवार की सभी पांचों सीटों मैनपुरी व आजमगढ़ से खुद, कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव व फिरोजाबाद से अक्षय चुनाव जीते। बाद में मैनपुरी की सीट से इस्तीफा देकर स्वयं आजमगढ़ के सांसद रहे और मैनपुरी से अपने भाई के नाती तेज प्रताप यादव को मैनपुरी से पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतारकर दिल्ली पहुंचाया।

उन दिनों परिवार के पांच सदस्य स्वयं मुलायम सिंह, पुत्रवधू डिंपल यादव, भतीजे धर्मेंद्र व अक्षय और पौत्र तेज प्रताप यादव सांसद रहे। 2019 परिवार के लिए अच्छा नहीं रहा। इस चुनाव में मैनपुरी से स्वयं और आजमगढ़ से बेटा अखिलेश यादव चुनाव जीत सके। पुत्रवधू डिंपल, भतीजे धर्मेंद्र व अक्षय चुनाव हार गए थे।

हजारीलाल वर्मा  के घर में रहकर पढ़ते थे

6 से 12 तक की शिक्षा उन्होंने करहल के जैन इंटर कालेज से हासिल की और बीए की पढ़ाई के लिए इटावा पहुंचे। इटावा में केकेडीसी कालेज में एडमिशन लिया और रहने के लिए जब बेहतर आसरा नहीं मिला तो कॉलेज के संस्थापक हजारीलाल वर्मा के घर में ही रहने का ठिकाना बना लिया।

1962 में पहली बार बने छात्रसंघ अध्यक्ष

1962 के इस दौर में प्रदेश में पहली बार छात्रसंघ के चुनाव की घोषणा हुई और राजनीतिक रुचि रखने वाले मुलायम ने यह मौका हाथ से जाने नहीं दिया। वह छात्र संघ के पहले अध्यक्ष बन गए। मुलायम छात्र हित के लिए किसी भी आंदोलन से नहीं डरे। उनके इसी जज्बे और छात्रों की मदद के कारण दोस्त उन्हें एमएलए बुलाते थे। यहीं से राजनीति की शुरुआत करके एक युवा नेता के रूप में उभरे। हालांकि 1954 में डॉ.राम मनोहर लोहिया के चलाए गए नहर रेट आंदोलन में भी मुलायम ने अग्रणी भूमिका अदा की थी। 

करहल के जैन इंटर कॉलेज में पढ़ाते थे

एमए की शिक्षा लेने के लिए शिकोहाबाद के डिग्री कॉलेज में एडमिशन लिया। एमए करके करहल के जैन इंटर कॉलेज से बीटी की और कुछ समय तक जैन इंटर कॉलेज में बतौर शिक्षक काम किया, लेकिन राजनीतिक दिलचस्पी रखने वाले मुलायम चुप नहीं बैठे।

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