किसानों के लिए अच्छी खबर, ये तरीका अपनाकर कर लें तैयारी तो मई-जून में नहीं होगी हरे चारे की कमी
- मौसम का असर दुधारू पशुओं पर भी पड़ता है। खास करके गर्मी और उसके बाद बारिश के मौसम में जब चारे की समस्या होती है तो पशुपालक परेशान हो जाते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र बरेली के वैज्ञानिकों ने किसानों को अभी से तैयारी करने की सलाह दी है।
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मौसम का असर दुधारू पशुओं पर भी पड़ता है। खास करके गर्मी और उसके बाद बारिश के मौसम में जब चारे की समस्या होती है तो पशुपालक परेशान हो जाते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र बरेली के वैज्ञानिकों ने किसानों को अभी से तैयारी करने की सलाह दी है। वैज्ञानिक का कहना है कि मार्च के महीने में ही तीन तरह के चारों की बुवाई कर दी जाए तो मई में इसे काट सकते हैं। भीषण गर्मी में ये चारे दुधारू पशुओं के लिए काफी लाभदायक होंगे।
दरअसल, गर्मियों में हरे चारे की काफी किल्लत होती है। हरा चारा नहीं मिलने से पशुओं के शरीर में मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिसका असर दुग्ध उत्पादन पर भी पड़ता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. रणवीर सिंह का कहना है कि हरे चारे की कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसे मार्च में उगाने के बाद मई-जून में पशुओं को आराम से खिलाई जा सकती हैं। पौष्टिकता से भरपूर ये चारे पशुओं को खाने में स्वादिष्ट भी लगेंगी। बरसीम, जई और रिजका की बुवाई मार्च में की जा सकती है। यह करीब ढाई महीने में तैयार हो जाती है। इसके बाद इसे मई-जून में काटकर पशुओं को खिलाया जा सकता है। इसके उगाने के लिए किसानों को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है। इसके अतिरक्त ज्वार, बाजरा, लोबिया और मक्का की बुवाई कर अच्छा पौष्टिक चारा लिया जा सकता है। मार्च में बुवाई करने से मई में इसकी भी फसल काटी जा सकती है। इसे बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है।
साइलेज बनाकर भी कर सकते हैं हरे चारे का भंडारण
डॉ. रणवीर सिंह का कहना है कि पशुपालक घर पर ही साइलेज बनाकर भी गर्मियों में हरे चारे की होने वाली कमी को दूर कर सकते हैं। साइलेज बनाते समय पतले तने वाले चारे की फसल को पकने से पहले ही काट लें। उसके बाद तने के छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। फिर उन्हें तब तक सुखाएं, जब तक उनमें 15 से 18 फीसद तक नमी ना रह जाए। पतले तने वाली फसल जल्दी सूखेगी। इसके बाद इसे अच्छी तरह से पैक करके इस तरह से रख दें कि चारे को बाहर की हवा न लगे।