350 साल में पहली बार महंत आवास से ढंककर निकली बाबा विश्वनाथ और गौरा की पालकी यात्रा, अजय राय बोले- काशी का अपमान
काशी में 350 साल से चली आ रही बाबा विश्वनाथ और मां गौरी की पालकी यात्रा पहली बार ढंककर निकाली गई। इसे लेकर यूपी प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने आक्रोश जताया और इसे काशी का अपमान कहा है।

वाराणसी में रंगभरी एकादशी पर हर साल महंत आवास से निकलने वाली पालकी यात्रा इस बार भी निकली लेकिन बाबा विश्वनाथ और मां पार्वती को ढंककर मंदिर तक लाया गया। यही नहीं, शाम तीन बजे के स्थान पर सुबह आठ बजे ही पालकी यात्रा निकली।350 साल से भी ज्यादा समय से चली आ रही परंपरा को इस तरह बदलने पर यूपी प्रदेश अध्यक्ष और वाराणसी के ही रहने वाले अजय राय ने काशी का अपमान कहा है। अजय राय ने कहा कि बाबा विश्वनाथ और मां गौरा की मूर्ति को ढंककर ले जाना काशी की भावनाओं का अपमान है। बनारस की सनातन परंपरा को ध्वस्त करने का काम किया गया है।
अजय राय ने कहा कि हम लोग रंगभरी एकादशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। लेकिन पुलिस लगाकर रोका जा रहा है। कहा जा रहा है कि आप पालकी यात्रा में शामिल नहीं होंगे। पालकी में काशी के लोग दर्शन करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। क्योंकि हमारे काशी के वे राजा हैं। हम लोग उनके भक्त हैं। उन्होंने कहा कि माता गौरा और काशी विश्वनाथ का हम लोग दर्शन करते हैं। लेकिन उसको रोकना हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत किया जा रहा है। बनारस की सनातन परंपरा को ध्वस्त करने का काम किया गया है।
कहा कि आज वर्षों से चली आ रही पालकी यात्रा जो परम्परागत रूप से महंत जी आवास से निकलती है और इस बार प्रतिमा को ढंककर मंदिर परिसर तक ले जाना बाबा विश्वनाथ जी व हम सभी काशीवासियों का अपमान है। भाजपा सरकार में काशी की परंपरा को नष्ट किया जा रहा है।
कहा कि दो दिन पूर्व में पालकी यात्रा के आयोजको को नोटिस दी गई कि वह पालकी यात्रा नहीं निकालेंगे पर हम काशीवासियों ने इसका पुरजोर विरोध किया। हम लोगों के विरोध के बाद पालकी यात्रा की अनुमति तो मिली पर इतिहास में पहली बार प्रतिमा को ढंककर मंदिर परिसर तक ले जाया गया। यह एक-एक काशीवासी का अपमान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में इस तरह से सनातनी परंपरा से खिलवाड़ किया जा रहा है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, स्थानीय भाजपा के जनप्रतिनिधि मूकदर्शक बने है।
अजय राय ने कहा कि 1664 से ये परम्परा निरंतर चलती आ रही हैं। पहले काठ की लकड़ी के पालकी पर यात्रा निकाली जाती थी। स्वर्गीय पंडित रामदत्त त्रिपाठी ने 1890 में पहली बार रजत सिंहासन पर पालकी यात्रा निकाली उसके बाद से इसी पालकी पर बाबा विश्वनाथ मां गौरा का गवना कराते हैं। इसमें हर काशीवासी हर्षोल्लास के साथ शामिल होता है।
दशकों से टेड़ी नीम स्थित महंत आवास से बाबा विश्वनाथ के द्वार तक भक्तों पालकी यात्रा निकलती है और जमकर गुलाल उड़ाया जाता है। इस दौरान घण्टे, घड़ियाल के साथ ही डमरू के डम-डम की आवाज के साथ शंख और शहनाई की ध्वनि से बाबा विश्वनाथ का दरबार गूंजता रहता है। हर-हर महादेव के जयघोष के बीच आरती के बाद महंत आवास से शाही अंदाज में बाबा विश्वनाथ मां गौरा और पुत्र गजानन संग रजत पालकी पर विराजमान होकर निकले तो भक्तों ने अरीब गुलाल लगाकर उनका स्वागत किया जाता है। इसी के साथ काशी में होली की शुरुआत होती है।