बोले मिर्जापुर: सेहत-शिक्षा की गारंटी संग मिले आर्थिक सुरक्षा
Mirzapur News - प्लंबर की जिंदगी मुश्किलों से भरी है। उन्हें न तो सम्मान मिलता है और न ही स्थिर आमदनी। सरकारी योजनाएं उनके लिए अनुपलब्ध हैं और तकनीकी प्रशिक्षण की कमी भी है। वे अपनी मेहनत के बावजूद सामाजिक पहचान से...
प्लंबर की जिंदगी किसी खुशहाल परिवार की कहानी नहीं है। वे मेहनत खूब करते हैं, लेकिन उन्हें न सम्मान मिलता है न स्थिर आमदनी। अक्सर गंदे पानी में काम करना पड़ता है। सरकारी योजनाएं उनसे दूर हैं। श्रमिक कार्ड का लाभ नहीं मिलता। इस दौर में तकनीकी दक्षता की कमी बेहद अखरती है। वे अपनी जिंदगी में लाभ के एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। उनकी दुनिया पाइप लाइन की मरम्मत से कहीं ज्यादा जटिल है। वे सेहत एवं शिक्षा की गारंटी के साथ आर्थिक सुरक्षा चाहते हैं। नगर के वासलीगंज के एक प्रतिष्ठान पर जुटे प्लम्बरों ने ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में अपनी परेशानी बताई।
कहा कि पानी हर घर में चाहिए लेकिन जो आदमी पानी देने की पाइप फिटिंग करता है, उसे समाज में कोई नहीं पूछता। पिछले दस वर्षों से प्लंबरिंग का काम कर रहे हैं। माथे पर पसीना, गहरी थकान और आंखों में धुंधला भविष्य- जिले भर के 1000 से अधिक प्लंबर इसी हाल में जी रहे हैं। उन्हें न योजनाओं का लाभ और न स्थायी रोजगार। धर्मराज चौहान ने कहा कि हम आवश्यक सेवा देते हैं, पर पहचान से दूर हैं। हम प्लंबरों का काम मूलभूत सुविधाओं से जुड़ा है-पेयजल, बाथरूम, टंकी, शौचालय, सीवरेज से लेकर बिल्डिंग की पाइप लाइन तक। मगर हमें न श्रमिक माना जाता है, न कुशल कारीगर। बताया, हमारे बच्चे अब कहते हैं कि बाबू ये कैसा काम करते हो? राजेश नेक हा कि हम प्लंबरों की आमदनी दिहाड़ी पर निर्भर है। दिन में जितना काम मिला, उतनी कमाई। कई बार हफ्तों तक काम नहीं मिलता। जाड़ा-बरसात में काम ठप हो जाता है। त्योहारों में या गर्मी में कुछ काम चलता है। महीने में 8,000 से 10,000 मुश्किल से मिल पाता है। श्रमिक कार्ड का लाभ नहीं: सरकार ने प्लंबरों जैसे श्रमिकों के लिए श्रमिक कार्ड योजना चलाई है लेकिन उसका लाभ नगण्य है। अलीजान अली ने बताया कि कार्ड के जरिए कभी कोई सहायता नहीं मिली। आवास, पेंशन, बच्चों की फीस, इलाज-कोई मदद नहीं। बोले, अब कार्ड बनवाने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की बात कही जा रही है। श्रम विभाग की योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। बच्चों की पढ़ाई में भी सहायता नहीं मिलती। दूर हैं सरकारी योजनाएं: प्लंबरों को प्रधानमंत्री कौशल विकास, मुद्रा लोन, स्वरोजगार योजना जैसी योजनाओं के बारे में न जानकारी है, न पहुंच। गुड्डू ने कहा कि सरकारी दफ्तर जाकर पूछने का वक्त नहीं मिलता। कोई जानकारी देने भी नहीं आता। सरकार की योजनाएं हम तक नहीं पहुंचतीं। इससे प्लंबरों को काफी दिक्कत होती है। इसके लिए नगर में जागरूकता शिविर लगने चाहिए। इलाज का लंबा खर्च: नालियों और सीवेज से संपर्क, भारी औजार और अस्वाभाविक पोजिशन में घंटों काम करना- ये सब प्लंबरों की सेहत पर भारी पड़ते हैं। हिंचलाल बोले, कंधा अब काम नहीं करता, लेकिन रोजी रोटी के लिए उतरना पड़ता है। इलाज का खर्च खुद उठाते हैं। बताया कि ज्यादातर प्लंबरों के पास बीमा नहीं है। आयुष्मान कार्ड बहुतों का बना ही नहीं है। जिनके पास आयुष्मान कार्ड है, उन्हें उपयोग की प्रक्रिया नहीं पता। इससे इलाज में भारी धन खर्च हो जाता है। मेहनत है, इज्जत नहीं: प्लंबरों की मेहनत हर घर की नींव मजबूत करती है, लेकिन समाज में उन्हें सम्मान नहीं मिल पाता। ये लोग पानी टंकी, पाइपलाइन दुरुस्त करते हैं, मगर लोग उन्हें मजदूर मानते हैं। विकास ने कहा, लोग हमें बुलाते तो हैं पर बैठने या एक गिलास पानी के लिए नहीं पूछते। यह मानसिकता प्लंबरों को हतोत्साहित करती है, उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है। प्रस्तुति: कमलेश्वर शरण/ गिरजा शंकर मिश्र तकनीकी प्रशिक्षण की कमी से होती है दिक्कत प्लंबरिंग की दुनिया बदल चुकी है। सेंसर बेस्ड वॉशबेसिन, हीटिंग सिस्टम, स्मार्ट टॉयलेट का जमाना है लेकिन तकनीकी दक्षता की कमी प्लंबरों को इन कामों से बाहर कर रही है। संजय बोले, अब सीपीवीसी, पीपीआर और वाटर रिसाइकलिंग जैसे सिस्टम आ गए हैं, लेकिन हमें कोई सिखाता नहीं। जिले में ऐसा सरकारी केंद्र नहीं है, जो हम को तकनीकी रूप से दक्ष बना सके। इस कारण बेहतर पारिश्रमिक भी नहीं मिल पाता। ठेकेदारी सिस्टम में शोषण: बड़े भवनों के निर्माण स्थलों पर प्लंबर सीधे काम नहीं करते बल्कि ठेकेदारों के अधीन रहते हैं। ठेकेदार तय मजदूरी में कमीशन काट लेते हैं। इससे प्लंबरों को आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। जुगनू ने बताया कि ठेकेदार 800 रुपये में तय करते हैं, पर हमें 500-550 रुपये ही भुगतान करते है। बोलने पर काम से निकाल देते हैं। जिले में कोई सरकारी संस्था नहीं है जो मजदूरों का शोषण रोके और ठेकेदारों पर नियंत्रण कर सके। बिना सुरक्षा के काम: प्लंबरों को सुरक्षा के लिए में ग्लब्स, मास्क, गमबूट, हेलमेट आदि खुद खरीदने पड़ते हैं। ज्यादातर प्लंबर रोज कमाने-खाने वाले होते हैं, इसलिए ये उपकरण खरीदना उनके बस की बात नहीं होती। इकराम ने कहा कि बिना किसी सुरक्षा के सीवेज, गंदे पानी में काम करने से स्किन इंफेक्शन, सांस की तकलीफ, पीठ दर्द और हाथ-पैर कटने जैसी दिक्कतें आम हो गई हैं। सरकार की ओर से हमें मुफ्त या सब्सिडी पर सुरक्षा उपकरण मुहैया कराना बेहद जरूरी है ताकि हमारा स्वास्थ्य सुरक्षित रहे और हम बेहतर कार्य कर सकें। आरटीई का फायदा नहीं गोपाल गुप्ता ने कहा कि आज के जमाने में बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना बहुत मुश्किल हो गया है। न छात्रवृत्ति मिलती है, न ही स्कूलों में फीस में छूट। सरकार ने आरटीई (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) जैसी योजना चलाई है, लेकिन उसका लाभ हमें कभी नहीं मिला। निजी स्कूल कहते हैं कि कोई सीट नहीं है, सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं है। ऊपर से किताब-कॉपी, ड्रेस और ट्यूशन का खर्च अलग। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे बच्चों की पढ़ाई में मदद करे। सुझाव और शिकायतें 1. जिले में प्लंबरों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोले जाएं, जहां उन्हें नए उपकरणों और तकनीकों की जानकारी दी जाए। 2. श्रम विभाग और नगर निकाय की ओर से प्लंबरों को श्रमिक कार्ड, आयुष्मान, पीएम कौशल योजना की जानकारी देने के लिए विशेष कैंप लगाए जाएं। 3. सभी प्लंबरों को आयुष्मान योजना और ई-श्रम पोर्टल से जोड़कर मेडिकल बीमा का लाभ दिलाया जाए। 4. प्लंबरों के बच्चों के लिए सरकार को विशेष छात्रवृत्ति शुरू करनी चाहिए। आरटीई में प्राथमिकता दी जाए। 5. नगर निकायों और अन्य विभागों की योजनाओं में स्थानीय पंजीकृत प्लंबरों को प्राथमिकता दी जाए। हुनरमंद प्लंबरों को सरकारी कार्यों से जोड़ा जाए। इससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। 1. प्लंबरों को श्रमिक कार्ड के बावजूद पेंशन, आवास, इलाज या बच्चों की फीस में कोई सहायता नहीं मिल रही। 2. प्लंबरों को सीवेज और खतरनाक औजारों के बीच काम करते समय सुरक्षा उपकरण की आवश्यकता होती है, लेकिन उन्हें खुद खरीदने पड़ते हैं। 3. प्लंबरों की आमदनी पूरी तरह दिहाड़ी पर निर्भर है।जाड़े-बरसात में काम ठप हो जाता है। उनके पास स्थायी आय का कोई स्रोत नहीं होता। 4. सरकारी कामों में ठेकेदार बाहरी प्लंबरों को लाते हैं। स्थानीय प्लंबरों को ऐसे कामों में न शामिल किया जाता है, न प्राथमिकता दी जाती है। 5. कम आमदनी, असुरक्षित काम और सामाजिक सम्मान की कमी के कारण युवा इस पेशे में रूझान नहीं दिखा रहे हैं। इससे इस पेशे का भविष्य खतरे में है। सरकारी कामों में मिले प्राथमिकता जिले के प्लंबर पाइपलाइन, जल आपूर्ति, सीवरेज और मरम्मत जैसे जरूरी कार्यों में निपुण हैं, लेकिन जब सरकारी योजनाओं में काम की बात आती है तो उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। शम्भूनाथ ने बताया कि स्कूल-अस्पताल, सरकारी कार्यालय या जलकल की परियोजनाओं में ठेकेदार बाहरी प्लंबर लाते हैं, जिससे स्थानीय प्लंबरों को काम नहीं मिल पाता। इससे उनकी रोजी-रोटी प्रभावित होती है। स्थानीय हुनर भी उपेक्षित होता है। नरेश गौतम ने कहा कि सरकार कुशल श्रमिकों का पंजीकरण कर उन्हें प्रमाण-पत्र दे और हर विभाग को निर्देशित करे कि प्राथमिकता स्थानीय पंजीकृत प्लंबरों को दी जाए। इससे काम के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। प्लंबिंग जैसे मेहनती पेशे से नई पीढ़ी का रूझान तेजी से घट रहा है। वजह- कम आमदनी, सम्मान की कमी, असुरक्षित कामकाज और सरकारी उपेक्षा। युवा मानते हैं कि न भविष्य की गारंटी है, न सामाजिक पहचान। इससे पारंपरिक हुनर खत्म हो रहा है। गोपाल ने कहा, यही हाल रहा तो आने वाले समय में कुशल प्लंबरों की भारी कमी हो सकती है।
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