भर/राजभर जातियों को ST में शामिल करने के लिए सरकार ने फिर मांगा समय, हाईकोर्ट ने पूछा फिर नहीं मांगेंगे
भर/राजभर जातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए सरकार की तरफ से हाईकोर्ट में फिर समय मांगा गया है। इससे पहले भी सरकार समय मांग चुकी है। हाईकोर्ट ने पूछा, क्या इसके बाद समय नहीं मांगेंगे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने से जुड़े मामले में राज्य सरकार को विचार कर निर्णय लेने के लिए अक्टूबर में दो माह का अतिरिक्त समय दिया था। ज्वाइंट डायरेक्टर ने फिर से दो माह का समय मांगा। कोर्ट ने पूछा क्या यह अंतिम बार होगा, इसके बाद समय नहीं मांगेंगे। इस पर सरकारी वकील ने जानकारी प्राप्त करने के लिए मोहलत मांगी तो कोर्ट ने चार जनवरी की तारीख लगाते हुए उन्हें जानकारी हासिल करने को कहा को है। यह आदेश न्यायमूर्ति विकास बुधवार ने जागो राजभर जागो समिति की अवमानना याचिका पर अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी व स्थायी अधिवक्ता को सुनकर दिया है।
इससे पहले राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि पूर्व के आदेश के अनुपालन में सर्वे का काम पूरा हो गया है। इसे अंतिम रूप दिया जाना शेष है। इसके लिए दो माह का और समय दिया जाए। इससे भी पहले कोर्ट ने केंद्र सरकार के 11 अक्तूबर 2021 के पत्र के संदर्भ में चार माह में अपना प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने का निर्देश दिया था। जिस पर अमल किया जाना है।
बताया गया था कि भर/राजभर जाति का 17 नोटिफाई जिलों में सर्वे पूरा हो गया है लेकिन इसे अंतिम रूप देने के लिए कुछ और समय चाहिए। जल्द ही रिपोर्ट दाखिल कर दी जाएगी। इस आधार पर उन्होंने कोर्ट के आदेश के अनुपालन के लिए दो माह का समय और मांगा था।
मामले के तथ्यों के अनुसार केंद्र सरकार ने 11 अक्तूबर 2021 को पत्र लिखकर राज्य सरकार से भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने के संदर्भ में प्रस्ताव मांगा था। इस पत्र के जवाब में राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार को दो माह में प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया लेकिन इस आदेश पर अमल नहीं किया गया। इसके बाद अवमानना याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से हलफनामा मांगा।
प्रमुख सचिव की ओर से दाखिल हलफनामे में जातियों के अध्ययन के लिए और समय की मांग की गई। कोर्ट ने चार माह की मोहलत देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अधिकतम चार माह के भीतर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज दिया जाए। अब सरकारी वकील ने दो माह का समय बीत जाने के बाद और समय मांगा तो कोर्ट ने स्पष्ट जानकारी मांगी कि क्या दो माह में आदेश का पालन अवश्य हो जाएगा।
समिति का कहना है कि भर एवं राजभर जातियां 1952 के पहले तक क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के तहत आती थीं। वर्ष 1952 के बाद उन्हें विमुक्त जाति घोषित कर दिया गया जबकि क्रिमिनल ट्राइब्स में आने वाली अन्य जातियों को एससी/एसटी में शामिल कर लिया गया।