बोले उरई: डीजे ने बजा डाला हमारी रोजी-रोटी का बैंडबाजा
Orai News - उरई में बैंडबाजे की धुन मंद पड़ गई है क्योंकि डीजे की मांग बढ़ गई है। बैंडबाजा संचालक खलील और अन्य बैंडवाले आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। कई सालों तक इस पेशे में लगे लोग अब बेरोजगारी की ओर बढ़ रहे...

उरई। शादी हो या तिलक, छेदन हो या मुंडन, हर कार्यक्रम में चार चांद लगाते हैं बैंडबाजा वाले। दरवाजे पर बैंड न बजे तो कोई भी कार्यक्रम अधूरा सा लगता है। नाच-गाने के बीच इन्हीं की धुन पर मस्ती होती है पर आज बैंडबाजे की धुन मंद पड़ गई है। अब बैंडबाजे की जगह डीजे ने ले ली है। डीजे की डिमांड बढ़ने से बैंडबाजा वालों की रोजी-रोटी का संकट हो गया है। घर का खर्च भी जैसे-तैसे चल रहा है। इसके अलावा इन्हें न तो बेहतर इलाज मिल रहा है और न ही व्यवसाय करने के लिए रियायत पर ऋण। इनकी समस्या पर किसी का ध्यान नहीं है। मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां, सज के आएंगे दूल्हे राजा...भइया राजा बजाएगा बाजा...ये गीत और इसकी धुन हम सबने किसी न किसी शादी बारात में जरूर सुने होंगे। बैंडबाजे की धुन पर थिरके भी होंगे। पर अब इन बैंडबाजों की धुन धीर-धीरे मंद पड़ती जा रही है। इनकी जगह कानफोड़ू संगीत और डीजे की धमक लेते जा रहे हैं। इस वजह से आज बैंडबाजा का व्यवसाय दम तोड़ रहा है। अपनी परेशानियों का जिक्र करते हुए बैंडबाजा संचालक खलील ने बताया कि क्या बताएं साहब, अब तो हम खाली हाथ बैठे हैं। एक समय था जब हमारे पास खाली समय नहीं रहता था, पर आज बैंडबाजा वालों पर डीजे और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भारी पड़ रहे हैं। कार्यक्रमों पर राज करने वाले बैंडबाजा संचालक आज बुरे दौर से गुजर रहे हैं। इनका जीवन समस्याओं से भरा पड़ा है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से बातचीत के दौरान बैंड बाजा कंपनी के बुजुर्ग संचालक खलील ने कहा कि हमें दुकानों का आवंटन मुफ्त में किया जाए।
बैंडबाजा वालों का कहना है कि डीजे की डिमांड बढ़ी तो हमारी मांग घट गई। कई सालों तक अभ्यास करने के बाद हम हुनरमंद हो पाए। अब आसानी से दूसरे काम भी नहीं मिल रहे। ऐसे में पक्के घर, बेहतर इलाज, पेंशन, घरों के आसपास सफाई, रियायत पर ऋण न मिलने जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। सरकार हमारी तरफ भी ध्यान दे और हमारे विकास के लिए योजनाएं शुरू करे। हमें भी अनुदान पर या निशुल्क ढोल-नगाड़े, बैंडबाजे आदि म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट, बैठने के लिए बाजार में दुकान मुहैया कराए।
शहर के तुलसी नगर और गोपालगंज में करीब 24 बैंडबाजा की दुकानें हैं, जबकि पूरे शहर में 70 से ज्यादा बैंडबाजा कंपनी हैं। हर बैंड कंपनी में 20 से 30 लोग काम करते हैं जबकि इस पूरे कारोबार से दो हजार लोग जुड़े हुए हैं। बैंडबाजा कारोबार से जुड़े सुभाष लंबरदार का मानना है कि अगर समय रहते इस कारोबार की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो जल्द ही इस काम से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। बैंड बजाने वाले अपनी सेहत को इस पेशे में झोंक देते हैं, लेकिन जो कुछ उन्हें मिलता है उससे उनका भरण पोषण नहीं हो पा रहा। यही वजह है कि इस कारोबार से बैंड वालों की नई पीढ़ियां मुंह मोड़ रही हैं। बैंड मास्टर रज्जू ने बताया कि जब से शादियों में डीजे का चलन शुरू हुआ है, तब से बैंडवालों की दुकानदारी में कमी आई है। क्योंकि अब लोगों को तेज आवाज और डीजे की धुन ही अच्छी लगती है और बैंड बाजे सुनना पसंद नहीं करते। जिसके चलते उनकी दुकानदारी पूरी तरह से खत्म होती जा रही है। गुड्डन बैंडवालों ने बताया कि पहले हमारे यहां 100 लोग काम करते थे, लेकिन जब से डीजे का चलन शुरू हुआ है तब से कुछ ही लोग बचे हैं। लोग मजबूर होकर दूसरे काम करने लगे हैं।
तीन पुश्तों से चला काम अब दम तोड़ रहा
शहर के तुलसी नगर में इंडिया बैंड के मालिक खलील ने बताया कि उनका बैंडबाजे का पुश्तैनी काम है। पहले उनके बाबा किया करते थे फिर पिताजी ने किया अब वह खुद कर रहे हैं और इस काम को बढ़ाने के लिए उनका बेटा भी उनके साथ काम करता है। बताया कि पहले एक रात में तीन शिफ्ट में बुकिंग होती थी। जब से सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन आई है तब से केवल रात में 10 बजे तक ही बैंड बजा सकते हैं। इससे आमदनी खत्म हो गई है और वह भूखों मरने की नौबत आ गई है। उन्होंने बताया कि करीब एक दुकान से 50 परिवारों का पेट पलता था। आमदनी भी ठीक-ठाक हुआ करती थी, लेकिन अब तो सब कुछ खत्म होता सा नजर आ रहा है।
गायब हो रही शहनाई की परंपरा
बैंड कंपनी संचालक मुन्ना ने बताया कि पुराने जमाने के ढोल-नगाड़े, मजीरा, झांझ और हारमोनियम को आज की पीढ़ी कम पसंद करती है। उनकी पसंद डीजे के कानफोड़ू संगीत में बदल रही है, जिससे शहनाई पार्टी की यह परंपरा विवाह समारोहों से धीरे-धीरे गायब हो रही है।
बोले बैंडबाजा वाले
बैंड में काम करते हुए अर्सा हो गया, 20 साल से मैं ओपिनियों बजाता हूं लेकिन अब बैंड की बुकिंग कम हो गई है।
- रामपाल सिंह
कई सालों से बैंड में काम कर रहा हूं इस काम में मेरी उमर गुजरी जा रही है लेकिन अब बच्चों को इस काम में नहीं फंसाना चाहता हूं।
- रज्जू भैया
बैंडबाजा के काम से कभी हमारा परिवार चलता था लेकिन अब काम कम मिल रहा है, डीजे के चलन से आफत आ गई है।
- राकेश
बैंडबाजे का काम 60 फीसदी से कम हो गया है। ढोल बजाने का पुश्तैनी काम है लेकिन इससे गुजारा नहीं चल रहा है।
- गणेश प्रसाद
बैंडबाजा के काम से कभी हमारा परिवार चलता था लेकिन अब काम कम मिल रहा है, डीजे के चलन से आफत आ गई है।
- राकेश
बैंडबाजे का काम 60 फीसदी से कम हो गया है। ढोल बजाने का पुश्तैनी काम है लेकिन इससे गुजारा नहीं चल रहा है।
- गणेश प्रसाद
आर्थिक रूप से कमजोर बैंडबाजा दुकानदारों को प्रशासन द्वारा मिनी लोडर मुफ्त में दिया जाए।
- बलराम
एक समय था जब बिना बैंडबाजा के शादियां नहीं होती थीं लेकिन आज बैंड हो या न हो शादी में डीजे होना चाहिए।
- रतन
सहालग के दिन नो इंट्री शहर के बीच भारी वाहनों की देर से खोली जाए ताकि जाम की समस्या से परेशान न होना पड़े।
- लाला बंगरा
इस पेशे में जो लोग शामिल हैं उन्हें सूचीबद्ध किया जाए, स्वास्थ्य जीवन बीमा के लिए अभियान चला प्रोत्साहित किया जाए।
- सुखलाल मास्टर
खुशियों में अपनी सेवाएं देने वाले इस वर्ग के घर भी खुशियां बनी रहें, इसके लिए उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत किया जाए।
- देवी दयाल
बैंड कर्मियों को स्वास्थ्य बीमा योजना की जरूरत है, इस कारोबार से जुड़े बुजुर्गों के लिए पेंशन की व्यवस्था की जाए।
- खलील
बैंडबाजे के कारोबार को बढ़ाने की जरूरत है, नई पीढ़ी ब्रास बैंड से जुड़े गीत संगीत से दूरी बना रही है।
- कैलाश
बच्चों की पढ़ाई के लिए दिन रात मेहनत करता हूं कि उनको यह काम न करना पड़े। इतनी कम कमाई में कैसे पढ़ाएं।
- राजू गुप्ता
हर सहालग की कमाई से घर के खर्च के साथ ही बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में हम अन्य कार्य भी करते हैं।
- सुभाष
बैंडकर्मी बीमार होने पर अच्छा इलाज नहीं करा पाते हैं। इसलिए उन्हें आयुष्मान योजना का लाभ मिलना चाहिए।
- सुरेश कुमार
सुझाव
1. बैंडबाजा को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार योजनाएं बनाए।
2. बैंडबाजा वादकों को मिले कलाकार का दर्जा। इससे हमारा हौसला बढ़ेगा।
3. बारातों में डीजे के इस्तेमाल पर रोक लगाए सरकार। इससे हमारा भी कारोबार सही होगा।
4. कलाकारों को भत्ता दे सरकार। इससे बैंडबाजा कलाकारों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
5. बैंड कलाकारों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ दिलाया जाए।
6. हमें उचित जानकारी मिले जिससे हम जुर्माने से बच सकें और अपने कागज बनवा सकें।
शिकायतें
1. बुजुर्ग कारीगर अब असहाय हैं। कई लोगों को अब तक पेंशन नहीं मिल पाई है, गुजारा करने के लिए हाथ फैलाते हैं।
2. भीड़भाड़ वाली आबादी क्षेत्र में दुकानें नहीं मिल पा रही हैं।
3. पुश्तैनी कलाकारों की समाज में कोई भी पहचान नहीं है।
4. बैंडबाजा कलाकारों को मजदूर की तरह समझा जाता है। जबकि हम कलाकार हैं।
5. सरकारी कार्यक्रमों में बैंडबाजा कलाकारों को काम नहीं मिलता है। हमें दूर रखा जाता है।
6. ऑनलाइन बैंडबाजा बुकिंग की व्यवस्था को खत्म किया जाए। इसे व्यक्तिगत ही रखा जाए।
बोले जिम्मेदार
जल्द ही शहर और ग्रामीण इलाकों के बैंडबाजा कारोबार से जुड़े मजदूर वर्ग के लोगों से मुलाकात कर उनको शासन और प्रशासन की योजनाओं की जानकारी दी जाएगी। ताकि वह अपना रजिस्ट्रेशन कराकर सरकार की योजनाओं का लाभ ले सकें।
-जगदीश वर्मा, श्रम अधिकारी
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