मैनेजमेंट के भी एक्सपर्ट हैं बड़ा उदासीन के संत, महाकुंभ के बाद करेंगे बिहार कूच
- महाकुंभ में पहुंच रहे संत-महात्मा मैनेजमेंट के भी महारथी हैं। अपनी छावनी लगा रहे श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण के संतों ने अगले छह वर्षों का रूट चार्ट अभी से तैयार कर रखा है। अखाड़े के श्रीमहंत महेश्वरदास ने बताया कि महाकुम्भ 2025 के समापन के बाद रमता पंच प्रयागराज से बिहार की ओर कूच करेंगे।
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Mahakumbh 2025: गंगा की रेती पर बस रही तंबुओं की नगरी में पहुंच रहे संत-महात्मा मैनेजमेंट के भी महारथी हैं। महाकुंभ में अपनी छावनी लगा रहे श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण के संतों ने अगले छह वर्षों का रूट चार्ट अभी से तैयार कर रखा है। फरवरी 2025 में महाकुम्भ से विदाई के बाद 2031 में प्रयागराज में पड़ने वाले कुंभ तक की गतिविधियां अभी से तय हैं। अखाड़े के श्रीमहंत महेश्वरदास ने बताया कि महाकुम्भ 2025 के समापन के बाद रमता पंच प्रयागराज से बिहार की ओर कूच करेंगे।
वहां अपने आश्रमों में दो-चार दिन रुकते हुए पश्चिम बंगाल जाएंगे। बंगाल में अखाड़े के जितने आश्रम हैं उनमें होते हुए उड़ीसा की ओर बढ़ेंगे और भगवान जगन्नाथ के दर्शन करेंगे। वहां से 2027 तक पुणे पहुंचेंगे और चार्तुमास करेंगे। उसके बाद पूर्णमासी से दो दिन पहले त्रयम्बकेश्वर पहुंचेंगे और नासिक में लगने वाले कुंभ में पुण्य की डुबकी लगाएंगे। उसके बाद मुम्बई में चातुर्मास करेंगे। उसके बाद महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों जलगांव, मालेगांव, भुसावल आदि से होते हुए 2028 के उज्जैन कुंभ में भाग लेने पहुंचेंगे।
उज्जैन कुम्भ के बाद रमता पंच पंजाब में भ्रमण को निकलेंगे। वहां चंड़ीगढ़, अंबाला, पंचकुला, मोहाली, रोपण होते हुए होशियापुर जाएंगे और वहीं 2029 का चार्तुमास करेंगे। उसके बाद 2030 का चार्तुमास अमृतसर में करेंगे। फिर वहां से रमता पंच का काफिला धीरे-धीरे प्रयागराज की ओर बढ़ना शुरू हो जाएगा। अमृतसर से दिल्ली, पलवल, मथुरा, वृंदावन, आगरा, इटावा और कानपुर होते हुए 2030 के अंत तक प्रयागराज पहुंच जाएंगे और 2031 की जनवरी-फरवरी में अगले कुम्भ में प्रवास करेंगे।
पहले काबुल तक जाते थे रमता पंच
लगभग 256 साल पहले वर्ष 1768 में हरिद्वार कुम्भ में स्थापित इस अखाड़े के रमता पंच के संत-‑महात्मा काबुल, कराची, ढाका तक जाते थे लेकिन जैसे-‑जैसे देश की सीमाएं सिकुड़ती गईं रमता पंच का रूट भी कम होता गया।
बही खाते में समाया है रूटचार्ट
रमता पंच कब, कहां जाएंगे इसका सारा ब्योरा अखाड़े के बही में दर्ज होता है। हर साल यात्रा की बही तैयार की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यदि मुखिया न रहे तो भी बही के आधार पर पंच के संत आगे की यात्रा तय कर सके। यदि भ्रमण के दौरान रमता पंच किसी नये स्थान पर जाते हैं तो उस स्थान को बही में जोड़ दिया जाता है। और यदि पूर्व निर्धारित किसी स्थान पर नहीं जाते तो उसे बही में से हटा दिया जाता है।
किसे कहते हैं रमता पंच
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के आराध्य श्री चन्द्र भगवान और अखाड़े के शीर्ष चार प्रमुख महंतों को रमता पंच कहा जाता है। ये चारों महंत अपने गुरु की छत्रछाया में घूमते रहते हैं। इस अखाड़े के श्रीमहंत महेश्वरदास, महन्त दुर्गादास, महंत अद्वैतनाथ और महंत रामनौमी रमता पंच के चार महंत हैं।
साथ रखते हैं सारा बंदोबस्त
रमता पंच अपने साथ रहने-खाने का सारा बंदोबस्त रखते हैं। ये संत जहां भी जाते वहां सेवादार उनकी सेवा के लिए मौजूद रहते हैं। श्रीमहंत महेश्वरदास कहते हैं कि वे अपने साथ टेंट और रसद आदि का इंतजाम रखते हैं। हालांकि जल्दी टेंट आदि लगाने की जरूरत नहीं होती क्योंकि सभी स्थान पर सेवादार पहले से सारा इंतजाम किए रहते हैं।
256 सालों से बिना रुके चल रहे हैं अखाड़े के रमता पंच
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का मुख्यालय प्रयागराज में ही है। अखाड़े के रमता पंच 256 साल से लगातार बिना रुके भ्रमण करते आ रहे हैं। जमात धर्म प्रचार, सामाजिक समरसता के साथ ही कन्या भ्रूण हत्या और दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लोगों को जागरूक भी करती है। किसी भी स्थान पर दो से चार दिन तक ही रुकने के बाद दूसरे स्थान के लिए बढ़ जाते है।
इनका कहना है
श्रीमहंत महेश्वर दास ने बताया कि श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का पांच मुख्य सूत्र सेवा, स्वाध्याय, सुमिरन, सत्संग और समरसता है। सभी प्राणियों में ईश्वर का रूप देखने की हमारी परंपरा है। महंत रामनौमी दास ने कहा कि भौतिक वस्तुओं का त्यागपूर्ण उपभोग ही हमारा दर्शन है। हमें यही शिक्षा मिली है कि जितनी आवश्यकता है उतना उपभोग करो और बाकी दूसरों के लिए छोड़ दो।