Desperate Families in Firozabad Live in Shanties Without Basic Amenities बोले फिरोजाबाद: मेरा दर्द न पूछिए, घर बनाने के वास्ते ही बेघर हुआ हूं मैं..., Firozabad Hindi News - Hindustan
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बोले फिरोजाबाद: मेरा दर्द न पूछिए, घर बनाने के वास्ते ही बेघर हुआ हूं मैं...

Firozabad News - फिरोजाबाद में कई परिवार झोंपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। इन झोंपड़ियों में रहने वाले बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं और सरकार की योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा है। बरसात में जलभराव के कारण इनकी स्थिति और...

Newswrap हिन्दुस्तान, फिरोजाबादWed, 7 May 2025 11:49 PM
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बोले फिरोजाबाद: मेरा दर्द न पूछिए, घर बनाने के वास्ते ही बेघर हुआ हूं मैं...

जनपाद में कई परिवार आज भी झोंपड़ी में रहने के लिए मजबूर हैं। न तो इनके सिर पर छत है न ही मौसम की मार से बचने के लिए पक्की दीवारें। कहीं पर दस साल से यह झोंपड़ी में रहने के लिए मजबूर हैं तो कहीं पर 15-20 साल से। इन झोंपड़ियों में जन्म लेने वाले बच्चे स्कूल तक भी नहीं पहुंच पाते हैं तो सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ भी इन तक नहीं पहुंच रहा है। सालों से फिरोजाबाद में रहने वाले इन लोगों को फिरोजाबाद को एक पहचान देते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना चाहिए। कम से कम इन झोपड़ियों से तो निजात दिलानी चाहिए, जो न तो इन्हें बरसात से बचा सकती हैं न ही तल्ख धूप से।

फिरोजाबाद में बंबा बाईपास से अगर बिलाल नगर की तरफ मुड़ें तो सामने ही नजर आती हैं एक दर्जन से भी ज्यादा बनी हुई झोपड़ी। इन झोपड़ियों के अलावा कई खाली प्लॉट में भी झोंपड़ी पड़ी हुई हैं। कहीं पर चूल्हा बना हुआ है तो कहीं पर पांच किलो के गैस सिलेंडर के साथ रखी गैस बताती है कि गंदगी के बीच ही इन झोपड़ियों में इनका खाना पक रहा है। निकट ही बच्चे खेलते हुए दिखाई देते हैं। बिजली के नाम पर इन लोगों ने झोपड़ी में लगे हुए लकड़ी के बांस पर ही बल्ब टांग रखे हैं तो इन पर ही स्विच लगे हुए हैं। हिन्दुस्तान के बोले फिरोजाबाद के तहत जब इन लोगों से संवाद किया तो महिलाओं ने कहा कि 15-16 साल पहले काम की तलाश में शाहजहांपुर से आए थे। तब से यहीं पर बसेरा बनाए हुए हैं। किसी तरह से इस जगह पर अपनी झोंपड़ी बनाई है। प्लास्टिक के फूल पत्ती बनाकर हम उन्हें बेच कर किसी तरह से परिवार का खर्च चला रहे हैं। महिलाएं कहती हैं कि सालों से यहां रहने के बाद भी कोई भी उनकी सुध नहीं लेता है। सरकार की कई योजनाओं के संबंध में सुना है, लेकिन आज तक हमें किसी योजना का लाभ नहीं मिल सका है। महिलाओं का कहना है कि इतने साल रहने के बाद में तो मूल निवास प्रमाण पत्र भी बन जाता है, लेकिन यहां पर हमें योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। बरसात में पानी के बीच ही गुजारते हैं रात बरसात के मौसम में इन लोगों का यहां पर रहना भी मुश्किल हो जाता है। बरसात में इस गली में भी जलभराव हो जाता है। जलभराव होने से पानी गलियों तक में भर जाता है तथा इस स्थिति में लोगों को गंदे पानी के बीच ही रात गुजारनी पड़ती है। झोपड़ियों तक पानी को पहुंचने के लिए इनमें रहने वालों ने मिट्टी की मेड़ बना दी हैं, लेकिन इसके बाद भी कई बार बरसात तेज होने पर इन झोपड़ियों के अंदर तक भी पानी पहुंच जाता है। लोगों का दर्द क्षेत्र की समस्याओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। दर्जनों परिवार गंदगी के बीच इन झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर हैं। गंदगी के बीच खुले में ही खाना बनाने के लिए महिलाएं मजबूर हैं। -फैजान क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बच्चों को पढ़ाने के लिए उनका स्कूलों में दाखिला दिलाने के प्रयास होने चाहिए, ताकि कम से कम यह बच्चे पढ़ लिख कर अच्छी जिंदगी व्यतीत कर सकें। -सिकंदर हम कई सालों से यहां पर इन झोपड़ों में रह रहे हैं। नगर निगम को सर्वे करा हमें भी सरकारी योजनाओं से जोड़ना चाहिए, ताकि हम भी बच्चों की जिंदगी को बेहतर बना सकें। हमारा जीवन भी सुधर जाएगा। -बन्नो फूल पत्ती बेचने का काम करते हैं। किसी तरह से जीवन यापन कर रहे हैं। कई बार प्रयास के बाद बच्चों के आधार कार्ड भी नहीं बन पाते हैं। इस स्थिति में बच्चे पढ़ने भी नहीं जा पा रहे। -शमशाद सड़क पर पानी भर जाता है। इसके बाद वही गंदा पानी हमारी झोंपड़ियों में घुसता है। मिट्टी से उसे रोकते हैं तो उस गंदे पानी के बीच में ही सोना पड़ता है। निगम को भी इस स्थिति को देखना होगा। -नाजरीन फिरोजाबाद में आए हुए डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त हो गया। फूल बेचने का कार्य करते हैं। यहीं पर सालों से झोंपड़ी डाल कर रहे हैं, बरसात में पानी रोकने के लिए मिट्टी से मेडबंदी की है। बच्चे भी स्कूल पढ़ने नहीं जाते हैं। -शमां फिरोजाबाद में आए हुए डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त हो गया। फूल बेचने का कार्य करते हैं। यहीं पर सालों से झोंपड़ी डाल कर रहे हैं, बरसात में पानी रोकने के लिए मिट्टी से मेडबंदी की है। बच्चे भी स्कूल पढ़ने नहीं जाते हैं। -शमां फूल वगैरह बेच कर किसी तरह से गुजारा कर लेते हैं। बच्चों को स्कूल भेजने की भी कोई व्यवस्था नहीं है। आज क कोई बच्चों का प्रवेश भी कराने के लिए हमारे पास नहीं आया। -रुखसाना

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