Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Investigation is necessary before giving huge punishment High Court canceled order of suspending XEN making it AE

बड़ा दंड देने से पहले जांच जरूरी, XEN को सस्पेंड कर AE बनाने का आदेश हाईकोर्ट ने किया रद

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि कर्मचारी को बड़ा दंड देने से पहले पूरी जांच प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। सबूतों के आधार पर आरोप साबित किए बगैर पदावनति जैसा बड़ा दंड नहीं दिया जा सकता।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, प्रयागराज विधि संवाददाताThu, 26 Dec 2024 08:06 PM
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि कर्मचारी को बड़ा दंड देने से पहले पूरी जांच प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। सबूतों के आधार पर आरोप साबित किए बगैर पदावनति जैसा बड़ा दंड नहीं दिया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने अधिशासी अभियंता संजय कुमार सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

इसी के साथ कोर्ट ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम बस्ती में कार्यरत अधिशासी अभियंता को प्रबंध निदेशक द्वारा दो इंक्रीमेंट रोकने व परिनिंदा करने और चेयरमैन द्वारा बिना जांच प्रक्रिया अपनाए पदावनति कर सहायक अभियंता बनाने के आदेशों को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है। इसके अलावा याची को नियमित वेतन के साथ तत्काल अधिशासी अभियंता के पद पर बहाल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि विभाग जांच करता है तो बकाया वेतन उसके परिणाम पर निर्भर करेगा और यदि जांच नहीं करता तो याची बकाया वेतन पाने का हकदार होगा।

सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता ऋतेश श्रीवास्तव व श्वेता सिंह का कहना था कि याची बस्ती में तैनात था तो उसे मेसर्स सिक्योर मीटर्स लिमिटेड अहमदाबाद के निरीक्षण के लिए भेजा गया। इसमें मेसर्स नेशनल प्रोजेक्ट कांस्ट्रक्शन निगम लिमिटेड के प्रतिनिधि भी शामिल थे। सिंगल फेस दो मीटर वायर का निरीक्षण करना था। इसके बाद याची को चार्जशीट दी गई।

आरोप लगा कि उसका आचरण सेवा नियमावली के विरुद्ध था। याची ने आरोप का खंडन किया। चार्जशीट व याची के जवाब पर रिपोर्ट के आधार पर उप्र पावर कारपोरेशन के एमडी ने दंडित किया। उसके खिलाफ पुनरीक्षण पर चेयरमैन ने स्वयं की शक्ति का इस्तेमाल कर पदावनति आदेश दिया। दोनों आदेशों को याचिका में चुनौती दी गई थी।

सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि मेजर पेनाल्टी देने से पहले जांच अधिकारी या कमेटी द्वारा साक्ष्य व गवाहों के परीक्षण के बाद आरोप साबित होने पर ही दंडित किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि चेयरमैन को कारण बताओ नोटिस देकर ही याची की सजा बढ़ाने का अधिकार है। इसका पालन नहीं किया गया, जो स्थापित विधि सिद्धांत का उल्लघंन है। साथ ही कोई जांच नहीं की गई इसलिए दंडात्मक आदेश रद्द कर दिया।

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