दिनभर सब्र बांधे मुलायम के परिजनों का देर रात फूटा दर्द, फूट-फूटकर रोईं डिंपल, बिलख पड़े धर्मेंद्र
परिवार को पूरी दुनिया में पहचान दिलाने वाले मुलायम सिंह यादव के सदा के लिए विदा लेने से दुखी परिजन दिन भर खुद को किसी तरह संभालते रहे। लेकिन देर रात दर्द फूट पड़ा और डिंपल-धर्मेंद्र बिलख पड़े।
परिवार को पूरी दुनिया में पहचान दिलाने वाले मुलायम सिंह यादव के सदा के लिए विदा लेने से दुखी परिजन दिन भर खुद को किसी तरह संभालते रहे। आंखें भर-भर आ रही थीं, लेकिन लोगों को सांत्वना देकर खुद के आंसुओं को किसी तरह सूख जाने को विवश करते रहे। लेकिन दिन भर दबाए रखा दर्द देर रात फूट ही पड़ा। एक तरफ परिवार की महिलाओं के बीच डिंपल फूट-फूट कर रो पड़ीं तो दूसरी तरफ धर्मेंद्र भी खुद को रोक नहीं सके और बिलख पड़े।
मुलायम सीख दे गए थे... विपत्ति से कभी न घबराना। जरा ठहरना.. सोचना फिर पूरी ताकत से लड़ना। लेकिन आज ऐसी विपत्ति है कि सीख साथ छोड़ रही है। सैफई कोठी में प्रोफेसर राम गोपाल हों या पूर्व सीएम अखिलेश। शिवपाल हों, धर्मेंद्र या फिर डिंपल। सब बस फूट कर रोना चाहते हैं पर भीड़, उम्र और अनुभव इसकी भी इजाजत नहीं देता।
देर रात मुलायम सिंह यादव के अंतिम दर्शन को इतनी भीड़ उमड़ी कि संभालना मुश्किल हो गया। लोगों के सब्र का बांध टूटता देख खुद प्रोफेसर राम गोपाल यादव, शिवपाल यादव, अखिलेश यादव और धर्मेंद्र यादव आगे आए और लोगों को हाथ जोड़कर ढांढस बंधाया। लोग रो रहे थे। अखिलेश भी रोना चाहते थे लेकिन पता था कि अगर वह रोए तो शायद कार्यकर्ताओं को संभालना मुश्किल हो जाएगा।
ये चारों नेता मुलायम सिंह के पार्थिव शरीर के पास ही बैठे थे। कोठी के बाहरी कक्ष में मुलायम सिंह को श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा हुआ था। परिवार की महिलाएं भी वहीं गमगीन बैठी अपलक नेताजी को निहार रही थीं। कई बार वह फफक पड़ीं तो अखिलेश ने उठकर उन्हें ढांढस बंधाया। धर्मेंद्र यादव और शिवपाल भी उन्हें सांत्वना देते रहे। देर रात तक न तो वहां से अखिलेश हटे और न ही शिवपाल और धर्मेंद्र।
इसी बीच आजम खां भी बेटे अब्दुल्ला और अन्य लोगों के साथ पहुंच गए। उनके पहुंचते ही न जाने क्या हुआ कि दिन भर जिन आंसुओं को रोक रखा था वह छलक पड़े। एक तरफ डिंपल फूट-फूटकर रोती नजर आईं तो दूसरी तरफ धर्मेंद्र बिलखते दिखाई दिये। इन दोनों को रोता देख अन्य लोगों की आंखों से भी आंसू की धारा बह निकली। सभी एक दूसरे को किसी तरह सांत्वना देते रहे और ढांढ़स बंधाते रहे।