सदियों का सफर मिनटों में कराता बौद्ध संग्रहालय व बच्चों का पसंदीदा स्पॉट रेल म्यूजियम
Gorakhpur News - गोरखपुर शहर में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए कई संग्रहालय हैं। राजकीय बौद्ध संग्रहालय में विभिन्न वीथिकाएं और कलाकृतियां हैं, जो बौद्ध धर्म और भारतीय संस्कृति को दर्शाती हैं। रेल म्यूजियम में...

गोरखपुर, निज संवाददाता। गोरखपुर ऐतिहासिक शहर के साथ-साथ विरासत और संस्कृति का जीवंत दस्तावेज भी है। शहर के संग्रहालय केवल स्थानीय धरोहर को ही नहीं, बल्कि वैश्विक महत्व की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों को भी संजोए हुए हैं। राजकीय बौद्ध संग्रहालय, रेल म्यूजियम सहित अन्य संग्रहालय इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। बौद्ध संग्रहालय लोगों को सदियों का सफर कुछ ही मिनटों में कराने की क्षमता रखता है, वहीं बच्चों को खेल-खेल में बहुत कुछ सीखने के लिए भी उपलब्ध कराता है। परिसर में लगाए गए तरह-तरह के औषधि गुण वाले पौधे भी लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। यहां पर संरक्षित वस्तुओं की जड़े बाहरी देशों से जुड़ी हुई हैं।
चार से छह हो गईं वीथिकाएं राजकीय बौद्ध संग्रहालय में पहले चार वीथिकाएं थीं, लेकिन सुंदरीकरण के बाद इनकी संख्या बढ़कर अब छह हो गई है। पहली वीथिका में भगवान बुद्ध के विविध स्वरूपों और मुद्राओं का प्रदर्शन किया गया है। दूसरी में नव पाषाण कालीन हैंडेक्स से लेकर मध्य पाषाण कालीन ब्लेड्स व व्यूरिन आदि का प्रदर्शन किया गया है। इसके अलावा मौर्य काल से लेकर गुप्त काल की मृणमूर्तियों का क्रमबद्ध प्रदर्शन किया गया है। तीसरी वीथिका में भगवान बुद्ध तथा बौद्ध धर्म की अनेक कलाकृतियों की प्रदर्शित किया गया है। यहां बुद्ध से जुड़े पुरावशेषों के बीच बज मुद्रा, वितर्क मुद्रा, अंजलि मुद्रा, धर्मचक्र मुद्रा, वरद मुद्रा, करुण मुद्रा, ध्यान मुद्रा, भूमि स्पर्श मुद्रा, उत्तरबोधि मुद्रा और अभय मुद्रा के चित्र अलग ही आध्यात्मिक आभा का सृजन करते हैं। चौथी वीथिका चित्रकला को समर्पित है। मानव विकास-बाल वीधिका पांचवीं वीधिका है। इसमें स्वचालित मूर्तियों के द्वारा प्रागैतिहासिक मानव से लेकर आधुनिक समाज के विकास को दिखाया गया है। इस वीथिका में बच्चों को खेल-खेल में सिखाने के उद्देश्य से एक कक्ष अलग से विकसित किया जा रहा है। जैन वीथिका यहां की छठवीं वीथिका है। यह जैन धर्म के इतिहास और विकास से परिचित कराती है। हाथी दांत की बनी मूर्तियां करती हैं आकर्षित यहां शैव और वैष्णव धर्म से संबंधित हाथी दांत से बनी कई मूर्तियां भी हैं। इसके साथ तांत्रिक का ताम्रपत्र, नवग्रह युक्त लोटा आदि के साथ कुषाण काल से जुड़े सिक्कों के सांचे भी देखने को मिलते हैं। बगल में पुरा पाषाणकाल के हस्त कुठार, मध्य पाषाणकाल के फलाक और ताम्रयुगीन तास कुल्हाड़ी की उपलब्धता इसकी समृद्धि का खुद ही बखान करते हैं। ............................ शुरुआत का भाप इंजन व इटली का ट्रेवलिंग स्टीम क्रेन बयां कर रहा रेल इतिहास शहर के रेल म्यूजियम में बच्चों के लिए घूमने के साथ-साथ ज्ञानवर्धक वस्तुएं भी मौजूद हैं। 14 अप्रैल 1952 को पूर्वोत्तर रेलवे का उद्घाटन करते तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की दुर्लभ तस्वीर के साथ 1909 में लंदन से मंगाई घड़ी भी लगी हुई है। इसके अलावा बीएफआर स्टीमर, पुरानी तस्वीरें, बाक्स कैमरे, प्लेट कैमरे, स्टेशन टोकन सिस्टम के माडल, रेलवे के पुराने उपकरण, सर्च लाइट आदि लोगों को रेलवे के इतिहास से परिचित कराते हैं। म्यूजियम की लाइब्रेरी में रेल संचालन से जुड़ी पुरानी पांडुलिपियां, पुस्तकें, डाक टिकट, समय सारणी, सर्वेक्षण रपट आदि सहेज कर रखी हुई हैं। इसके साथ इटली में बना 20 टन क्षमता का ट्रेवलिंग स्टीम क्रेन भी मौजूद है। इसके साथ रेल म्यूजिम में खड़ा लाम लार्ड लारेंस रेल इंजन, नैरो गेज डीजल इंजन, वाईएल 5001 इंजन का अपना अलग आकर्षण है। स्थानीय विभूतियों से परिचित कराएगा गौरव संग्रहालय शहर के विकास में अपना अमूल्य योगदान देने वाले महापुरुषों की स्मृतियों को धरोहर के रूप में संग्रहित करने के उद्देश्य से गौरव संग्रहालय का निर्माण कराया जा रहा है। 1.6 एकड़ क्षेत्र में बनने वाले इस संग्रहालय में भित्तिचित्र, मूर्तिकला, चित्रकला आदि का उपयोग होगा। संग्रहालय में म्यूरल्स, स्कल्पचर्स, फ्रेंस्को, पेंटिंग्स आदि का भी उपयोग किया जाएगा। संग्रहालय में कुल 7 गैलरियां प्रस्तावित हैं, जिसमें गोरखपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन किया जाएगा। डिजिटल संग्रहालय में हो रही तब्दील निगम की हेरिटेज बिल्डिंग नगर निगम के पुराने भवन को संग्रहालय में बदला जा रहा है। नगर निगम की विकास यात्रा को प्रदर्शित करता यह संग्रहालय बन कर तैयार हो चुका है। दूसरी ओर ब्रिटिश शासन काल में बनी ‘होम्स क्लेन लाइब्रेरी जिसे बाद में ‘राहुल सांकृत्यायन पुस्तका का नाम दे दिया गया था, इसे भी संरक्षित किया गया है। अब यह ई-डिजिटल लाइब्रेरी के नाम से जानी जाएगी। इसका भी काम अपने आखिरी चरण में है। कोट सुंदरीकरण के बाद संग्रहालय में चार से छह विथीकाएं हो गईं हैं। इससे युवा पीढ़ी को संस्कृति व अपने इतिहास को समझने में सुविधा होगी। संग्रहालय की ओर से आगे होने वाली क्विज प्रतियोगिताएं अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संपन्न कराई जाएंगी। -डॉ. यशवंत सिंह राठौर, उपनिदेशक राजकीय बौद्ध संग्रहालय
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