Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़प्रयागराजAllahabad High Court Imposes 30 000 Fine on Banaras Hindu University for Delayed Response

बीएचयू पर लगा 30 हजार रुपये हर्जाना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय पर 30 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। विश्वविद्यालय ने दो बार समय देने के बावजूद जवाबी हलफनामा नहीं दाखिल किया। कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई मामले को...

Newswrap हिन्दुस्तान, प्रयागराजFri, 20 Sep 2024 01:10 AM
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प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय पर 30 हजार रुपये हर्जाना लगाया है। कोर्ट ने यह हर्जाना दो बार समय देने पर भी जवाबी हलफनामा दाखिल न करने और कहने के बाद भी बहस न करने के पर हलफनामे के लिए तीसरी बार समय देते हुए लगाया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने कंचन मौर्या व दो अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। सुनवाई के दौरान उपस्थित बीएचयू की अधिवक्ता ने जवाबी शपथ पत्र दाखिल करने के लिए और समय मांगा है। याचियों के अधिवक्ता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट ने पहले ही दो बार जवाबी शपथ पत्र दाखिल करने के लिए समय दिया था। इस पर कोर्ट ने समय देने से इनकार कर दिया और अधिवक्ता से बहस करने को कहा लेकिन उन्होंने कहा कि उनके वरिष्ठ ने उन्हें निर्देश नहीं दिया है और फ़ाइल उनके पास नहीं है। कोर्ट ने दूसरी अधिवक्ता के बारे में पूछा गया तो बताया गया कि वह कोर्ट छोड़कर चली गई हैं। जब कोर्ट आदेश देने वाली थी तो अन्य अधिवक्ता ने आकर कहा कि वह यूनिवर्सिटी की ओर से बहस करेंगे।

कोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि मामला किसी अन्य अधिवक्ता कवसौंपा गया था फिर भी दूसरी अधिवक्ता ने समय मांगा। कोर्ट ने कहा कि ये सभी कार्रवाई मामले को टालने की रणनीति हैं। याचियों के अधिवक्ता ने कहा कि एक अन्य अधिवक्ता ने उन्हें बताया कि वह यूनिवर्सिटी की ओर से पेश होंगी। कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी ने अब तक जवाबी शपथ पत्र दाखिल नहीं किया है, इसके बावजूद दो बार समय दिया गया है। कोर्ट ने दोनों अधिवक्ताओं से बहस करने को कहा लेकिन वे समय मांग रहे हैं।

यूनिवर्सिटी के अधिवक्ता की मांग पर तीन सप्ताह का समय दिया जाता है, जिसके लिए यूनिवर्सिटी को 30,000 रुपये हर्जाना देना होगा। यूनिवर्सिटी यह हर्जाना रजिस्ट्रार जनरल के पास जमा करना होगा। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख लगाते हुए स्पष्ट किया कि यदि निर्धारित समय में जवाबी शपथ पत्र नहीं दाखिल किया गया तो मामले की सुनवाई यूनिवर्सिटी की ओर से जवाबी शपथ पत्र के बिना की जाएगी।

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