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जगी सनातन की लौ तो इंग्लैंड छोड़ आ गए देश, डॉक्टर हरिदासानन्द ने महाकुंभ में सुनाया किस्सा

  • Maha Kumbh 2025: कहते हैं कि कई बार हम कुछ ढूंढते हुए बहुत दूर चले जाते हैं। लेकिन उसकी तलाश अपनी जड़ों की तरफ लौटकर ही पूरी होती है। कुछ ऐसी ही कहानी है युवा डॉक्टर हरिदासानंद की। उन्होंने महाकुंभ में अपनी कहानी सुनाई

Deepak लाइव हिन्दुस्तानSun, 19 Jan 2025 08:04 AM
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Maha Kumbh 2025: कहते हैं कि कई बार हम कुछ ढूंढते हुए बहुत दूर चले जाते हैं। लेकिन उसकी तलाश अपनी जड़ों की तरफ लौटकर ही पूरी होती है। कुछ ऐसी ही कहानी है युवा डॉक्टर हरिदासानंद की। एनआरआई मां-बाप की संतान हरिदासानंद इंग्लैंड में पैदा हुए और वहीं पर पले-बढ़े। लेकिन दो साल पहले अचानक उनके मन में सनातन की लौ जगी और वह सबकुछ छोड़कर वापस भारत लौट आए। फिलहाल महाकुंभ 2025 में वह मौजूद हैं और इसमें शामिल होकर इसके प्रभाव को महसूस कर रहे हैं। लाइव हिन्दुस्तान के साथ उन्होंने अपनी कहानी साझा की...

डॉक्टर हरिदासानंद ने बताया कि वह गुरु मां आशुतोषाम्‍वरी के शिष्य हैं। उनके माता-पिता काफी पहले इंग्लैंड में जाकर बस गए थे। हरिदासनंद का जन्म और पढ़ाई-लिखाई इंग्लैंड में ही हुई। उन्होंने मैथमेटिक्स में पीएचडी की हुई है। वह आगे बताते हैं कि दो साल से वह लखनऊ स्थित आनंद आश्रम में हैं और संन्यास ले चुके हैं। उन्होंने कहाकि भारत प्रकाश की धरती है, गुरुओं की धरती है। वह भी आत्मप्रकाश की तलाश में भारत लौटे हैं। हरिदासानंद बताते हैं कि इंग्लैंड में आशुतोष महाराज और गुरु मां आशुतोषाम्‍वरी के प्रवचन सुनते थे। यहां से उनका विश्वास मजबूत होता गया।

हरिदासानंद बताते हैं कि पैसे से सबकुछ नहीं खरीदा जा सकता। पैसे से खुशी और सुख नहीं खरीदा जा सकता है। सुख तो भगवान की भक्ति से आता है। उन्होंने कहाकि लोगों में भ्रम है कि हम इंग्लैंड जाएंगे और पैसे कमाकर सारी सुख-सुविधा हासिल कर लेंगे। हां, वहां पर पैसे कमाकर आप भौतिक सुविधाएं तो जुटा लेंगे, लेकिन ईश्वर की तलाश के लिए आपको अपनी जड़ों की तरफ लौटना होगा। डॉक्टर हरिदासानंद ने बताया कि भारत की धरती पर वापस लौटकर ही उन्हें ईश्वर की अनुभूति हुई। महाकुंभ के बारे में उन्होंने कहाकि यह अभिभूत करने वाला अनुभव है।

मूल रूप से पंजाब के निवासी डॉक्टर हरिदासानंद दो साल से हिंदी सीख रहे हैं। हालांकि उनकी हिंदी के ऊपर पंजाबी का पूरा प्रभाव है। भारत लौटने के बाद वह लखनऊ स्थित आनंद आश्रम गए और गुरु मां आशुतोषाम्‍वरी से पूछा कि क्या वह उन्हें भगवान को दिखा सकती हैं? इसके जवाब में गुरु मां आशुतोषाम्‍वरी ने कहाकि हां, वह दिखा सकती हैं। इसके बाद वह उनसे जुड़े। ध्यान और आध्यात्म की राह पर चलते हुए उन्होंने भगवान के दर्शन भी किए।

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