Women Teachers Face Stress and Exploitation in Schools - Demands for Fair Treatment बोले एटा: बस भागमभाग में बीत रही है महिला शिक्षिकाओं की जिंदगी, Etah Hindi News - Hindustan
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बोले एटा: बस भागमभाग में बीत रही है महिला शिक्षिकाओं की जिंदगी

Etah News - महिला शिक्षिकाएं स्कूल पहुंचने में देरी होने पर तनाव का सामना कर रही हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर निर्भरता और समय की कमी के कारण उन्हें अनुपस्थिति का सामना करना पड़ता है। मिड डे मील में कटौती और अन्य...

Newswrap हिन्दुस्तान, एटाSun, 18 May 2025 07:42 PM
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बोले एटा: बस भागमभाग में बीत रही है महिला शिक्षिकाओं की जिंदगी

सुबह उठने से लेकर स्कूल पहुंचने तक की भागदौड़ के समय तक महिला शिक्षक तनाव में रहती हैं। अधिकांश शिक्षिकाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ही आना जाना करती हैं। अगर पांच मिनट भी लेट हो गए तो अनुपस्थिति लग जाती है। शासन को निर्धारित समय के बाद थोड़ा सा समय देना चाहिए। विद्यालय में मिड डे मील का जो पैसा दिया जा रहा है उसमें भी कटौती की जा रही है। जो छात्र संख्या भेजी जा रही है उसका 60 फीसदी ही पैसा मिल पाता है। ऐसे में शिक्षकों को अपनी जेब से पैसा लगाना होता है। सब कुछ ऑनलाइन होने के बाद भी शिक्षकों का शोषण किया जा रहा है। हिन्दुस्तान बोले एटा के तहत महिला शिक्षकों से जब हमने बात की तो महिलाओं ने विभागीय खामियों के बारे में जानकारी दी।

शिक्षकों को शिक्षा के अलावा करीब 40 प्रकार के काम अलग से लिए जा रहे हैं। सबसे चर्चित काम बीएलओ ड्यूटी है जो महिलाए बीएलओ में काम कर रही है। उन्हें स्कूल में पूरा काम करना होता है। स्कूल के बाद बीएलओ काम करने के निर्देश हैं। सरकार को बीएलओ कार्य में जुटी महिलाओं के साथ यह छूट देनी चाहिए कि जब बीएलओ का काम हो तो स्कूल आने की अनिवार्यता ना हो। इसके अलावा जनगणना, बाल गणना जैसे कार्य में लगाया जाता है। संचारी रोग को लेकर अभियान चल रहा है। इसमें भी शिक्षकों को लगा दिया गया है। जब भी बोर्ड परीक्षाएं होती हैं तो सबसे पहले प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को लगा दिया जाता है। महिला शिक्षकों ने बताया कि सुबह जब स्कूल के लिए जाते हैं तो कोशिश होती है कि समय से पहले विद्यालय में पहुंचें।

कभी-कभी वाहन नहीं मिल पाते। बहुत सी महिला शिक्षकों को सड़क से दो से तीन किमी तक पैदल चलकर स्कूल में पहुंचना होता है। इसमें अगर पांच मिनट भी लेट हो गए तो अनुपस्थिति लग जाएगी। सरकार को कम से कम 30 मिनट तक का समय देना चाहिए। लेट होने पर कोई कार्रवाई नहीं की जाए। स्कूल में मिड डे मील का खाना बनकर बच्चों को खिलाया जाता है। जो छात्र संख्या भरकर जाती है उसका 60 फीसदी ही पैसा शिक्षक को मिलता है। शेष पैसा सरकार काट लेती है। जब छात्र संख्या की हाजिरी ऑनलाइन है तो बच्चे कैसे बढ़ सकते हैं। शिक्षकों को यह पैसा अपनी जेब से ही लगाना होता है। सरकार इस मामले को गंभीरता ले।

रसोइयों का पैसा समय से आए खातों में

विद्यालयों में काम करने वाली रसोइयों को मानदेय के रूप में दो हजार रुपये मिलते हैं। इनको पैसा समय से नहीं मिलता। कभी दो महीने बाद तो कभी चार महीने बाद पैसा आता है। अगर इन्हें पैसा समय से मिल जाए तो रसोइया काम करने में परेशान न हो। साथ ही बच्चों के लिए बनने वाला मिड डे मील भी प्रभावित नहीं होगा।

अवकाश लेने के लिए लगाना पड़ता है शपथ पत्र

सीसीएल के लिए शिक्षकों को शपथ पत्र लिया जाता है। जबकि शासन की ओर से शपथ पत्र लिए जाने के कोई निर्देश नहीं है। कुछ कर्मचारी अवकाश के लिए बहुत परेशान करते हैं। आवेदन करने के बाद अधिकारियों के चक्कर लगाने होते हैं। अवकाश के लिए इधर जाना पड़ता है। जिम्मेदार अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। इसके लिए समय पर कार्य नहीं करते। लिपिकीय कर्मचारी सुनते ही नहीं हैं।

शिक्षिकाओं के बोल

परिषदीय विद्यालयों के शिक्षक-शिक्षिकाओं को विधानसभा, लोकसभा चुनाव के दौरान बीएलओ का दायित्व सौंपा जाता है। जिसको पूरा करने में पूरा दिन लगता है। उसके बाद भी बीएलओ बनने वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं को स्कूल पहुंचकर शिक्षण करने की बाध्यता होती है। सुबह से दोपहर तक स्कूल में शिक्षण कार्य करने के बाद बीएलओ कार्य करने की बाध्यता न हो।

-साक्षी वशिष्ठ, शिक्षिका,एटा।

शिक्षकों को सबसे अधिक परेशान सीसीएल लेने में होती है। अवकाश का प्रार्थना पत्र देने के बाद इसको समय से स्वीकृत नहीं किए जाते है। ऐसे में अवकाश पर जाने पर डर लगता रहता है। स्वीकृत हुआ है अथवा नहीं। समय से छुट्टी स्वीकृति होनी चाहिए। महिलाओं को बच्चों की देखरेख के लिए जो अवकाश मिलता है वह भी नहीं मिल पाता है। इस पर अधिकारियों को संज्ञान लेना चाहिए।

-आरजू पांडेय, शिक्षिका

परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक-शिक्षिकायें समस्याओं से जूझ रहे हैं। स्कूल पहुंचने में पांच मिनट भी देरी हो जाये तो अनुपस्थिति लग जाती है। स्कूल जाने में देरी होने पर शिक्षकों को हाफ डे का अवकाश मिलना चाहिए। जिससे उनको समस्या है तो वह इसको ले सकें।

-डा. मालती सिंह, शिक्षिका

शिक्षक-शिक्षिकाओं से सीसीएल के लिए प्रार्थना पत्र देने पर विभाग शपथ पत्र मांगता है। नियमित स्कूल में कार्य करने के दौरान जरूरत पड़ते पर ही शिक्षक अवकाश की मांग करते है। लेकिन अधिकारियों की मनमानी के आगे शिक्षकों को शपथ पत्र देने को विवश होना पड़ रहा है।

-मानसी, शिक्षिका

शिक्षक-शिक्षिकायें स्कूल में पठन-पाठन प्रक्रिया को बेहतर करने के लिए परिश्रम कर रहे हैं। शिक्षण कार्य के अलावा भी स्कूल में अन्य कार्यो, योजनाओं के क्रियान्वयन को कराते हैं। जब भी अवकाश के लिए आवेदन करते है। उसके बाद भी अवकाश स्वीकृत नहीं होते है।

-श्वेता दुबे, शिक्षिका

स्कूल में ही शिक्षकों के पास इतने कार्य होते हैं। जिनको पूरा करने के लिए स्कूल समय भी कम पड़ता है। जिसके बाद भी उनको अन्य विभागों के कार्यों में उलझा दिया जाता है। अधिकारियों को चाहिए कि शिक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्य करने वालों को अन्य कार्यों से मुक्त रखा जाये।

-मीतू उपाध्याय, शिक्षिका

शिक्षक-शिक्षिकाओं को बीएलओ के दायित्व से मुक्त रखना चाहिए। जिससे विभागीय, स्कूल के कार्यों को पूरी एकाग्रता के साथ कर सके। बीएलओ बनाये जाने के बाद शिक्षक-शिक्षिकायें अपने कार्य पर ध्यान नहीं दे पाती है। जिससे उनको अधिकारियों की सुननी पड़ती है।

-विजय कुमारी, शिक्षिका

स्कूल में मध्यान्ह भोजन योजना कार्य में ही एक शिक्षक व्यस्त रहता है। उसके बाद स्कूल में आने वाले बच्चों की उपस्थिति पोर्टल पर अपलोड करने के बाद भी एमडीएम योजना के तहत व्यय होने वाले पैसे में से पूरे नहीं मिलते है। उसमें से भी कटौती कर दी जाती है।

-मीरा सिंह, शिक्षिका

स्कूलों में शिक्षामित्र, अनुदेशक पठन-पाठन कार्य में सहयोग करने के बजाय मुश्किल खड़ी करते है। आये दिन अवकाश पर रहते हैं। जिससे उनका कार्य भी शिक्षकों को ही देखना पड़ता है। जिससे उनसे भी शिक्षक-शिक्षिकाओं की भांति स्कूल के दायित्व निर्वहन कराये जा सके।

-अलीशा, शिक्षिका

न्यायालय से शिक्षकों का वेतन न काटने के निर्देश है। इसके बावजूद भी अधिकारी आये दिन शिक्षकों का वेतन काटते रहते है। अधिकारियों की यह मनमानी न्यायालय के निर्देश का उल्लंघन है। यह सब जानने के बाद भी अधिकारी वेतन काटने से नहीं रुक रहे है।

-शौर्या, शिक्षिका

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