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बोले मिर्जापुर: सिस्टम के अभिन्न अंग, सुविधाओं की लड़ते जंग

Mirzapur News - राजकीय वाहन चालकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उनका विश्रामालय गोदाम में बदल गया है, और वे अपने खर्च पर गाड़ी ठीक करते हैं। सेवानिवृत्ति लाभ समय पर नहीं मिलता, और उन्हें सम्मान भी नहीं...

Newswrap हिन्दुस्तान, मिर्जापुरMon, 19 May 2025 12:05 AM
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बोले मिर्जापुर: सिस्टम के अभिन्न अंग, सुविधाओं की लड़ते जंग

हर रोज अफसरों को वक्त पर दफ्तर पहुंचाने वाले, देर रात तक उनके साथ दौड़ते रहने वाले राजकीय वाहन चालक कई तरह की मुश्किलों से जूझ रहे हैं। गर्मी-सर्दी, धूप-बारिश में गाड़ी दौड़ाने वाले चालकों के विश्रामालय को गोदाम बना दिया गया है। वे कहां बैठें, यह गंभीर समस्या है। गाड़ी खराब हो जाए तो अपनी जेब से दुरुस्त कराएं। अफसरों की डांट भी झेलें। उनका कहना है कि ड्यूटी का समय तय नहीं रहता। रिटायरमेंट के समय देयकों का भुगतान नहीं होता। सम्मानजनक विदाई के लिए भी तरसते हैं। जिले में जहां सरकारी सेवाओं का विस्तार होता जा रहा है, वहीं सरकारी वाहन चालकों की स्थिति चिंताजनक है।

नगर के फतहां स्थित सिंचाई कालोनी में ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान राजकीय वाहन चालकों ने अपनी समस्याएं बताई। गौरीशंकर तिवारी का कहना था कि सरकार का वाहन चलाते हैं, लेकिन अपनी जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ती नहीं दिख रही है। बद्री प्रसाद बोले, वाहन चालक साधारण कर्मचारी नहीं हैं। वे न सिर्फ अफसरों को गंतव्य तक पहुंचाते हैं, बल्कि आपात परिस्थितियों में भी सेवा देते हैं। जब उन्हें वर्दी, पहचान और सम्मान नहीं मिलता तब मनोबल टूटने लगता है। रमाकांत ने कहा कि सरकार के इंजन से जुड़कर चलने वाले हम लोग सिस्टम की पटरी से उतर चुके हैं। जिले में कभी 250 राजकीय वाहन चालक थे, अब मात्र 75 बचे हैं। विश्रामालय बना स्टोर रूम: प्रशांत मिश्रा ने बताया कि राजकीय वाहन चालक महासंघ का विश्रामालय चालकों के बैठने की जगह था, उसे स्टोर रूम में तब्दील कर दिया गया है। बोले, हमारे लिए बना कमरा भी छीन लिया गया, अब संघ की बैठक मैदान में करनी पड़ती है। रामलाल ने कहा कि हर विभाग के यूनियन का कमरा है, लेकिन हमारे पास सिर्फ आसमान है। महासंघ की मांग है कि उसे फिर से कार्यालय उपलब्ध कराया जाए। निजी वाहनों पर सरकारी ठप्पा: अशोक कुमार ने कहा कि इन दिनों जिले में बड़ी संख्या में ऐसे निजी वाहन देखे जा सकते हैं, जिन पर ‘उत्तर प्रदेश सरकार लिखा रहता है। कई हूटर लगाकर चलते हैं, जिससे भ्रम फैलता है कि ये सरकारी वाहन हैं। जबकि हकीकत यह है कि इन वाहनों का टैक्सी परमिट नहीं होता। बिना वैध अनुबंध के उन्हें विभिन्न विभागों में लगाया गया है। उन्होंने जोर दिया कि आरटीओ विभाग इनके खिलाफ विशेष चेकिंग अभियान चलाकर कड़ी कार्रवाई करे। तब मामला खुल जाएगा। राजस्व में वृद्धि होगी। समय से नहीं मिलता सेवानिवृत्ति लाभ: बद्रीप्रसाद ने बताया कि राजकीय वाहन चालकों को ग्रेड वेतन समय पर नहीं मिल रहा है। कई बार जानबूझ कर फाइल रोक दी जाती है। वहीं, सेवानिवृत्ति के बाद भी कर्मचारियों को समय पर उनका अंतिम भुगतान नहीं मिलता। जबकि शासन का स्पष्ट आदेश है कि एक महीने के अंदर सेवानिवृत्त कर्मचारी को सभी लाभ प्रदान किए जाएं। दुःख की बात यह है कि सेवानिवृत्त चालकों की विदाई भी विभागीय स्तर पर नहीं की जाती। ड्यूटी का समय तय नहीं: वाहन चालकों के मुताबिक उनकी सुबह की ड्यूटी नौ बजे शुरू होती है, लेकिन यह तय नहीं रहता कि वह कब खत्म होगी। कभी रात के 11 बजे, कभी पूरी रात ड्यूटी करनी पड़ती है। वीआईपी मूवमेंट, अधिकारियों की यात्रा या आकस्मिक स्थितियों में छुट्टी का कोई मतलब नहीं रह जाता। चालक शोभनाथ ने कहा कि अतिरिक्त ड्यूटी के लिए भुगतान की भी व्यवस्था नहीं है। सामाजिक सम्मान की कमी: वीरेंद्र कुमार ने कहा, चालकों को अधिकारी सम्मान नहीं देते। उन्हें सिर्फ वाहन का ड्राइवर समझा जाता है, जबकि वे हर परिस्थिति में वाहन चलाकर विभागीय कार्यों को गति देते हैं। कई बार दफ्तर में उनसे चाय मंगवाई जाती है। बंगले पर पहुंचने पर बाजार से सामान लाने का लिस्ट पकड़ा दिया जाता है। यह काम भी मजबूरी में करना पड़ता है। काम न करने पर विभागीय अधिकारी तरह-तरह से परेशान करते हैं। प्रस्तुति : कमलेश्वर शरण/ गिरजाशंकर मिश्र सुझाव और शिकायतें 1. आरटीओ बिना परमिट और अनुबंध वाले वाहनों पर कार्रवाई करें। सरकारी चालक की जगह कोई और न ले। 2. राजकीय वाहन चालक महासंघ को अपना कार्यालय दिया जाए। सुव्यवस्थित कार्यालय के अलावा सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएं। 3. राजकीय वाहन चालकों को हर वर्ष वर्दी और पहचान पत्र दिए जाएं। हर 6 महीने में चालकों का स्वास्थ्य परीक्षण हो। 4. सेवानिवृत्ति के एक माह के अंदर सभी देयकों का भुगतान सुनिश्चित किया जाए। विदाई समारोह अनिवार्य किया जाए। 5. हर तीन साल में चालक के सेवा मूल्यांकन के आधार पर ग्रेड वेतन का निर्णय हो। इसके लिए विभागवार समय-सारणी जारी की जाए। 1. बिना परमिट और वैध अनुबंध के निजी वाहनों पर ‘उत्तर प्रदेश सरकार लिखवा कर विभागीय कार्यों में लगाया जा रहा है। इससे सरकारी चालकों की भूमिका गौण हो रही है। 2. राजकीय वाहन चालक महासंघ के लिए बना विश्रामालय अब गोदाम में तब्दील कर दिया गया है। संघ को खुले में बैठक करनी पड़ती है। 3. पीडब्ल्यूडी के दर्जनों रोलर चालकों सहित बेकार खड़े हैं, जबकि निजी रोलरों से सड़क निर्माण कराया जा रहा है। संसाधनों का दुरुपयोग है। 4. सेवानिवृत्ति के बाद समय पर ग्रेच्युटी, पेंशन का भुगतान नहीं होता। विदाई समारोह नहीं होता है। 5. चालकों को वर्षों तक ग्रेड वेतन नहीं मिलता। फाइल दौड़ती है, आदेश नहीं आता। चालकों की उम्र बढ़ती जा रही है, वेतन वहीं अटका है। अधिकारी नहीं सुनते, काम का बोझ ज्यादा सिंचाई विभाग में एक-एक अधिकारी को कई डिविजन की जिम्मेदारी दे दी गई है। इससे वह किसी एक डिविजन पर ध्यान नहीं दे पा रहे। नतीजा, कार्मिकों की फाइलें महीनों लंबित रहती हैं। वेतन में कटौती हो जाती है या बिल लंबित पड़े रहते हैं। उनका निस्तारण भी समय से नहीं होता। धीरेंद्र कुमार ने बताया कि गुण नियंत्रण खंड—3 पुनर्गठित होकर मिर्जापुर आया है, लेकिन प्रभारी अधिशासी अभियंता इस डिविजन के कर्मचारियों की समस्याओं पर ध्यान ही नहीं देते। किसी की कटौती का भुगतान लंबित है तो किसी का दूसरा काम रुका है। लंबित मामलों का निस्तारण हो जाए कर्मचारियों को राहत मिलेगी। सरकारी संसाधनों की बर्बादी मनीष यादव ने ध्यान दिलाया कि पीडब्ल्यूडी में लगभग 10 रोलर खड़े हैं जबकि विभाग निजी रोलर से काम करवा रहा है। बाहरी ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाया जा रहा है। इससे न केवल सरकारी संसाधनों की बर्बादी हो रही है, बल्कि विभागीय चालकों की आजीविका भी खतरे में है। यहीं नहीं कई विभागों में वाहन चालक का पद लंबे अर्सें से खाली है। रिक्त पदों पर चालकों की तैनाती नहीं की जा रही है। अनुबंधित वाहनों से काम लिया जा रहा है। उन्हें मनमाना भुगतान भी होता है। उन्होंने कहा कि अनुबंधित वाहनों के चालक शासन के प्रति जवाबदेह नहीं रहते। बीमारियों का खर्च नहीं मिलता मंशा बिंद के मुताबिक लगातार वाहन चलाने और पर्याप्त विश्राम न मिलने से चालक तनाव, कमर दर्द, नींद की कमी आदि समस्याओं से जूझते हैं। बावजूद इसके न उनका नियमित स्वास्थ्य परीक्षण होता है और न ही कोई चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। बीमार होने पर इलाज के लिए अपनी जेब से पैसा खर्च करना पड़ता है। वहीं मेडिकल भुगतान में इतना पेच लगा दिया जाता है कि कर्मचारी चाह कर भी उसे नहीं ले पाते। कर्मचारियों को इलाज के लिए शासन से अनुमन्य सुविधाएं आसानी से मिलनी चाहिए।

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