यमुना का डूब क्षेत्र तय होने से बढ़ीं धड़कनें, बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों पर हो सकता है ऐक्शन
- 100 साल के रिकार्ड के अनुसार आगरा में नदी का कैचमेंट एरिया 6,722 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर है। नियमानुसार इस क्षेत्रफल में हुआ निर्माण अवैध है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि नदी का कैचमेंट एरिया बचेगा तो नदी अपने पुराने स्वरूप में लौट सकती है।
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Yamuna River's catchment area: केंद्रीय जल आयोग ने आगरा सहित उत्तर प्रदेश के 17 जिलों में यमुना का डूब क्षेत्र घोषित कर दिया है। इसने लोगों के दिल की धड़कन बढ़ा दी है। सौ साल के रिकार्ड के अनुसार आगरा में नदी का कैचमेंट एरिया 6,722 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर है। इसमें आवासीय से लेकर कॉमर्शियल बिल्डिंग बना दी हैं। जबकि, नियमानुसार इस क्षेत्रफल में हुआ निर्माण अवैध है। अब इन पर ऐक्शन हो सकता है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि नदी का कैचमेंट एरिया बचेगा तो नदी अपने पुराने स्वरूप में लौट सकती है। आयोग ने इसकी विस्तृत रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंप दी है। इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है।
अब डूब क्षेत्र में सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश प्रभावी हो जाएंगे। रिपोर्ट की मानें तो आगरा में साल दर साल नदी का कैचमेंट एरिया भी बदला है। पांच साल का अध्ययन बताता है कि आगरा में कैचमेंट एरिया नदी किनारे से 2,913 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर है। 25 साल के अध्ययन पर ये बढ़कर पांच हजार स्क्वायर वर्ग किलोमीटर हो जाता है। वहीं, सौ साल के अध्ययन पर नदी का कैचमेंट एरिया 6,722 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर है।
यानि कि कैलाश, दयालबाग, पोइया घाट, बल्केश्वर, हाथी घाट पर नदी किनारे से 6,722 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में बने घर, फ्लैट, बिल्डिंग और मॉल सभी अवैध हैं। इनसे नदी अस्तित्व खो बैठी है। पर्यावरणविद डॉ. शरद गुप्ता बताते हैं कि विश्वभर की नदियां कैचमेंट एरिया से अपने स्वरूप में बह रही हैं। कैचमेंट एरिया में बड़े पैमाने पर पौधरोपण होना चाहिए। ताकि, बारिश का पानी नदी तक आसानी से पहुंच सके। गर्मियों में प्राकृतिक रूप से ये पानी छोड़ते हैं, जिससे नदी स्वत: रिचार्ज होती है।
चिन्हित करें निर्माण संरक्षण की हो पहल
ताजनगरी में नदी के डूब क्षेत्र में अवैध निर्माणों पर अंकुश नहीं हैं। हाल ही में माथुर फार्म हाउस में सुप्रीम कोर्ट की शीर्ष समिति ने अवैध निर्माण रुकवाया है। 2024 में दयालबाग के 24 प्रोजेक्ट का मसला गर्माया था। इसके बाद भी अवैध निर्माण का सिलसिला थमा नहीं हैं। कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना की तर्ज पर निर्माण की एनओसी दी गई हैं। डूब क्षेत्र में कॉलोनियां बना दी गई हैं। जिम्मेदार मौन रहे हैं। परिणाम स्वरूप परिणाम यमुना आगरा में दम तोड़ती रही है। शहर का गंदे और नाले के पानी की निकासी का माध्यम बनकर रही गई है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना हैं कि जिम्मेदार इन अवैध निर्माण को चिन्हित करें। इन पर एक समान कार्रवाई हो। ताकि, नदी का कैचमेंट को संरक्षित हो सके। नदी पुनर्जीवित हो।
सहायक नदियों का भी निर्धारित हो क्षेत्र
नदियों के डूब क्षेत्र में अवैध निर्माण ताजनगरी में पुराना हैं। यहां उटंगन, किबाड़, चंबल, पार्वती, खारी नदी पर भी अवैध अतिक्रमण किए हैं। ये सभी यमुना की सहायक नदी हैं। नियमानुसार यमुना के डूब क्षेत्र के अनुसार इन नदियों का भी डूब क्षेत्र निर्धारित होना चाहिए। उसका कड़ाई से अनुपालन जरूरी है। उटंगन नदी पर अवैध पुल निर्माण के बाद जिलाधिकारी को डूब क्षेत्र में अवैध निर्माण ध्वस्त कराने के निर्देश दिए गए थे। आज तक उस पर कार्रवाई नहीं हुई है।
निर्माणों का सर्वे करेगा अब विकास प्राधिकरण
यमुना के डूब क्षेत्र की अधिसूचना जारी होने के बाद अब डूब क्षेत्र में हुए निर्माणों को लेकर एक बार फिर से कसरत होगी। विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि डूब क्षेत्र में हुए निर्माणों का सर्वे कराया जाएग। नियमानुसार कार्रवाई होगी।
यमुना के डूब क्षेत्र में बड़ी संख्या में निर्माण हो रहे है। कैलाश मंदिर से लेकर दयालबाग, मनोहपुर, जगनपुर, बल्केश्वर से लेकर काफी आगे तक निर्माण हो रहे हैं। इन में कालोनियों से लेकर बहुमंजिला इमारतें और फार्म हाउस शामिल हैं। 2014 में डीके जोशी ने याचिका दायर की थी। 2016 में डीके जोशी के निधन के बाद एचएस जाफरी वादी बने थे। तब सात बड़े प्रोजेक्ट भी डूब क्षेत्र में शामिल थे। इन प्रोजेक्ट की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गई थी।
आगरा विकास प्राधिकरण ने एनजीटी के आदेश पर 2018-19 में सर्वे किया था। तब नमामि गंगा मिशन के आधार पर सिंचाई विभाग ने डूब क्षेत्र का निर्धारण कर मुड्डियां लगाई थी। विकास प्राधिकरण के सूत्रों के मुताबिक तब सर्वे में करीब 56 निर्माण चिह्नित किए गए थे। तब प्राधिकरण के अधिकारियों ने एक बिल्डर करीब के 17 फ्लैट भी तोड़े थे। प्राधिकरण ने एनजीटी में रिपोर्ट दाखिल की थी।
एडीए उपाध्यक्ष एम अरुन्मोली का कहना है कि पूर्व में हुई कार्रवाई का अध्ययन करने के बाद डूब क्षेत्र में हुए निर्माणों का फिर से सर्वे कराया जाएगा। जो भी निर्माण डूब क्षेत्र की गाइडलाइन में शामिल होंगे उनके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।