Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़gyanwapi Supreme Court refuses to ban worship in the basement Namaz will also continue

ज्ञानवापी के तहखाने में पूजा पर रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, नमाज भी होती रहेगी

ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा रोकने की मुस्लिम पक्ष की मांग सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूर कर दी है। वाराणसी की जिला अदालत ने 31 जनवरी को यहां पूजा की इजाजत दी थी। हाईकोर्ट से भी झटका लगा था।

Yogesh Yadav भाषा, नई दिल्लीMon, 1 April 2024 04:16 PM
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ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा पर रोक से सुप्रीाम कोर्ट ने सोमवार को इनकार कर दिया। इसके साथ ही नमाज अदा करने को लेकर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष मसाजिद इंतजामिया कमेटी की याचिका पर काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ज्ञानवापी मसाजिद इंतजामिया कमेटी की नई याचिका पर सुनवाई कर रहा है। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा करने की अनुमति देने संबंधी अधीनस्थ अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया था। 

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पुजारी शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास को भी मसाजिद कमेटी की याचिका पर 30 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने को कहा है। शीर्ष अदालत की पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। 

गौरतलब है कि वाराणसी की जिला अदालत ने 31 जनवरी को ज्ञावापी मस्जिद के दक्षिणी (व्यास जी) तहखाने में पूजा का अधिकार देते हुए डीएम को इंतजाम करने का निर्देश दिया था। निर्देश के कुछ घंटे बाद ही डीएम ने यहां पर इंतजाम कर दिया और एक फरवरी से यहां पूजा शुरू हो गई थी। फिलहाल विश्वनाथ मंदिर प्रशासन के पास ही यहां पर पूजा का अधिकार है। इसी आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 

हाईकोर्ट ने 26 फरवरी को कमेटी की उस अर्जी को खारिज कर दिया था जिसमें 31 जनवरी को जिला अदालत द्वारा तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा-पाठ करने की अनुमति दी गई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मसाजिद इंतजामिया कमेटी की याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 1993 में 'व्यास जी के तहखाने' में पूजा रोकने का फैसला किया। अदालत ने कहा कि ज्ञानवापी के दक्षिणी तहखाने में पूजा पर रोक का फैसला 'अवैध' था।

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