बोले कुशीनगर: मेहनत से समझौता नहीं, तकनीकी जानकारी मिले तो रफ्तार पकड़ेगी जिंदगी की गाड़ी
Kushinagar News - bole kushinagar शहर के अधिकांश सड़कों के किनारे स्थित मोटर गैराज में कोई न कोई मैकेनिक वाहनों का मरम्मत करते दिख जाता है। वाहन बनाते हुए काले

bole kushinagar शहर के अधिकांश सड़कों के किनारे स्थित मोटर गैराज में कोई न कोई मैकेनिक वाहनों का मरम्मत करते दिख जाता है। वाहन बनाते हुए काले हुए उसके हाथ और चेहरे पर उभरी हुई हाड़तोड़ मेहनत की झलक, यह बता देती है कि वह परिवार के लिए कितना फिक्रमंद हैं। यह पुराने से पुराने वाहन में जान फूंक देते हैं, लेकिन आजकल यह लोग खाली हाथ हो गए हैं। कारण है, बदलते समय में तकनीकी जानकारी नहीं होने के चलते इनका हुनर बेकार होने लगा है। अगर तकनीकी जानकारी मिल जाए तो फिर इनकी भी जिंदगी की गाड़ी रफ्तार पकड़ लेगी।
‘हिन्दुस्तान से बातचीत में कार मैकेनिकों ने अपनी समस्याओं को साझा किया। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। बड़े महानगरों में इन योजनाओं का लाभ लेकर बहुत से श्रमिक अपने पैरों पर खड़े भी हो रहे हैं, लेकिन छोटे और मझोले शहरों के श्रमिकों की ऐसी स्थिति नहीं है। वह आज भी गुरू और चेला की परंपरा को अपनाकर हुनर सीख रहे हैं या फिर सिखा रहे हैं। पडरौना शहर के किसी भी चौराहे या मुख्य सड़क पर गैराज में गाड़ियों की मरम्मत करते हुए मैकेनिक मिल जाएंगे। यह मैकेनिक दिन भर हाड़तोड़ मेहनत कर अपने परिवार की जीविका चलाने की जुगत में लगे रहते हैं। पडरौना शहर में स्थित इन गैराज में 1500 के करीब मैकेनिक रोज 1,000 हेल्परों के साथ चार पहिया वाहनों के मरम्मत करने के काम में लगे हुए दिख जाएंगे तो कुछ खाली हाथ भी बैठे मिलेंगे। कारण है कि आज जो भी चार पहिया वाहन कंपनियों द्वारा बनाई जा रही, वह पूरी तरह से तकनीक से लैस हैं और यह मैकेनिक अभी भी पुराने ढर्रे पर ही काम करते चले आ रहे हैं। इसके कारण उन्हें काम मिलना कम हो गया है। पहले जहां गाड़ियों की मरम्मत की जरूरत हर दिन पड़ती थी तो अब सर्विस सेंटर और कंपनियों के वारंटी सिस्टम ने लोकल मैकेनिकों की जगह ले ली है। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए मैकेनिक तौहिद आलम, याकूब खां, उपेंद्र मौर्या, आसिफ, परदेशी चौहान आदि ने बताया कि अब गाड़ियों के मालिक सीधे कंपनियों के सर्विस सेंटर की ओर रूख करने लगे हैं। उन्हें खर्चें की परवाह नहीं रहती है। वाहन स्वामी सोंचते हैं कि कम से कम गाड़ी की मरम्मत तो सही ढंग से होगी। इसलिए अब जरूरत आन पड़ी है कि मैकेनिक अपनी जानकारी को बढ़ाए नहीं तो वह पिछड़ जाएंगे या फिर मजबूर होकर उन्हें इस हुनर का त्याग करना पड़ जाएगा। मैकेनिकों ने कहा कि, ऐसे में उन्हें भी बेहतर तकनीक की ट्रेनिंग और सरकारी सुविधाएं मिले तो उनका भविष्य भी मजबूत हो सकेगा। अभी वह बिना प्रशिक्षण के रोजाना 2,000 के करीब कमा लेते हैं। वह चाहते हैं कि उन्हें भी सुविधाएं और जानकारी मिले ताकि उनकी कमाई में इजाफा हो सके। ------------------------------------------ नई तकनीक के वाहन आए तो काम हुआ धीमा : मैकेनिक मो. कैफ, भोनू खां, अब्दुल का कहना है कि जब से इलेक्ट्रिक स्कूटी और वाहन आए हैं। तब से काम में धीमापन आया है। जहां पहले बड़ी संख्या में गाड़ियां मरम्मत के लिए आती थी, उनकी संख्या कम हो गई है। नई तकनीक से लैस गाड़िया अब कंप्यूटरराइज्ड हो गईं हैं। इसमें पॉनिक सिस्टम, सेंसर, कोडिंग वाले इंजन है। इसके लिए पारंपरिक मैकेनिक के पास न तो उपकरण है और न ही प्रशिक्षण, जो आज की जरूरत है। अगर ट्रेनिग और अन्य सुविधाएं दी जाएं तो मैकेनिक खुद को अपडेट कर सकते हैं। ---------------------------------------- पहले गैराज पर वाहनों का लगा रहता था रेला : ‘हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए मैकेनिकों ने बताया कि आज से 10 साल पहले मोटर गैराज में वाहनों का रेला लगा रहता था। लोगों को कई-कई दिनों तक का समय दिया जाता था। लेकिन, अब गाड़ियां सही कराने के लिए बहुत कम आती है। सभी में नई टेक्नोलॉजी है। पांच साल तक कंपनी देखरेख करती है। इसके बाद भी अगर गाड़ी खराब होती है तो लोग कंपनी में ही ले जाते हैं। ऐसे में रोजगार पर काफी असर पड़ा है। ------------------------------------------------ नए वाहनों की समझ रखकर ही मैकेनिक हो सकते हैं कामयाब : मोटर गैराज में काम करने वाले मैकेनिक फरहान, उपेंद्र, नियाज ने कहा कि मैकेनिक चाहते हैं कि उन्हें समय के साथ बदलने का मौका दिया जाए। सरकार से उम्मीद करते हैं कि हमें आधुनिक तकनीकों की ट्रेनिंग की सुविधा दी जाए ताकि हम भी नए मॉडल की गाड़ियों को समझ सकें। उनके इंजन को खोल सके और डिजिटल स्कैनर का इस्तेमाल कर सकें। अगर सरकारी स्तर पर प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाए, जहां हमें कम शुल्क में ट्रेनिंग मिले। इससे न सिर्फ रोजगार मिलेगा, बल्कि दूसरे युवाओं को भी प्रशिक्षित कर सकेंगे। शिकायतें : 1. मैकेनिकों के पास आज ग्राहकों की कमी है, जिसके कारण काम का उतार-चढ़ाव रहता है। पहले की तरह आमदनी नहीं रह गई है। 2. शिक्षा की कमी के चलते आजकल नई गाड़ियों की टेक्नोंलाजी समझना मुश्किल हो गया है। प्रशिक्षण तक देने की व्यवस्था नहीं है। 3. बाजार में स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता नहीं है। इससे डुप्लीकेट पार्ट्स बाजार में बिक रहे हैं। ग्राहक भी पार्ट्स को नहीं समझ पाते हैं। 4. कम जानकारी से कुछ जगहों पर मैकेनिक ग्राहकों का विश्वास नहीं जीत पाते हैं। इसके कारण अगले समय ग्राहक उनके पास आने से बचते हैं। 5. बहुत से मैकेनिकों को सरकारी सुविधाओं और ट्रेंनिग की जानकारी नहीं है। काम से इतनी फुर्सत नहीं है कि योजनाओं के बारे में जानकारी ले सकें। सुझाव : 1. पुराने ग्राहकों से अपना संबंध बनाए रखना बहुत जरूरी है ताकि उन्हें सर्विस रिमाइंडर दिया जा सके। इसके लिए मैकेनिकों को अपडेट होना होगा। 2. ऑटोमेटिक ट्रांसमिशन जैसी तकनीकी को समझना होगा, इसके लिए ट्रेनिंग बहुत जरूरी है। एक प्रशिक्षण केंद्र की व्यवस्था की जाए, जहां सीखा जा सके। 3. गाड़ियों के स्पेयर पार्ट्स की जानकारी और सही सामान हमेशा उपलब्ध होना चाहिए। ग्राहकों को भी ओरिजिनल और डुप्लीकेट में अंतर समझना होगा। 4. मैकेनिकों को सरकारी सुविधाओं के बारे में जानकारी रखनी होगी और श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन कराना होगा ताकि सरकार की योजनाओं का लाभ मिले। 5. श्रम विभाग और उद्योग विभाग को मिलकर कैम्प लगाकर जागरूक करने पर जोर देना चाहिए ताकि हमें हमारे अधिकार के बारे में पता चल सके। ----------------------------------------------------------- हमारी भी सुनें :: हमारी कहानी एक जैसी है। तेल, ग्रीस, धुआं और धूप यही हमारी दुनिया है। हमें सही औजार और मशीनें नहीं मिलतीं हैं। इससे काम धीमा होता जा रहा है। -तौहिद आलम हमें मिस्त्री कहा जाता है, लेकिन असल में हम मशीनों के डॉक्टर हैं। ग्राहक उम्मीद से ज्यादा जल्दी काम चाहते हैं, पर समय नहीं देते। इससे काम प्रभावित होता है। -नियाज सिद्दीन किसी का ब्रेक फेल हो या इंजन बंद हो जाता है तो हमसे पहले कोई नहीं याद आता। ज्यादा काम होने पर भी मेहनताना उतना ही मिलता है। -याकूब खान हम छुट्टी नहीं लेते हैं, क्योंकि गाड़ियों को आराम नहीं आता। काम के दौरान सुरक्षा उपकरण नहीं मिलते हैं। इससे काम के दौरान जोखिम रहता है। -उपेंद्र मौर्य नई टेक्नोलॉजी समझने का मौका नहीं मिलता है। हमें ट्रेनिंग भी नहीं दी गई है। गुरू-शिष्य परंपरा से ही हम सीख भी रहे हैं और सिखाते भी हैं। -आसिफ हम पढ़-लिख नहीं पाए हैं, लेकिन हर पुर्जा हमें बिना पढ़े समझ में आता है। पार्ट्स समय पर नहीं आते हैं। इससे काम प्रभावित होता है तो ग्राहक नाराज होते हैं। -परदेशी चौहान ऑटोमेटिक ट्रांसमिशन जैसी तकनीकी को समझना होगा। इसके लिए ट्रेनिंग बहुत जरूरी है। एक प्रशिक्षण केंद्र की व्यवस्था की जाए, जहां हमें प्रशिक्षण मिल सके। -भोनू खां बाजार में स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता नहीं है। इससे डुप्लीकेट पार्ट्स बाजार में बिक रहे हैं। ग्राहक भी पार्ट्स को नहीं समझ पाते हैं और खराब मिलने पर हम पर चिल्लाते हैं। -अब्दुल फजल हम तेज धूप में भी काम करते हैं, क्योंकि किसी का सफर हमारे काम पर रुका होता है। ग्राहकों को भी हमारी परेशानी समझनी चाहिए और समय पर भुगतान करना चाहिए। -शहबाज हमें दिनभर खड़े रहकर काम करना पड़ता है। इसके कारण शरीर पर भी नकरात्मक प्रभाव पड़ता है। पीठ और पैर में दर्द से काफी परेशानी होती है। फिर भी हम अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। -मो. मुस्ताक हमें आधुनिक तकनीकों की ट्रेनिंग की सुविधा दी जाए ताकि हम भी नए मॉडल की गाड़ियों को समझ सकें और ग्राहकों को बेहतर सर्विस की सुविधा उपलब्ध करा सकें। -फरहान --- नई तकनीक से लैस गाड़िया अब कंप्यूटरराइज्ड हो गईं हैं। इसमें पॉनिक सिस्टम, सेंसर, कोडिंग वाले इंजन है। हमें प्रशिक्षण भी नहीं मिला है। इससे काम में परेशानी होती है। -नाजिर अंसारी
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