रामपुर के इस म्यूजियम में है 1500 सिक्कों का दुर्लभ संग्रह
Rampur News - आज अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस है और रामपुर के रजा लाइब्रेरी में मध्यकालीन भारत के 15 सौ दुर्लभ सिक्कों का संग्रह है। ये सिक्के दिल्ली सल्तनत, मुगलकालीन और दुर्रानी राजवंश के हैं। लाइब्रेरी में...

आज अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस है...ऐसे मौके पर यह खबर रामपुर वालों के लिए महत्वपूर्ण भी है और गौरवमयी भी। जी हां, यहां एशिया की मशहूर रजा लाइब्रेरी में सिर्फ पांडुलिपियां और किताबें ही नहीं दुर्लभ सिक्के भी संरक्षित हैं। जो मध्यकालीन भारत के हैं। दिल्ली सल्तनत, मुगलकालीन सल्तनत और दुर्रानी राजवंश के लगभग 15 सौ दुर्लभ सिक्कों का यह संग्रह स्कॉलर्स से लेकर सैलानियों तक के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। रियासतकालीन रजा लाइब्रेरी एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में शुमार है। ज्ञान के अनमोल खजाने से कुछ पाने की चाहत में दुनियाभर से स्कॉलर यहां आते हैं। यहां पर दुर्लभ पांडुलिपियां, ऐतिहासिक दस्तावेज, इस्लामी सुलेख के नमूने, लघु चित्र, खगोलीय उपकरण और अरबी-फारसी भाषा में दुर्लभ सचित्र कार्य का बहुत दुर्लभ और मूल्यवान संग्रह तो संरक्षित है ही मध्यकालीन भारत के दुर्लभ सिक्के भी यहां संरक्षित और संग्रहित हैं, जिनकी संख्या 15 सौ के करीब है।
ये सभी दिल्ली सल्तनत, मुगलकालीन और दुर्रानी राजवंश के सिक्के हैं। ये सिक्के लाइब्रेरी की शान तो हैं ही यहां ज्ञान की खोज में आने वाले पर्यटकों के बीच भी आकर्षण का केंद्र हैं। बड़े दुर्लभ हैं ये सिक्के, सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त लाइब्रेरी में सिक्के विभाग के इंचार्ज तारिक खान ने बताया कि सिल्वर, कॉपर और सोने के 1361 सिक्के हैं। जिसमें सबसे ज्यादा सिक्के मुगल सल्तनत के हैं। उन्होंने बताया कि सिक्को को प्रोजल से बचाने के लिए आयरन की अलमीरा का प्रयोग किया गया है। जिसमें आद्रता और तापमान से लेकर साफ सफाई का विशेष ख्याल रखा गया है। जिसमें सिलिका जैल का इस्तेमाल किया जाता है। अगर फिर भी किसी कारण किसी सिक्के में कोई समस्या आती है तो उसको लाइब्रेरी में ही बनी प्रयोगशाला में सही किया जाता है। औरंगजेब ने सिक्कों से हटवाया कलमा लाइब्रेरी के रिकार्ड के मुताबिक औरंगज़ेब एक साधारण स्वभाव और रूढ़ीवादी शासक था, उसने सिक्कों पर से कलमा और इस्लामी लेखों को हटवाया और सिक्कों को नया रूप दिया। जिसमें शासक का नाम, टकसाल का नाम और जारी करने की तारीख़ सिक्कों पर लिखी होती थी। शाहजहां ने जारी किया था चांदी का सिक्का रजा लाइब्रेरी में संग्रहित मुगल बादशाह शाहजहां द्वारा जारी किया हुआ सिक्का है जो चांदी का बना है। इसका व्यास 2.2 सेंमी, मोटाई 3 मिमी० और वजन 11.350 ग्राम है। जो लाहौर की टकसाल में ढला है। इसी तरह पटना की टकसाल में ढला एक और चांदी का सिक्का है जिसका व्यास 2.4 सेंमी, मोटाई 2.8 मिमी० और वज़न 11.375 ग्राम है। इसी तरह मोअज्ज़म शाह आलम बादशाह गाजी के दौर का चांदी का बना हुआ सिक्का है। इसका व्यास 2.3 सेंमी, मोटाई 3 मिमी और वज़न 11.350 ग्राम है। इनके शासनकाल में भी बहुत से सोने, चांदी व तांबे के सिक्के जारी हुए। ये सिक्के शाहजहां नाबाद की टकसाल से ढले हैं। बरेली की टकसाल में ढलवाए सिक्के वर्ष 1748 ई से 1754 ई० तक हिंदुस्तान का सिंहासन मुग़ल बादशाह अहमद शाह बहादुर ने संभाला। अहमद शाह बहादुर के शासनकाल के तांबे के दाम, बहुत से चांदी के रुपये आज भी अलग-अलग संग्रहालयों में संग्रहित हैं। लगभग 15 टकसालों ने अहमद शाह बहादुर की सोने की मोहरें तैयार की। अहमद शाह बहादुर ने बरेली की टकसाल से अपने शासन के पांचवें वर्ष में जारी किया। इसका व्यास 2.3 सेमी०, मोटाई 2.9 मिमी० और वज़न 11.250 ग्राम है।
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